Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अटल जी की लोकप्रिय कविता : मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना

हमें फॉलो करें अटल जी की लोकप्रिय कविता : मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
ऊंचे पहाड़ पर,
पेड़ नहीं लगते,
पौधे नहीं उगते,
न घास ही जमती है। 
 
जमती है सिर्फ बर्फ,
जो कफन की तरह सफेद और
मौत की तरह ठंडी होती है।
खेलती,‍ खिलखिलाती नदी
जिसका रूप धारण कर
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।
 
ऐसी ऊंचाई,
जिसका परस,
पानी को पत्थर कर दे,
ऐसी ऊंचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे,
अभिनंदन की अधिकारी है,
आरोहियों के लिए आमंत्रण है,
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,
किंतु कोई गौरैया
वहाँ नीड नहीं बना सकती,
न कोई थका-माँदा बटोही,
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।
 
सच्चाई यह है कि 
केवल ऊँचाई ही काफी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग 
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
 
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।
 
जो‍ जितना ऊँचा,
उतना ही एकाकी होता है,
हर भार को स्वयं ही ढोता है,
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,
मन ही मन रोता है।
 
जरूरी यह है कि 
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,
जिससे मनुष्य 
ठूँठ-सा खड़ा न रहे,
औरों से घुले-मिले,
किसी को साथ ले,
किसी के संग चले।
 
भीड़ में खो जाना,
यादों में डूब जाना,
स्वयं को भूल जाना,
अस्तित्व को अर्थ,
जीवन को सुगंध देता है।
 
धरती को बौनों की नहीं,
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।
इतने ऊँचे कि आसमान को छू लें,
नए नक्षत्रों में प्रतिभा के बीज बो लें,
किंतु इतने ऊँचे भी नहीं,
कि पाँव तले दूब ही न जमे,
कोई काँटा न चुभे,
कोई कली न खिले।
 
न वसंत हो, न पतझड़,
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।
 
मेरे प्रभु! 
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना
गैरों को गले न लगा सकूँ
इतनी रुखाई कभी मत देना।
 
साभार : मेरी इक्यावन कविताएँ

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी : बेदाग रहा राजनीतिक पटल, बहुत याद आएंगे अटल