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कवि श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पुण्यतिथि : जानिए उनके जीवन के 25 तथ्य

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1. रवीन्द्रनाथ ठाकुर कवि, दार्शनिक, चित्रकार जैसी कई कलाओं का संगम थे। टैगोर सिर्फ महान रचनाधर्मी ही नहीं थे, बल्कि वो पहले ऐसे इंसान थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्‍य सेतु बनने का कार्य किया था। 
 
2. रवीन्द्रनाथ टैगोर एक कवि, उपन्‍यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक थे। वह गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय थे।
 
3. रवींद्रनाथ टैगोर या रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्‍म 7 मई सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेंद्रनाथ टैगोर और माता का नाम शारदा देवी था। 
 
4. रवीन्द्रनाथ अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे।
 
5. बचपन में उन्‍हें प्‍यार से 'रबी' बुलाया जाता था। उन्हें बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने का शौक था। आठ वर्ष की उम्र में उन्‍होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्‍होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था। 
 
6. उनकी स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया। उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए।
 
7. 1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी के साथ हुआ। उस समय मृणालिनी देवी सिर्फ 10 वर्ष की थी।
 
8. अपने जीवन में उन्‍होंने एक हजार कविताएं, आठ उपन्‍यास, आठ कहानी संग्रह और विभिन्‍न विषयों पर अनेक लेख लिखे। इतना ही नहीं रवीन्द्रनाथ टैगोर संगीतप्रेमी थे और उन्‍होंने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों की रचना की। 
 
9. रवीन्द्रनाथ टैगोर के लिखे दो गीत आज भारत और बांग्‍लादेश के राष्‍ट्रगान हैं। 'जन-गण-मन' और 'आमार शोनार बांग्ला' जन-जन की धड़कन बने हुए हैं। उन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि बांग्लादेश और श्रीलंका के लिए भी राष्ट्रगान लिखे। 
 
10. सन् 1901 में टैगोर ने पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित शांति निकेतन में एक प्रायोगिक विद्यालय की स्थापना की। उन्होंने गुरु-शिष्य परंपरा को नया आयाम दिया। जहां उन्होंने भारत और पश्चिमी परंपराओं के सर्वश्रेष्ठ को मिलाने का प्रयास किया। वह विद्यालय में ही स्थायी रूप से रहने लगे और 1921 में यह विश्व भारती विश्वविद्यालय बन गया। 
 
11. जीवन के 51 वर्षों तक उनकी सारी उप‍लब्धियां और सफलताएं केवल कोलकाता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रही।  51 वर्ष की उम्र में वे अपने बेटे के साथ इंग्‍लैंड जा रहे थे। समुद्री मार्ग से भारत से इंग्‍लैंड जाते समय उन्‍होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। गीतांजलि का अनुवाद करने के पीछे उनका कोई उद्देश्‍य नहीं था केवल समय काटने के लिए कुछ करने की गरज से उन्‍होंने गीतांजलि का अनुवाद करना प्रारंभ किया। उन्‍होंने एक नोटबुक में अपने हाथ से गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद किया।
 
12. लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र उस सूटकेस को ही भूल गया जिसमें वह नोटबुक रखी थी। इस ऐतिहासिक कृति की नियति में किसी बंद सूटकेस में लुप्‍त होना नहीं लिखा था। वह सूटकेस जिस व्‍यक्ति को मिला उसने स्‍वयं उस सूटकेस को रवीन्द्रनाथ टैगोर तक अगले ही दिन पहुंचा दिया।
 
13. लंदन में टैगोर के अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेंस्टिन को जब यह पता चला कि गीतांजलि को स्‍वयं रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अनुवादित किया है तो उन्‍होंने उसे पढ़ने की इच्‍छा जाहिर की। गीतांजलि पढ़ने के बाद रोथेंस्टिन उस पर मुग्‍ध हो गए। 
 
14. उन्‍होंने अपने मित्र डब्‍ल्‍यू.बी. यीट्स को गीतांजलि के बारे में बताया और वहीं नोटबुक उन्‍हें भी पढ़ने के लिए दी। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। यीट्‍स ने स्‍वयं गीतांजलि के अंग्रेजी के मूल संस्‍करण का प्रस्‍तावना लिखा। 
 
15. सितंबर सन् 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गई। लंदन के साहित्यिक गलियारों में इस किताब की खूब सराहना हुई। जल्‍द ही गीतांजलि के शब्‍द माधुर्य ने संपूर्ण विश्‍व को सम्‍मोहित कर लिया। 
 
16. पहली बार भारतीय मनीषा की झलक पश्चिमी जगत ने देखी। गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद सन् 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर को नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया।
 
17. उन्हें साहित्य के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था किंतु इससे पूर्व सन 1915 में अंग्रेज शासन ने उन्हें नाइटहुड की उपाधि से अलंकृत किया। रवीन्द्रनाथ उन दिनों जलियांवाला बाग की दर्दनाक घटना से व्यथित थे। फलस्वरूप उपाधि उन्होंने लौटा दी। 
 
18. रवीन्द्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम व्‍यक्ति थे, जिन्‍हें नोबल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था।
 
19. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर केवल भारत के ही नहीं समूचे विश्‍व के साहित्‍य, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्‍तंभ हैं, जो स्‍तंभ अनंतकाल तक प्रकाशमान रहेगा।
 
20. स्वामी विवेकानंद के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर दूसरे व्यक्ति थे, जिन्होंने विश्व धर्म संसद को दो बार संबोधित किया। 
 
21. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय साहित्य के उज्ज्वल नक्षत्र हैं। उनका शांत अप्रतिम व्यक्तित्व भारतवासियों के लिए सदैव ही सम्माननीय रहा है। वे न सिर्फ महानतम कवि थे बल्कि चित्रकार, दार्शनिक, संगीतकार एवं नाटककार के विलक्षण गुण भी उनमें मौजूद थे। 
 
22. उनकी प्रमुख रचनाएं गीतांजलि, गोरा एवं घरे बाईरे है। उनकी काव्य रचनाओं में अनूठी ताल और लय ध्वनित होती है। वर्ष 1877 में उनकी रचना 'भिखारिन' खासी चर्चित रही। उन्हें बंगाल का सांस्कृतिक उपदेशक भी कहा जाता है। उनके व्यक्तित्व की छाप बांग्ला लेखन पर ऐसी पड़ी कि तत्कालीन लेखन का स्वरूप ही बदल गया।
 
23. गुरुदेव का लिखा 'एकला चालो रे' गाना गांधीजी के जीवन का आदर्श बन गया।
 
24. गुरुदेव का संदेश था 'शिक्षा से ही देश स्वाधीन होगा संग्राम से नहीं'। कहना न होगा कि आज भी यह संदेश कितना प्रासंगिक है। 
 
25. प्रोस्टेट कैंसर के कारण रवीन्द्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त, 1941 को कोलकाता हुआ था। टैगोर का लोगों के बीच इतना ज्यादा सम्मान था कि लोग उनकी मौत के बारे में बात नहीं करना चाहते थे। यह भारतीय साहित्य के लिए अभूतपूर्व क्षति थी। 
 
- आरके. 

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