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बापू के बचपन की रीयल स्टोरी पर नाटक ‘मोनिया दि ग्रेट’का मंचन

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मोनिया दि ग्रेट : बच्चों का दिलचस्प पीरियड नाटक
 
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली में नाटक 'मोनिया दि ग्रेट' का मंचन किया गया। इस नाटक में दिल्ली के उन स्कूली बच्चों ने काम किया है, जो एनएसडी के चिल्ड्रन थियेटर वर्कशॉप में रंगमंच की ट्रेनिंग ले रहे थे। इस दौरान शकील अख़्तर के लिखे शोध आधारित नाटक- 'मोनिया दि ग्रेट' नाटक को तैयार किया गया। नाटक का निर्देशन हफीज़ खान ने किया है। अभिकल्पना कैलाश चौहान की है और निर्देशन सहयोग आशीष देवचारण का है। नाटक का संगीत कलीम जाफर ने तैयार किया है।

 
नाटक के मंचन का सिलसिला शुरू : 'मोनिया दि ग्रेट' एक पीरियड ड्रामा है। इसमें बापू के बचपन की रीयल स्टोरी को नाट्य रूपांतर के रूप में दर्शकों के सामने लाया गया है। सभी जानते हैं सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज़ादी के आंदोलन से जुड़े जीवन पर तो बहुत काम हुआ है लेकिन उनके बचपन के कई पृष्ठ अनजाने ही हैं। बच्चों के सामने उनके इसी बाल जीवन को बाल कलाकार पेश करते हैं। नाटक के मंचन की शुरुआत हो गई है। एनएसडी के चहुंमुख ऑडिटोरियम में नाटक के दो शोज़ मंचित हो चुके हैं। नाटक के पहले शो में आयोजन के सूत्रधार और एनएसडी के रजिस्ट्रार प्रदीप के. मोहंती के साथ ही बतौर मुख्य अतिथि संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव बीएस बर्मा मौजूद थे।

 
चिल्ड्रन वर्कशॉप, एनएसडी में तैयार नाटक : नाटक में दिल्ली के 23 बाल कलाकारों ने ऊर्जाभरा अभिनय किया है। बच्चे करीब 3 महीने तक इस नाटक के बनने और इसे अपने स्तर पर परखने व समझने की प्रक्रिया से जुड़े रहे। निर्देशकीय टीम के सहयोग से नाटक को मंच पर प्रस्तुति के रूप में लाने का अभ्यास करते रहे। शुरू के कई दिनों तक लेखक और निर्देशक बच्चों को खुद ही महात्मा गांधी के बारे में पढ़ने, लिखने, उनकी फिल्में-डाक्यूमेंट्री देखने लिए प्रेरित किया। उसके बाद उन्हें गांधी के बचपन की रीयल स्टोरी सुनाई गई, इसी प्रक्रिया में धीरे-धीरे बच्चे नाटक बुनने की प्रक्रिया का हिस्सा बनने लगे।

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महात्मा गांधी के बचपन की रीयल स्टोरी : नाटक 150 साल पहले महात्मा गांधी के उस बाल जीवन के दिलचस्प सफ़र पर ले जाता है, जो राजकोट और पोरबंदर में बीता था। 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में महात्मा गांधी का जन्म हुआ था। उस वक्त उन्हें परिवार ने मोहनदास नाम दिया था लेकिन प्यार का नाम था 'मोनिया'। नाटक बताता है कि खेलकूद की उम्र से लेकर नौजवान बनने के उस दौर में ही मोनिया में महात्मा बनने के संस्कार पड़ चुके थे। यह सब कैसे हो रहा था, वे कौन सी बातें थीं, जो मोनिया को महात्मा बना रही थीं, यही इस नाटक की विषयवस्तु है। इसमें ऐसे प्रसंग हैं, जो सहज ही हरेक को उसके बाल जीवन में ले जाते हैं।

 
गीत-संगीत से नाटक को रफ़्तार : नाटक की बहुत बड़ी खूबी इसका गीत-संगीत है। कुछ गीत खुद सीनियर टीवी जर्नलिस्ट और लेखक शकील अख़्तर ने लिखे हैं, जबकि कुछ पारंपरिक गीतों का निर्देशकीय टीम ने चयन किया है। ये गीत नाटक को जोड़ने, किसी ख़ास बात को उभारने और नाटक को गति देने का काम करते हैं। खास बात यह भी है कि मंच पर ये गीत खुद बाल कलाकार गाते हैं। बच्चों को संगीतकार कलीम जफर ने गायन की ट्रेनिंग दी। सहयोग संगीत कलाकार नीलेश मनोहर और गगन सिंह बैस का रहा। उन्हें अपनी अनुभवी कला से बांधने का काम कैलाश चौहान ने किया।

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