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क्या वाकई हिन्दी ने चीनी भाषा को पछाड़ा है, जानिए क्या है सच

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एक संक्षिप्त संवाद उस लेखक से जिनकी पुस्तक पर आधारित है यह खबर 
 
हिन्दी के बारे में अचानक एक खबर आई कि चीन की मंदारिन भाषा को पछाड़ हिन्दी बनी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा। इस खबर के साथ ही सोशल मीडिया पर बधाई और शुभकामनाओं का सैलाब आ गया। लेकिन जिस पुस्तक पर यह खबर आधारित है, उस पुस्तक के लेखक करुणा शंकर उपाध्याय से पुनर्वसु जोशी का फेसबुक पर संवाद हुआ। पुनर्वसु ने उनसे इस खबर संबंधित कुछ प्रश्न पूछे। जानिए क्या कहा लेखक ने इस संबंध में... 


दरअसल, चीन संबंधित उनकी सारी जानकारी बीजिंग विश्वविद्यालय से आए एक प्राध्यापक द्वारा दी गई है। वे चीन की आधिकारिक नीतियां नहीं है। वैसे ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बारे में जो लिखा है वह भी भ्रामक है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले हिन्दी भाषियों को यह कहकर प्रस्तुत किया गया है जैसे उन कंपनियों ने ही उन्हें हिन्दी सिखाई हो। 
 
प्रस्तुत है पुनर्वसु जोशी और उपाध्याय के बीच हुए संवाद के प्रमुख अंश : 
पुनर्वसु : हिन्दी के विषय में एक खबर छपी है, जिसमें कुछ आंकड़ों के साथ यह बताया गया है कि हिन्दी की हमें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हिन्दी तो अपने 'अच्छे दिनों' में ही रह रही है। खबर का दावा है कि 'इसलिए एक तरफ हिन्दी भाषी दुनिया भर में फैल रहे हैं, तो दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना व्यवसाय चलाने के लिए अपने कर्मचारियों को हिन्दी सिखानी पढ़ रही है।'  
 
प्रश्न: 1. वे कौन सी और कितनी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं जो अपना व्यवसाय चलाने के लिए हिन्दी सिखा रही हैं? 
 
2. वे ‘अनाम’ बहुराष्ट्रीय कंपनियां, किस देश में अपना व्यवसाय चलाने के लिए लोगों को हिन्दी सिखा रही हैं? क्योंकि, अगर वे भारत में व्यवसाय कर रही हैं तो उन्हें हिन्दी सिखाने की आवश्यकता नहीं होगी। 
 
3. क्या यह उन ‘अनाम’ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की हिन्दी सिखाने की आधिकारिक नीति है? 
 
खबर का दावा: 'फिलहाल चीन के 20 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। 2020 तक वहां हिन्दी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या 50 तक उम्मीद है।' 
 
प्रश्न: 1. इस आंकड़े का आधिकारिक स्रोत क्या है?

2. China Internet Information Center जो कि चीन की सरकार कीआधिकारिक वेबसाइट है, के अनुसार चीन में 700 विश्वविद्यालय हैं और तकरीबन 2200 कॉलेज हैं। उनमें से 20 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाए जाने का अर्थ मात्र 2% प्रतिशत विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाया जाना है। जबकि, मंदारिन 100% विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। 2020 तक वहां हिन्दी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या 50 तक बढ़ने की उम्मीद के पीछे क्या कोई आधिकारिक घोषणा या चीन की सरकार का वक्तव्य है? इन आंकड़ों के साथ क्या हम हिन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार का दावा कर सकते हैं?
 
खबर का दावा: 'यहां तक कि चीन अपने 10 लाख सैनिकों को भी हिन्दी सिखा रही है' 
 
प्रश्न: इस दावे के समर्थन के लिए चीन के रक्षा मंत्रालय या विदेश विभाग या चीन की सरकार की घोषित नीति या वक्तव्य है?
 
उपाध्याय: महोदय, आप राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली से हिंदी का विश्व संदर्भ पुस्तक मंगवा लीजिए फिर सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाएगा ।फिर भी, यदि कोई परेशानी हो तो मुझसे बात कर सकते हैं।
 
पुनर्वसु: उपाध्याय जी, मैं राजकमल से वह पुस्तक तो खरीद ही लूंगा। लेकिन, जिन प्रश्नों को मैंने उठाया है, उनका उत्तर इसी मंच पर मिल सकेगा तो मेरे, आपके और हमारे-आपसे जुड़े हुए सारे लोगों के लिए बेहतर होगा और इन बातों पर एक यथोचित विमर्श हो सकेगा। बहुत संभव है आपके आलोचक, आपके ‘पुस्तक खरीद कर पढ़ लो’ के सुझाव को पुस्तक बेचने की युक्ति की तरह भी मान लें। आपने पुस्तक लिखी है तो संदर्भ तो आपके पास होंगे ही। मेरा तो आपसे यही अनुरोध है कि उन संदर्भों को यहीं इसी मंच पर साझा करें। अन्यथा, लोगों को यह सूचना जाएगी की आप तर्कों और तथ्यों की प्रामाणिकता पर उठाए हुए प्रश्नों से बच रहे हैं।
 
उपाध्याय: गत वर्ष बीजिंग विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ .जियांग हमारे विभाग में आए थे। उन्होंने मंच से घोषित किया था।वह खबर भी मुंबई के समाचार पत्रों में छपी थी।
 
पुनर्वसु: धन्यवाद! मेरे और भी प्रश्न हैं। अगर उनका भी यथोचित उत्तर मिल जाएगा तो बेहतर होगा।
 
उपाध्याय: शेष प्रश्नों का उत्तर पुस्तक में है।
 
पुनर्वसु: लेखक जी, जितने आप हिन्दी को लेकर चिंतित हैं, उतनी ही चिंता मेरी भी है। पुस्तक तो मैं ख़रीदूंगा ही। आपसे पुनः अनुरोध है कि कम से कम इन प्रश्नों के उत्तर तो यहीं पर दें। अन्यथा, आपकी पुस्तक के तर्कों और तथ्यों की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह लगा ही रहेगा। क्या चीनी भाषा संबंधित आपकी सारी ‘सूचना’ जियांग से प्राप्त है?
 
भाषा, और सेना संबंधित यह 'सूचना' अगर चीन की सरकार का आधिकारिक वक्तव्य या नीति नहीं है तो किसी व्यक्ति के 'विचारों' को एक राष्ट्र की नीति के रूप में प्रस्तुत करना निश्चित रूप से एक भ्रामक संदेश नहीं देता है?
 
दूसरे, आप व्यवसाय के लिए अपने कर्मचारियों को हिन्दी सिखाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के नाम तो बता ही सकते हैं। निश्चित रूप से यह जानकारी तो बहुत ही छोटी सी बात है। क्योंकि, जन-समुदाय का यह प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है। आज भी हिन्दी मीडियम में पढ़ने वाला छात्र, नौकरी तो छोड़िए, साक्षात्कार तक के लिए योग्य नहीं हो पाता। ऐसे में यह जानकारी मांगना एक वैध प्रश्न है।
 
उपाध्याय: बंधुवर जो सूची दी गई है वह हिन्दी में कार्य करने वालों के बजाय हिन्दी बोलने अथवा बोल सकने वालों की है। आज बहुराष्ट्रीय निगम और बाजार की शक्तियां अपने लाभ के लिए ही सही हिन्दी का प्रयोग करने के लिए अभिशप्त हैं। अब विकसित देशों में भी आपसी व्यवहार में हिन्दी का प्रयोग लक्षित किया जा सकता है। इस समय मैं दिल्ली में हूं। अतः पुस्तक का आंतरिक विवरण देने की स्थिति में नहीं हूं।
 
 
पुनर्वसु: आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। चूंकि आपने पूर्ण विवरण देने में असमर्थता प्रकट की है, अतः मुझे राजकमल के अशोक माहेश्वरी जी और दैनिक जागरण के संजय गुप्ता से ही इन प्रश्नों के उत्तर पूछने पड़ेंगे । प्रश्न तो अनु्त्तरित ही रह गए परंतु आपने चर्चा का कष्ट किया उसके लिए आपका धन्यवाद। 

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