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कार्यस्थल पर आनंद का माहौल

हमें फॉलो करें कार्यस्थल पर आनंद का माहौल
डॉ. साधना सुनील विवरेकर
आनंद मंत्रालय या हेप्पीनेस एट वर्क प्लेस
वर्तमान में प्रतिस्पर्धा के युग में सभी उन्नति व सफलता चाहते हैं। इसके लिए अधिक से अधिक समय कार्यस्थल (वर्क प्लेस) पर गुजारना अतिआवश्यक है। वर्क प्लेस पर लोग अधिक समय रुककर पूर्ण समर्पण से कार्य करें, यह संस्था व कर्मचारी दोनों के हित में होता है। प्रायवेट कंपनी हो या सरकारी दफ्तर, केवल अधिक घंटों के रुकने से काम नहीं होते बल्कि कर्मचारियों व अधिकारियों में काम के प्रति समर्पण, अपनत्व व सबकी सकारात्मक सोच व बिना एक-दूसरे को नीचा दिखाए सभी की भागीदारी, साझीदारी व सहयोग से ही काम सुचारू रूप से चलते हैं व समयसीमा के अंदर पूर्ण हो सकते हैं। 
 
इसके लिए आवश्यक है सबको कार्यस्थल पर आनंद (हैप्पीनेस) मिले। इस आनंद के लिए कुछ हद तक भौतिक सुख-सुविधाओं की आवश्यकता तो है ही, साथ ही आवश्यक है ऐसे माहौल को निर्मित करना, जहां ज्यादा रूकने में भी सबको मजा या आनंद आए, कार्य करने पर सुख व सुकून की अनुभूति मिले, तनाव को कोसों दूर रखा जाए, किसी प्रकार की तानाशाही या आतंक का माहौल न हो और सबको अपनी बात कहने की स्वतंत्रता हो। अधिकांश लोग कार्य के प्रति समर्पित होते हैं, काम करना चाहते हैं, लेकिन तनाव व दबाव में उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। अच्छा प्रबंधक या संस्था प्रमुख इसे समझता है और इसलिए ही नामी कंपनियों में वर्क कल्चर व "हैप्पीनेस एट वर्क प्लेस" का महत्व समझा जाता है और उसी के चलते उनकी प्रगति होती है। हमारी सरकार ने भी इसकी महत्ता समझी है और आनंद मंत्रालय की स्थापना की है, जो "हैप्पीनेस एट वर्क प्लेस" को सुनिश्चित करेगा।
 
आज जब महिलाएं भी भारी संख्या में कामकाजी हो गई हैं, तब तो इसकी आवश्यकता और भी अधिक है। उन पर घर व कार्यस्थल की दोहरी जिम्मेदारी है, बच्चों की परवरिश व शिक्षा का अतिरिक्त भार अधिकतर घरों में उन्हीं पर है, समाज की सोच व मानसिकता में बदलाव आ रहा है, पर घर के दायित्वों को निभाना भी स्त्री के जिम्मे है और यह उसकी अपनी पहचान भी है। तब तो दोनों जगह तनावमुक्त रहकर ही वह अपनी जिम्मेदारी अधिक बेहतर तरीके से निभा सकती है।
कुल मिलाकर हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी उम्र का हो, स्त्री हो या पुरूष,  अगर तनावमुक्त वातावरण में कार्य करेगा तो ही उसकी पूर्ण क्षमताओं का उपयोग कर पूर्ण समर्पण से कार्य कर पाएगा। इस हेतु आवश्यक ही नहीं अत्यावश्यक है कि निम्न बातों का ध्यान रखते हुए, सुख सुविधाओं के साथ कार्यस्थल पर आनंद का वातावरण मिलें -
 
1. मूलभूत सुविधाएं व संसाधन उपलब्ध हों - सबसे बड़ी व मूलभूत आवश्यकता होती है पीने का शुद्ध, ठंडा जल व स्वच्छ शौचालय। इनकी अनुपस्थिति या अभाव में अधिक घंटे कार्यस्थल पर गुजारना अत्यधिक मुश्किल व अमानवीय होता है। लेकिन अत्यंत दुर्भाग्य व शर्म की बात है कि हमारे कई कार्यालयों में यह मूलभूत सुविधाएं नहीं होती। जहां ये सुविधाएं नहीं हैं, उनके नाम उजागर हों व संस्था प्रमुखों या कंपनी प्रमुखों पर सख्ती कर ये संसाधन अतिआवश्यक किए जाएं।
 
2. अच्छा कैंटीन - आजकल हर जगह छः से आठ घंटे रूककर कार्य करना आवश्यक होता है, ऐसे में हर कार्यस्थल पर एक अच्छे कैंटीन का होना आवश्यक है, जहां चाय, कॉफी व नाश्ते की चीजें शुद्ध व गर्म उपलब्ध हो सकें। अन्यथा रोज सूखी रोटी-सब्जी का टिफिन खाकर कैसे कार्यक्षमता बढ़ेगी? संस्थान बड़ा हो तो कम मूल्य पर खाना भी उपलब्ध होना चाहिए।
 
3. समान व्यवहार - सबके लिए समान व्यवहार हो अर्थात् काम करने पर प्रशंसा व न करने पर सजा, तभी सब काम करेंगे।
 
4. कार्य घंटों की सुनिश्चितता - छः या आठ घंटों का जो भी समय निर्धारित हो, वह सभी पर हमेशा लागू हो। कुछ लोग मशीन पर अंगूठा लगाना हो या हस्ताक्षर करना, बीच में गायब हो जाते हैं व जो उपलब्ध होते हैं उन्हीं पर कार्य का बोझ बढ़ता है। अतः उतने समय के बीच कोई कार्यालय से बाहर जाता है, तो उसे दंडित किया जाना चाहिए।
 
5. लेटलतीफी बर्दाश्त न की जाए - कुछ लोग तरह-तरह के बहाने बनाकर हर दूसरे-तीसरे दिन विलंब से आते हैं, ऐसे में बार-बार शिकायत करने से संबंध खराब व मनमुटाव का डर होता है, अतः संस्था प्रमुख को चाहिए कि वह समान रूप से सब पर नियंत्रण रखें, शिकायत प्राप्त होने की राह न देखें व तुरंत स्वयं दंडित करें।
 
6. कार्य देने पर विश्वास बनाए रखें - किसी भी अधीनस्थ को कार्य देने पर समयसीमा संबंधी निर्देश दें, पर उस पर पूर्ण विश्वास रखा जाए व उसे पूरा सहयोग देने से ही उसकी क्षमता का उपयोग किया जा सकता है।
 
7. कार्य करने की स्वतंत्रता - हर व्यक्ति का कार्य करने का अपना तरीका होता है। उसे पूर्ण स्वतंत्रता दें व आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराएं।
 
8. हौसला बढ़ाए प्रोत्साहन दें - कोई भी नया काम आने पर व्यक्ति हड़बड़ा सकता है अत: उसे हौसला दें कि वरिष्ठ या संस्था प्रमुख सदैव उसकी मदद व मार्गदर्शन के लिए उपलब्ध है। अच्छा करने पर प्रोत्साहन दें व गलतियों को सुधारने का मौका दें।
 
9. आर्थिक लाभ यथाशीघ्र दें - हर व्यक्ति अंततः पैसे के लिए ही नौकरी करता है। उसके आर्थिक लाभों पर अनावश्यक कटौती कर उसे दुखी न करें, न ही आर्थिक लाभ के अतिरिक्त कार्य (नियमानुसार) करने पर रोक लगाएं।
 
10. तारीफ करना सीखें - हर छोटे-बड़े काम में मेहनत व समर्पण लगता है, तारीफ के दो शब्द व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं व कार्य की सराहना से कार्य करने में आई थकान दूर हो जाती है।
 
11. दूसरे के उदाहरण से तुलना न करें - बार-बार दूसरे चहेते कर्मचारी की प्रशंसा व उसका उदाहरण न दें। तुलना करने से अपमानित महसूस होने के साथ ही  मनोबल गिरता है।
 
12. काम करने वालों पर ही बोझ न लादें - अक्सर जब कार्यस्थल पर कुछ लोग कार्य में रूचि नहीं लेते या उनसे कार्य करवाने की हिम्मत नहीं पड़ती या वे उपलब्ध ही नहीं होते, तब उनके हिस्से का काम भी मेहनती व ईमानदारी से कार्य करने वालों को कभी मीठा-मीठा बोलकर, तारीफ करके तो कभी धौंसदपट से करवाने का प्रयास किया जाता है।
 
ऐसे व्यवहार से जहां काम न करने वाले मजे में रहते हैं, दूसरों को व आपको भी मूर्ख समझते हैं, वहीं काम करने वाला कुंठित व व्यधित हो अपनी कार्यक्षमता खोने लगता है।
 
13. आमने-सामने बैठाकर गलतफहमियां दूर करें - जहां ज्यादा लोग एक साथ काम करते हैं वहां नैसर्गिक रूप से मनमुटाव भी होते हैं, घर के बुजुर्गों की तरह दोनों का पक्ष सुन, आमने-सामने बैठा गलतफहमियां व गिले-शिकवे दूर करने से ही आनंद का अपनत्व का वातावरण निर्मित होगा।
 
14. अतिरिक्त जायज सुविधाएं दें - काम लेते वक्त तो सक्षम लोगों की, कर्मठ कर्मचारियों की सहायता ली जाती हैं, उन्हें अतिरिक्त कार्य भी दिया जाता है लेकिन वे जब कोई भी सुविधा चाहते हैं तो अकर्मण्य लोगों के डर से, वह सुविधा न दिया जाना उन्हें हतोत्साहित करता है।
 
15. परिवार के मुखिया की भूमिका में हो संस्था प्रमुख - संस्था प्रमुख को परिवार के मुखिया की तरह सबको बांधकर रखना व आनंद तथा उत्साह का ऐसा वातावरण बनाने का प्रयत्न करना चाहिए कि कर्मचारी व अधिकारी उसका सम्मान करें, न कि उसकी तानाशाही व आतंक से हैरान परेशान कुंठित। वे बड़े विश्वास से उससे अपनी समस्याएं चाहे कार्यस्थल की हों या परिवार की, निःसंकोच कह सकें। उन्हें इतनी आत्मीयता व सम्मान मिले कि वे अपना हर सुख-दुख बांट सकें व मशीनी जिंदगी या यंत्रवत कार्य करने की बजाए हंसते-खेलते पूर्ण विश्वास व समर्पण से जल्द से जल्द अपने-अपने उत्तरदायित्वों को पूर्ण कर सकें। सही प्रबंधक या प्रमुख वही है जो -
 
1. संवाद स्थापित कर सके।
2. सभी की सहभागिता सुनिश्चित करे।
3. सबको सम्मान दे।
4. सबकी समस्याएं सुलझाए।
5. सबकी हमेशा सुलह करवाए।
6. सबकी सराहना भी करे।
7. सकारात्मक सोच रखे।
8. समानता का व्यवहार करे।
9. सहनशील बने। 
10. स्वाभिमान को आड़े न आने दे।
11. संतुलित व पारदर्शी व्यवहार से सबके दिलों में जगह बनाए।
कार्यस्थल पर खुशी का माहौल दिमागों पर नहीं, दिलों पर हुकूमत करने की कला को मानसिकता विकसित करने पर ही संभव है।

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