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अब तो बस करें आसाराम

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प्रज्ञा पाठक

- प्रज्ञा पाठक
पचास घंटे जेल में रहकर शनिवार को सलमान खान जमानत पर छूटकर बाहर आ गए। जितने समय वे जेल में रहे, उनसे मिलने जेल प्रहरी, संतरी, सुरक्षाकर्मी और नंबरदार निरंतर आते रहे। ये अत्यंत स्वाभाविक था क्योंकि वे लोकप्रिय अभिनेता हैं। प्रशंसक अपने पसंदीदा कलाकार को निकट से देखने, छूने और बात करने के लिए लालायित रहते हैं। सेल्युलाइड की चकाचौन्ध में सदा देखा जाने वाला कलाकार वास्तव में कैसा दिखता है, कैसे रहता है, उसकी चाल-ढाल, बोलचाल आदि छोटी से छोटी बातें चाहने वाले जानना चाहते हैं। इसलिए जहाँ भी ऐसा अवसर मिल जाये, प्रशंसक नहीं चूकते।
 
सलमान ने गलती की, जिसके लिए उन पर न्यायालय में मुकदमा चल रहा है। लेकिन इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि वे एक बेहतरीन अभिनेता हैं। उन्होंने अपने शानदार अभिनय के बल पर अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार अर्जित किये और लाखों लोगों का दिल जीता। वे लगभग तीस वर्षों से सिनेमा-जगत में हैं और निःसंदेह इस क्षेत्र की बेहतरी में उनका भी योगदान है।
 
ऐसी सुविख्यात हस्ती का जेल में भी प्रंशसकों से घिरे रहना स्वाभाविक बात थी, लेकिन पास ही की बैरक में बंद आसाराम बापू को ये अत्यंत नागवार गुज़रा। उनकी आपत्ति यह थी कि उनसे मिलने तो कभी कोई नहीं आय। सलमान चूंकि सेलेब्रिटी हैं, इसलिए उनसे मिलने सभी आ रहे हैं। 
 
आसाराम की इस आपत्ति पर मुझे घोर आपत्ति है। वे अपनी तुलना सलमान से कैसे कर सकते हैं? ज़रा वे स्वयं को देखें, आकलन करें कि उन्होंने समाज को क्या दिया है? उनकी ऐसी क्या उपलब्धि है, जिस पर वे स्वयं गर्व कर सकें और समाज उनसे मिलने के लिए लालायित हो।
 
सलमान का पेशा अभिनय है और उन्होंने सदैव अपने पेशे के साथ न्याय किया। उन्होंने अनेक बार अस्वस्थ होने के बावजूद शूटिंग की और इस तरह अपने निर्माता-निर्देशकों का ध्यान रखा। अपने अभिनय से समाज का मनोरंजन किया। सामाजिक सरोकारों से भी वे जुड़े रहे हैं। अनेक लोगों की आर्थिक मदद करते हैं, नए कलाकारों को कैरियर बनाने में मुक्त ह्र्दय से सहायता देते हैं।
 
दूसरी ओर आसाराम हैं, जो संत थे और इस नाते सम्पूर्ण समाज की श्रद्धा के केंद्र थे। लेकिन उन्होंने अपने इस महत् पद की गरिमा को अक्षुण्ण नहीं रखा। वे एक लड़की के साथ दुराचरण जैसे घोर लज्जाजनक अपराध के दोषी हैं। ऐसा हीन कर्म करते समय उन्हें तनिक भी ख्याल नहीं आया कि 'संत' के क्या मायने होते हैं, क्या दायित्व होते हैं? धर्म-ध्वजा जिनके हाथों में हो, वे संत होते हैं। जो समाज के सच्चे मार्गदर्शक होते हैं, वे संत होते हैं। जो सत्य, नीति, अहिंसा, क्षमा, दया और परोपकार के मूर्तिमान रूप होते हैं, वे संत होते हैं।
 
अब ज़रा बताइये कि आसाराम इनमें से कौनसी कसौटी पर खरे उतरते हैं? मेरे विचार से एक भी नही। इसके विपरीत उन्होंने तो सम्पूर्ण संत समाज पर कलंक का स्थायी टीका लगा दिया। जो पददलित हो गया, उससे कौन धर्म की शिक्षा लेने जायेगा?जो स्वयं दिग्भ्रमित है, उससे दिशा का ज्ञान कौन ग्रहण करना चाहेगा? जो दुराचरण का अपराधी है, उसे 'संत' की प्रतिष्ठा कौन मूढ़मति देगा?
 
आसाराम स्वयं अपनी और सलमान की तुलना कर देखें कि कौन श्रेष्ठ ठहरता है? निश्चित तौर पर सलमान ही क्योंकि वे कम से कम अपने कर्म के प्रति तो ईमानदार हैं। आसाराम तो अपना कर्म ही भूल गए। मैं सलमान की गलती को अनदेखा नहीं कर रही हूँ। उसके लिए उन्हें अवश्य ही योग्य दंड दिया जाये। लेकिन आसाराम की यह अपेक्षा सर्वथा अनुचित है कि उनसे मिलने भी लोगों को आना चाहिए। क्या शिक्षा देंगे वे लोगों को? यही कि जो आप पर अपार श्रद्धा रखे, उसी के विश्वास को आप छल लें? जो अनुचित का प्रतिकार करे, उसे धमकाएं या उसकी हत्या करवा दें? जो सत्य को सामने लाये, उसके समक्ष ताल ठोंककर अपने 'असत्य' की प्रतिष्ठा के पुरज़ोर प्रयास करें?
 
बेहतर होगा कि आसाराम अपनी ईर्ष्या का ऐसा लज्जास्पद प्रदर्शन ना करें। कम से कम अपने पूर्व पद की इतनी तो गरिमा रख लें। चुपचाप अपने अपराध के निर्णय की प्रतीक्षा करें। उन्होंने जो बोया है, फल भी उस अनुरूप ही प्राप्त होगा।

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