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अहिल्याबाई : जन आस्था और विश्वास की देवी

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अनिल शर्मा

भारतवर्ष की प्रथम पूजनीय देवी तुल्य मां अहिल्याबाई होलकर एक ऐसा नाम है जिसके प्रति कोटि-कोटि जन की आस्था, विश्वास यहां तक कि चमत्कार की उम्मीद भी। कई सतयुग से लेकर वर्तमान लोकतंत्र तक सदियों... बरसों... गुजर गए और कई शासक आए और गए। पुरुष शासन रहा, वहीं नारी वर्ग का भी समय-समय पर शासन रहा। लेकिन जो देवी के रूप में पूजन अहिल्याबाई होलकर का हुआ और होता है, वैसा बहुत ही कम शासिकाओं का होता है।
 
अहिल्याबाई होलकर का नाम सुनकर आज भी मस्तक श्रद्धा से झुक जाता है। मप्र राज्य के इंदौर और महेश्वर से अपना शासन संचालित करने वालीं देवी अहिल्याबाई होलकर एक धर्मप्राण शासिका थीं। उनके शासन में चारों ओर सुख-शांति थी और यही कारण है कि देवी अहिल्याबाई का देवीतुल्य विश्वास जन-जन में बसा हुआ है।
 
यहां तक कि बरसों बाद भी आज के वैज्ञानिक युग में लोग कहते हैं कि अहिल्याबाई का अभी भी इतना गुप्त खाद्यान्न भंडार भरा पड़ा है कि अगर अकाल पड़ गया तो ये द्वार मां अहिल्याबाई की कृपा से अपने आप खुल जाएंगे। यह अंधविश्वास नहीं कहा जा सकता, बल्कि आत्मिक श्रद्धा-भक्ति और गूढ़ विश्वास का भाव माना जा सकता है। मगर इस बात में कोई दोराय नहीं कि आज के दौर में भी अहिल्याबाई होलकर देवी के रूप में पूजनीय है।
 
मेरे परिचित ने मुझे अपना किस्सा सुनाया था कि जब वह रोजगार के लिए इंदौर आया तो उसके पास उस समय 10-15 रुपए थे, जो 2-4 दिन चल गए। जब पैसे खत्म हो गए तो उसने 2-4 दिन सार्वजनिक नलों से पानी पीकर भूख-प्यास मिटाई और जब स्थिति असह्य हो गई तो वह इंदौर स्थित राजबाड़ा क्षेत्र में बने देवी अहिल्याबाई होलकर उद्यान में बैठकर एकटक अहिल्याबाई होलकर की मूर्ति को देखकर बहते हुए आंसुओं के साथ मन ही मन प्रार्थना करता रहा कि तेरी नगरी में कोई भूखा नहीं रहता तो मेरे साथ ऐसा क्यों? तकरीबन पौन घंटा हुआ होगा कि एक व्यापारी ने आकर उससे बोला कि काम करेगा? उसने तुरंत 'हां' भर दी।
 
वह बोला- 'बाबूजी, मैं भूखा-प्यासा हूं, पहले खाना खिलवा दो और फिर जो काम दोगे, मैं कर दूंगा। व्यापारी ने उसे खाना खिलवाया। उसके बाद वह व्यापारी के काम में लग गया। उस परिचित ने देवी अहिल्याबाई की इस कृपा को अपने हृदय में बसा लिया।
 
उसी व्यापारी के यहां से उसने अपना खुद का काम शुरू किया और अच्छा व्यापारी बन गया। भले ही यह इत्तेफाकन हुआ हो, लेकिन देवी अहिल्याबाई होलकर के प्रति जो आस्था और विश्वास आज भी जन-जन में मौजूद है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। आज भी देवी अहिल्याबाई की दानशीलता, न्यायप्रियता, योग्य शासन के किस्से जनश्रुतियों में मौजूद हैं।
 
चोरी और चमत्कार!
 
देवी अहिल्याबाई के अनेक चमत्कारी किस्सों में एक किस्सा उनके सोने के झूले का है। महेश्वर स्थित राजबाड़ा (किले) में मां अहिल्याबाई का सोने का झूला बताया जाता है। बरसों पहले कुछ चोरों ने उसे चुराने का दुष्प्रयास किया था। चोर आसानी से उसे चुराकर महेश्वर से पूर्व में लगभग 25-30 किमी धरगांव के आसपास तक ले आए, मगर धरगांव पार करने के पहले ही उनकी आंखों की ज्योति चली गई और वे पकड़ा गए।
 
आस्था और विश्वास
 
एक देवी के रूप में विख्यात अहिल्याबाई होलकर ने जहां ममतामयी के समान अपनी प्रजा का ध्यान रखा, वहीं न्यायप्रियता को लेकर अपनों तक को भी नहीं बख्शा। उनके धर्म, न्याय आदि-इत्यादि के किस्से बरसों से जनश्रुतियों में मौजूद हैं। इन किस्सों में कई किस्से चमत्कारिक लगते हैं। इनके सच-झूठ में पड़ने से पहले ये समझ लेना चाहिए कि अहिल्याबाई आज भी जन-जन के हृदय में एक देवी रूप में विराजित हैं और उनके किस्सों में जनता की भावना, आस्था और विश्वास समाहित है।अहिल्याबाई होलकर का नाम सुनते ही लोगों के दिल में उनके प्रति भक्ति भावना जाग उठती है और उनके प्रति सिर श्रद्धा से झुक जाता है। देवी अहिल्याबाई होलकर के प्रति श्रद्धा रखने वालों में 50-60 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या लगभग 97 प्रतिशत मानी जा सकती है, वहीं 30 से 45 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या लगभग 66 प्रतिशत है। इसी प्रकार 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग के ऐसे लोगों की संख्या 45-50 प्रतिशत के लगभग मानी जा सकती है।

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