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हिन्दी भाषा, उसकी उपभाषाएं और संबंधित बोलियां...

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सुशील कुमार शर्मा

भाषा संचार की जटिल एवं विशिष्ट प्रणाली प्राप्त करने और उपयोग करने की क्षमता है। भाषा भगवान का दिव्य उपहार है। भाषा मनुष्य के रूप को पशुओं को अलग करती है। 
 
जॉन स्टुअर्ट मिल ने कहा कि 'भाषा मस्तिष्क का प्रकाश है'। आज के युग में एक या अधिक भाषा का बुनियादी ज्ञान महत्वपूर्ण हो गया है। भाषा सांस्कृतिक समूहों के बीच संचार का प्रमुख माध्यम बन गई है। यह कंपनियों और संगठनों, समुदायों और मित्रों को आपस में जोड़ने वाली प्रणाली है। विटग्नेस्टिन कहते हैं, 'मेरी भाषा की सीमा मेरी दुनिया की सीमा है।' 
 
भाषा का प्रमुख कार्य निम्न 3 पहलुओं को प्रस्तुत करना है-
 
1. भाषा संचार का प्राथमिक वाहन है।
2. भाषा व्यक्ति के व्यक्तित्व और समाज की संस्कृति को दर्शाती है। 
3. भाषाएं संस्कृति का विकास और प्रसारण और समाज की निरंतरता और सामाजिक समूह के प्रभावी कार्य और नियंत्रण को संभव बनाती हैं। 
 
बोली- एक छोटे क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है। बोली में साहित्य रचना नहीं होती है। 
 
उपभाषा- अगर किसी बोली में साहित्य रचना होने लगती है और क्षेत्र का विकास हो जाता है तो वह बोली न रहकर उपभाषा बन जाती है। 
 
भाषा- साहित्यकार जब उस भाषा को अपने साहित्य द्वारा परिनिष्ठित सर्वमान्य रूप प्रदान कर देते हैं तथा उसका और क्षेत्र विस्तार हो जाता है तो वह भाषा कहलाने लगती है। एक भाषा के अंतर्गत कई उपभाषाएं होती हैं तथा एक उपभाषा के अंतर्गत कई बोलियां होती हैं। 
 
भारत में 180 मिलियन से अधिक लोग हिन्दी को अपनी मातृभाषा मानते हैं। एक और 300 मिलियन इसे दूसरी भाषा के रूप में उपयोग करते हैं। भारत के बाहर हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 1,00,000 लोग हैं। मॉरीशस में 6,85,170, दक्षिण अफ्रीका में 8,90,292, यमन में 2,32,760, युगांडा में 1,47,000, सिंगापुर में 5,000, नेपाल में 8 मिलियन, न्यूजीलैंड में 20,000, जर्मनी में 30,000। उर्दू पाकिस्तान की आधिकारिक भाषा है और पाकिस्तान और अन्य देशों में लगभग 41 मिलियन लोगों द्वारा बोली जाती है, मूलतः यह हिन्दी की ही उपभाषा मानी जाती है। 
 
भाषा का जन्म पहले हुआ और उसकी सार्वभौमिकता और एकात्मकता के लिए लिपि का आविष्कार संभव हुआ। बोली या भाषा की सही-सही अभिव्यक्ति की कसौटी ही लिपि की सार्थकता है। प्रतिलेखन और लिप्यांतरण के दृष्टिकोण से देवनागरी लिपि अन्य उपलब्ध लिपियों से बहुत ऊपर है। रोमन और फारसी लिपियां तो इसके समक्ष कहीं भी नहीं ठहरतीं। जहां तक देवनागरी में जटिलता की दुहाई का प्रश्न है, मात्र समझाने के लिए रोमन में 26 अक्षर हैं। 
 
वास्तव में यदि स्माल और कैपिटल आदि पर विचार करें तो ये 26x4=104 अक्षर बनते हैं, जो सर्वाधिक हैं और इतनी संख्या होने पर भी 'जो बोला जाए, वही लिखा जाए' उक्ति पर खरे नहीं उतरते, जबकि देवनागरी लिपि में आप जो सोचते हैं, जो बोलते हैं या जो चाहते हैं वही लिखकर वही पढ़ भी सकते हैं। है किसी अन्य लिपि में यह विशेषता? जबकि देवनागरी विश्व की किसी भी भाषा में जो बोला जाए वही लिख सकने में पूर्णतया सक्षम है। वह भी तब, जब इसमें मात्र 52 अक्षर (14 स्वर और 38 व्यंजन) हैं। 
 
अगर हिन्दी भाषा की बोलियों और उपभाषा की बात करें तो हम पाते हैं कि उत्तर भारत की भाषाओं में 'बोली निरंतरता' है जिसका अर्थ है कि जैसे-जैसे आप किसी भी दिशा में इसे ले जाते हैं, स्थानीय भाषा धीरे-धीरे बदलती है। 
 
हिन्दी संस्कृत, प्राकृत, फारसी और कुछ अन्य भाषाओं के विभिन्न संयोजनों से निर्मित भाषाओं का समूह है। उत्तर भारतीय क्षेत्रों पर शासन करने वाले प्रमुख राज्यों ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग भाषाओं को चुना और विभिन्न राज्यों को अपने ही राज्य के लिए एक पहचान बनाने के लिए चुना। इस पूरी राजनीतिक परिस्थिति ने मिश्रित और नई भाषाओं को विकसित करने के लिए संयुक्त भाषाओं का सर्वश्रेष्ठ चयन किया और हिन्दी उनके बीच एक है। 
 
उत्तर भारतीय राज्यों के हर हिस्से में बोली जाने वाली हिन्दी की विभिन्न बोली का उनका अपना इतिहास है और यह अद्वितीय है। हिन्दी का मुख्य उच्चारण इस समय इस्तेमाल किए जाने वाले मानक हिन्दी के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका मतलब यह है कि हिन्दी विकास के कारण उत्तर भारतीय राज्यों के विभिन्न हिस्सों में नहीं चले, लेकिन इन सभी क्षेत्रों में वास्तव में पूरी तरह से अलग-अलग हिन्दी बोलियां थीं और इन सभी बोलियों में एकमात्र बात सामान्य है। इसकी लिखित लिपि व इनमें से कई बोलियां बहुत भिन्न हैं, क्योंकि इसे अकसर एक स्वतंत्र भाषा के रूप में जाना जाता है।
 
भोजपुरी। हिन्दी बोलने वाले क्षेत्रों में इस विविधता की मौजूदगी के तरीके को समझा जाना बहुत मुश्किल है। 
 
हिन्दी प्राकृत और अपभ्रंश के माध्यम से संस्कृत की सीधी वंशज है। यह द्रविड़ियन, तुर्की, फारसी, अरबी, पुर्तगाली और अंग्रेजी द्वारा प्रभावित और समृद्ध की गई भाषा है। यह एक बहुत ही अभिव्यंजक भाषा है, जो कविता और गीतों में बहुत ही लयात्मक और सरल और सौम्य शब्दों का उपयोग कर भावनाओं को व्यक्त कर कर सकने में सक्षम है। यह सटीक और तर्कसंगत तर्क के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती है। 
 
सर्वप्रथम एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने 1927 ई. में अपनी पुस्तक 'भारतीय भाषा सर्वेक्षण' (A Linguistic Survey of India) में हिन्दी का उपभाषाओं व बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। 
 
हिन्दी समूह की भाषाओं के लिए 2 प्रमुख परिभाषाएं हैं। एक संकीर्ण भाषायी परिभाषा और एक व्यापक राजनीतिक दृष्टिकोण। इन 2 आधारों पर हम हिन्दी की बोलियों का विभाजन कर सकते हैं। भाषायी परिभाषा के आधार पर हम इन्हें 7-9 प्रमुख बोलियां में बांट सकते हैं।
 
1. खड़ी बोली (उत्तर-पश्चिमी उत्तरप्रदेश (रोहिलखंड) और दिल्ली, मानक हिन्दी का आधार)
2. हरियानवी (हरियाणा)
3. ब्रजभाषा (ब्रज भूमि क्षेत्र, दक्षिण/ मध्य-पश्चिमी उत्तरप्रदेश और हरियाणा और राजस्थान के सीमावर्ती हिस्से)
4. कन्नौजी (ब्रजभूमि के पूर्व, कन्नौज शहर के आसपास केंद्रित)
5. बुंदेली (बुंदेलखंड क्षेत्र, उत्तरी-मध्य उत्तरप्रदेश और दक्षिण-मध्य यूपी)
6. बघेली (बघेलखंड क्षेत्र, पूर्वोत्तर मध्यप्रदेश और दक्षिणी यूपी)
7. अवधी (अवध क्षेत्र, मध्य-पूर्वी उत्तरप्रदेश)
8. छत्तीसगढ़ी (छत्तीसगढ़)
9. भोजपुरी और मगधी कभी-कभी इस समूह में शामिल होते हैं, लेकिन कभी-कभी मैथिली, उड़िया और बंगाली के समान समूह में शामिल होते हैं। 
 
व्यापक राजनीतिक परिभाषा में कई भाषाओं को शामिल किया गया है, जो वास्तव में हिन्दी की बोली नहीं हैं लेकिन राजनीतिक कारणों के लिए इसे बोलियां माना जाता है। इस परिभाषा के अनुसार 16 प्रमुख 'बोली' हैं। इस सूची में उपरोक्त बोलियों को शामिल किया गया है। 
 
1. भोजपुरी (पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी बिहार)
2. मगधली (दक्षिणी बिहार और झारखंड के सीमावर्ती हिस्से)
3. मैथिली (पूर्वी बिहार, झारखंड के कुछ हिस्सों और नेपाल के कुछ हिस्सों- बंगाली और उड़िया और मानक हिन्दी के करीब भाषायी)
4. मालवी (पश्चिमी एमपी- भाषावत्, राजस्थान की भाषाओं की तुलना हिन्दी से)
5. राजस्थानी (राजस्थान में बोली जाने वाली संबंधित बोलियों का एक संग्रह- हिन्दी की बजाय पुरानी गुजराती भाषा)
6. मारवाड़ी (एक विशेष रूप से प्रचलित राजस्थानी भाषा)
7. डोगरी-कांगरी (जम्मू और हिमाचल प्रदेश- पश्चिमी पहाड़ी, अधिक हिन्दी से पंजाबी से अधिक निकटता से संबंधित)
8. गढ़वाली (पश्चिमी उत्तराखंड- हिन्दी से अधिक करीबी से पूर्वी पहाड़ी (जैसे नेपाली) से संबंधित)
9. कुमायूंनी (पूर्वी उत्तराखंड- पूर्वी पहाड़ी से अधिक करीबी से संबंधित (जैसे नेपाली) हिन्दी की तुलना में)
 
यह संख्या और बढ़ सकती है यदि उर्दू को हिन्दी की बोली माना जाता है तो। उर्दू को एक अलग भाषा माना जाता है, हालांकि यह वर्तमान में हिन्दी बोलियों के रूप में मानी जाने वाली कई भाषाओं की तुलना में मानक हिन्दी के करीब है। यह हिन्दी भाषा समूह में शामिल करने के लिए यह एक अच्छा मामला है। इससे लगभग 2 या 3 की कुल वृद्धि होगी-
 
10. मानक उर्दू (खड़ी बोली पर आधारित)
11. दखिनी (मराठी, कन्नड़ और तेलुगु द्वारा बहुत प्रभावशाली)
12. संभवत: रेखा (ऐतिहासिक और कवितात्मक बोली)
 
स्पष्ट रूप से बोलियों की यह सूची कहीं भी नहीं है, यह सूची भिन्न हो सकती है। कन्नौजी को ब्रज से मिला दिया जा सकता है और सूची से हटा दिया जा सकता है। सांस्कृतिक दृष्टि से भारत एक पुरातन देश है किंतु राजनीतिक दृष्टि से एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में भारत का विकास एक नए सिरे से ब्रिटेन के शासनकाल में, स्वतंत्रता संग्राम के साहचर्य में और राष्ट्रीय स्वाभिमान के नवोन्मेष के सोपान में हुआ। 
 
हिन्दी भाषा एवं अन्य प्रादेशिक भारतीय भाषाओं ने राष्ट्रीय स्वाभिमान और स्वतंत्रता संग्राम के चैतन्य का शंखनाद घर-घर तक पहुंचाया, स्वदेश प्रेम और स्वदेशी भाव की मानसिकता को सांस्कृतिक और राजनीतिक आयाम दिया, नवयुग के नवजागरण को राष्ट्रीय अस्मिता, राष्ट्रीय अभिव्यक्ति और राष्ट्रीय स्वशासन के साथ अंतरंग और अविच्छिन्न रूप से जोड़ दिया। 
 
हिन्दी के विकास में उसकी बोलियों का बहुत योगदान रहा है। अगर हिन्दी को समृद्ध करना है तो उससे संबंधित बोलियों और उपभाषाओं में साहित्य सृजन जरूरी है।

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