Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ऐसा भोजन करें जो मन को शांति दे!

हमें फॉलो करें ऐसा भोजन करें जो मन को शांति दे!

निर्मला भुरा‍ड़‍िया

क्या हमारे खाने का संबंध हमारे मन के शांत रहने या व्यग्र रहने से है? तो जवाब है- हां है। भारतीय परंपरा में सदा से ये बात मानी जाती रही है कि हम जो खाते हैं उसका संबंध तन से ही नहीं, मन से भी है। इस अनुसार तामसिक भोजन क्रोध और उद्वेग पैदा करता है। राजसी भोजन आलस्य लाता है। सात्विक भोजन मन के लिए शांति और तप के लिए ऊर्जाकारक होता है।

ND


बहुत से नए वैज्ञानिक अनुसंधान इस बात की ताकीद करते हैं। वे भोजन को ठीक इन्हीं तीन प्रकारों में तो विभक्त नहीं करते, मगर यह जरूर बताते हैं कि हम जिस प्रकार का भोजन करते हैं उसका असर हमारे भावनात्मक उद्वेगों पर जरूर पड़ता है।

एक महिला को पैनिक अटैक आते थे। यानी जब यह अटैक आता तब व्यग्रता बहुत बढ़ जाती, ऐसा लगने लगता धड़कन बहुत बढ़ गई है, पसीना आने लगता और घबराहट होने लगती। सारे लक्षण हृदयाघात जैसे मगर हृदयाघात नहीं। तब मनोचिकित्सक ने इस महिला को दवाइयां तो दीं ही मगर साथ ही में एक भोजन-योजना भी बनाकर दी। इस भोजन योजना के अनुसार उन्हें समय पर भोजन करना था। सादा मगर संपूर्ण और पौष्टिक भोजन करना था। डॉक्टर का कहना था- इससे मस्तिष्क भी शांत रहेगा, व्यग्रता के दौरे नहीं आएंगे।

अनाज और दालों से हमें लो ग्लाईकेमिक इंडेक्स वाला भोजन मिल जाता है। यह भोजन शरीर में धीरे-धीरे शर्करा रिलीज करता है। इससे शरीर में लगातार ऊर्जा बनी रहती है, मस्तिष्क शांत रहता है और अधिक समय तक पेट भरे रहने का एहसास होता है। हमारा रोज का भोजन, जिसमें अन्ना, दालें, सब्जियां और दूध होता है, इसी उत्तम भोजन की श्रेणी में आता है।

वहीं भोजन में प्रोटीन हो तो वह हमें ऊर्जा देता है। मगर जब हम हाई ग्लाईकेमिक इंडेक्स वाली चीजें खाते हैं जैसे रिफाइंड शकर, मैदा आदि तो रक्त में शर्करा का स्तर एकदम उछलता है और गिरता है। जब गिरता है तो शरीर और शकर मांगता है। बार-बार और जल्दी-जल्दी भूख लगती है। कचौड़ी, पकौड़ी, बर्गर, पित्जा, पेस्ट्री, गुलाब जामुन आदि इसी गरिष्ठ भोजन की श्रेणी में आते हैं जो व्यक्ति को लद्दू, उत्तेजित और मोटा बनाते हैं। अतः समय पर सामान्य भोजन करने से इस स्त्री को बेहद राहत मिली। वर्ना या तो वह भूखी रहती थी, दुबले होने के लिए कुछ खाती-पीती नहीं थी, या फिर भूख सहन न होने पर तला हुआ, गरिष्ठ जो हाथ पड़ा वह खा लेती थी। यह सब मस्तिष्क में हार्मोनों के उतार-चढ़ाव के जरिए उसके व्यग्रता रोग में और बढ़ोतरी कर रहा था।

दरअसल, अंट-शंट खाने के साथ ही भूख को दबाना भी अवसाद पैदा करता है। अच्छी भूख लगना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी मानी गई है। मगर वेट-वॉच कर रही स्त्रियां भूख लगने से डरती हैं। वेट-वॉच इंडस्ट्री भूख दबाने की गोलियां बेचती है। इसका उल्टा असर होता है। भूख दबाने से वजन घटता नहीं बढ़ता है, क्योंकि इससे पाचक रसों का स्रतवन चक्र बिगड़ जाता है, चयापचय धीमा हो जाता है।

नतीजा यह कि शरीर आपातकाल के लिए वसा जमा करने लगता है। इससे वजन बढ़ता है, सुस्ती बढ़ती है। ग्लूकोज की पूर्ति न होने से एकाग्रता घटती है। अतः तन और मन दोनों की राहत के लिए जरूरी है समय पर, संतुलित, संपूर्ण, सादा, स्वादिष्ट, पौष्टिक भोजन करना। आजकल मनोरोगों के इलाज में भी यह धारा काम कर रही है। मनोचिकित्सक भी मरीज को बताने लगे हैं कि दवाइयों के साथ ही भोजन और व्यायाम की भूमिका उनके जीवन में क्या होनी चाहिए।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi