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दिसंबर का पहला सप्ताह क्रोध ना करने के नाम

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क्रोध पर काबू पाने के सरल तरीके 
 
दिसंबर के पहले सप्ताह को 'राष्ट्रीय क्रोध निरोधक सप्ताह' के रूप में मनाया जाता है। इसे मनाने का लक्ष्य है कि लोग अपने अंदर के क्रोध की भावनाओं पर ध्यान दें और इसे नियंत्रण में रखने की जागरूक कोशिश करें। 
 
गुस्सा सिर्फ जिसे आए उसका ही नुकसान नहीं करता, अपितु आसपास के लोगों पर भी यह बेहद असर डालता है। इसका नतीजा हम घरेलू झगड़ा, प्रताड़ना, पारिवारिक कलह, बदला लेने की प्रवृत्ति, हत्या आदि के रूप में देखते हैं। यह सप्ताह मनाने का कारण ही यह है कि अनियंत्रित क्रोध की गंभीरता को समझा जाए। यह एक सामाजिक विकार है। इसके प्रति जागरूक होकर इसे नियंत्रित करने के कदम उठाए जाएं।
 
क्रोध आने के कई कारण हो सकते हैं। कभी हमें किसी की कोई बात पसंद नहीं आती, तो कभी कोई हमारे अनुसार काम नहीं करता। कभी हमारा किसी चीज को लेकर डर, असुरक्षा की भावना, शंका इत्यादि।
 
यहां यह समझना जरूरी है कि कहीं हम अपने क्रोध को किसी अन्य भावना के प्रतिनिधि या विकल्प के रूप में तो इस्तेमाल नहीं कर रहे। कई बार हमें ही नहीं पता होता कि हमें क्रोध क्यों आ रहा है? ऐसे में स्वयं के विचारों के प्रति जागरूक रहना अतिआवश्यक है। इसी जागरूकता को लाने के लिए राष्ट्रीय क्रोध जागरूकता सप्ताह मनाया जाता है। 
 
इंसान के मन की अन्य भावनाओं की तरह ही क्रोध भी एक सामान्य भावना है जिसका कभी-कभी आना भी लाजिमी है। किन्हीं हालातों में क्रोध आना एक सामान्य प्रतिक्रिया है। जब हम क्रोधित होते हैं तो हमारा शरीर एन्ड्रेलिन का उत्पादन करता है जिससे हम ज्यादा ऊर्जा का अनुभव करते हैं। यह नकारात्मक ऊर्जा हमें तनाव देती है एवं हम असहज महसूस करते हैं जिससे झगड़ने की प्रवृत्ति बढ़ती है। 
 
कुछ लोग अपने क्रोध को भली-भांति नियंत्रित रखना जानते हैं तथा सही मात्रा में क्रोध जाहिर करना जानते हैं। समय आने पर वे उसे सही तरीके से सामने वाले को जाहिर करते हैं। किंतु आज की तेज रफ्तार दिनचर्या में अधिकांश लोग अपने दिमाग को संतुलित नहीं रख पाते और हर छोटी बात पर अपना दिमागी संतुलन खो देते हैं और उन्हें गुस्सा आने लगता है। 
 
क्रोध सिर्फ नकारात्मक नहीं होता, कुछ परिस्थितियों में इसे सकारात्मक रूप से देखना भी जरूरी हो जाता है। गलत बातों पर क्रोध करके, अपना विरोध जताकर हम स्वयं को ऐसी परिस्थिति से बचा लेते हैं जिसकी वजह से हमारा शोषण हो रहा हो। 
 
कई लोगों का मानना होता है कि किसी भी तरह की भावना को दबाना उनके रिश्तों के लिए ठीक नहीं। ये एक हद तक ठीक भी हो सकता है, परंतु हर भावना को जाहिर करने का सही तरीका भी बहुत मायने रखता है। गलत तरह से जाहिर की गई सही बात भी गलत नतीजे देती है। जब कोई व्यक्ति अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर पाता, तब वो स्वयं तो अप्रिय स्थिति का सामना करता ही है, आसपास के लोग भी असहज हो जाते हैं। 
 
कुछ ऐसे तरीके हैं जिन पर अमल करके आप क्रोध को नियंत्रित कर सकते हैं। 
 
1. सबसे पहले तो आपको लगातार अपने विचारों पर गौर करना चाहिए कि किन परिस्थितियों में आप अच्छा महसूस नहीं करते, चिढ़ जाते हैं व आपको गुस्सा आने लगता है। 
2. आपको स्वयं के विषय में ये बातें तो मालूम होना ही चाहिए कि आपको क्या बातें नहीं पसंद आती हैं जिससे कि आप सामने वाले को अपने विषय में स्पष्ट कर सकें। जिससे कि कोई अप्रिय स्थिति की संभावना ही कम हो जाए।
3. हमेशा सभी लोग आपको समझकर आपके अनुसार प्रतिक्रिया नहीं करेंगे, उस स्थिति में आपको अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना होगा।
4. आपको जब समझ आ जाए कि अब आपका गुस्सा फूटने को है, तब आप अपनी सांसों पर गौर कीजिए। आप पाएंगे कि सांसें तेज होंगी और धड़कन भी तेज होगी। 
5. वैसे तो क्रोध को नियंत्रित करने के कई तरीके हैं। लेकिन इस विधि में अगर आप केवल अपनी सांसों की रफ्तार को भी नियंत्रित कर पाएं तो आप पाएंगे कि आपका गुस्सा कुछ ही समय में शांत हो जाएगा। 
6. आप धीमे-धीमे और गहरी सांस लीजिए और लंबी सांस छोड़िए। इस प्रक्रिया को 10 से 15 मिनट दोहराएं। कुछ समय में आप अपने गुस्से के स्तर में सुधार महसूस करेंगे। इसके अलावा आप कुछ अन्य तरीके भी आजमा सकते हैं। 
7. स्वयं को किसी शारीरिक गतिविधि या पसंदीदा खेल में व्यस्त कर लें, जैसे टहलना, दौड़ना, स्विमिंग, साइकलिंग आदि। 
8. आप अपनी पसंद जैसे डांस, सिंगिंग, पेंटिंग या म्यूजिक सुनना आदि शौक पूरा कर अपना ध्यान भटका सकते हैं। 
9. कहीं घूमने चले जाएं जिससे कि आपका ध्यान गुस्से वाली बात से हट जाए।
10. पर्याप्त नींद लें।
 
क्रोध में कोई प्रतिक्रिया देने से बेहतर है कि आप कुछ समय शांत होकर बैठ जाइए और अपने मन के अंदर की सैर कर आइए। आप अपने विषय में थोड़े जागरूक हो जाएंगे और आपको समझ में आ जाएगा कि आप सही मायने में क्या प्रतिक्रिया देना चाहते हैं? फिर जो प्रतिक्रिया आप देंगे, वह ठंडे दिमाग से सोचा हुआ निर्णय होगा न कि आवेश में उठाया गया कदम।
प्रस्तुति : - नम्रता जायसवाल

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