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क्या है कार्पल टनल सिंड्रोम, क्या आप जानते हैं सुन्न हाथ कितने खतरनाक है?

हमें फॉलो करें क्या है कार्पल टनल सिंड्रोम, क्या आप जानते हैं सुन्न हाथ कितने खतरनाक है?
इन दिनों एक शिकायत तेजी से उभर रही है और वह है हाथ का रात में सुन्न पड़ जाना। वास्तव में यह दिक्कत महिलाओं को सबसे ज्यादा हो रही है और साथ में कॉर्पोरेट कल्चर में उलझे व्यक्ति को भी यह सता रही है। रात के समय इसका दर्द बुरी तरह से तड़पा देने वाला होता है। दरअसल यह कार्पल टनल सिंड्रोम की तकलीफ है। आइए जानते हैं यह क्या है और क्यों होता है? 
 
चिकित्सकों के अनुसार कंप्यूटर पर लगातार काम करना या एक ही स्थिति में लंबे समय हाथ को रखने से कार्पल टनल सिंड्रोम की तकलीफ हो सकती है। खास बात यह है कि महिलाओं को इसका खतरा तीन गुना है। 
 
कार्पल टनल सिंड्रोम क्या है 
कार्पल टनल सिंड्रोम हाथ और कलाई में उत्पन्न होने वाला तड़पा देने वाला दर्द है। कार्पल टनल हड्डियों और कलाई की अन्य कोशिकाओं द्वारा बनाई गई एक संकरी नली होती है। यह नली हमारी मीडियन नर्व की सुरक्षा करती है। मीडियन नर्व हमारे अंगूठे, मध्य और अनामिका अंगुलियों से जुड़ी होती है। लेकिन कार्पल टनल में जब अन्य कोशिकाएं जैसे कि लिगामेंट्स और टेंडन सूजन या फूल जाते हैं तो इसका प्रभाव मध्य कोशिकाओं पर पड़ता है। इस दबाव के कारण हाथ सुन्न महसूस होने लग सकता है। साधारणत कार्पल टनल सिंड्रोम ज्यादा गंभीर बीमारी नहीं है। इलाज के साथ,दर्द सामान्यत दूर चला जाएगा और आप को लंबे समय तक हाथ या कलाई में किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।
 
कारण : एक ही हाथ से लगातार काम करने से कार्पल टनल सिंड्रोम की परेशानी हो सकती है। यह सामान्यतः उन लोगों में अधिकतर पाया जाता है जिनके पेशे में कलाई मोड़ने के साथ पिंचिंग या ग्रीपिंग करने की जरूरत होती है। मर्दों की तुलना में औरतों को तिगुना खतरा कार्पल टनल का बना रहता है। औरतों में यह गर्भावस्था के दौरान, मेनोपोज और मोयापा बढ़ने के कारण अधिक होता है। 
 
इसमें वे लोग भी शामिल हैं जो कंप्यूटर पर कार्य करते हैं, कारपेंटर, ग्रॉसरी-चेकर, मजदूर, संगीतकार, मेकैनिक आदि। बागवानी, सुई द्वारा लंबे समय तक काम करना, जैसे टेलरिंग का काम करने वाले। गोल्फ खेलना और नाव चलाने का शौक रखने वाले भी कार्पल टनल सिंड्रोम का शिकार हो सकते हैं। कार्पल टनल सिंड्रोम अन्य चीजों से भी संबंधित होता है। यह कलाई पर चोट लगने के कारण भी हो सकता है फ्रैक्चर या कुछ बीमारियों जैसे मधुमेह, आर्थराइटिस या थाइराइड के कारण भी यह हो सकता है।
 
समाधान : डॉक्टर जांच के बाद बताते हैं कि आपको अपने हाथों का कैसे इस्तेमाल करना चाहिए। वे कुछ जांच भी कर सकते हैं-
 
इस प्रक्रिया में सबसे पहले एनसीवी टेस्ट किया जाता है। इसे नर्व कंडक्शन वेलोसिटी टेस्ट कहा जाता है। इसमें कुछ हल्की बिजली का तार लगाकर करंट दिया जाता है। इसमें हाथों में हल्की झुनझुनाहट जैसा महसूस होता है। इसमें हाथों और बाजुओं की नाड़ी व मांस-पेशियां की जांच की जाती है। इसी से पता चलता है कि कार्पल टनल सिंड्रोम का प्रभाव हाथ में है भी या नहीं।
 
उपचार : यदि कार्पल टनल सिंड्रोम किसी प्रकार की चिकित्सकीय समस्या द्वारा उत्पन्न हुआ है तो डॉक्टर सबसे पहले उस समस्या का उपचार करेगा। फिर वह कलाई को आराम दिलाने को कहेगा या आप कैसे अपने हाथ का इस्तेमाल करते हो उसे बदलने के लिए कहेगा। कलाई में स्प्लिंट बांधने को भी कहा जा सकता है। स्प्लिंट पहनने पर कलाई को हिला-डुला नहीं सकते, लेकिन सामान्य क्रियाएं कर सकते हैं। इसे पहनने से आप को रात में दर्द से राहत मिल जाएगी। कलाई पर बर्फ रखकर उस से मालिश कर सकते हैं और साथ ही कुछ खिंचाव वाले व्यायाम भी इस से निजात दिलाने में आप की मदद कर पाएंगे। यदि सर्जरी की जरूरत नहीं है तो लंबे समय तक अपनी कलाई को नीचे की ओर झुकाकर रखने से राहत मिल सकती है।
 
कुछ केस में इस बीमारी को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए सर्जरी की जरूरत होती है। इस सर्जरी में लिगामेंट काटना शामिल होता है। इसे आपकी मीडियन नर्व में दबाकर काट दिया जाता है। सर्जरी के कुछ ही हफ्तों व महीनों के बाद वापस अपनी कलाई और हाथ का सामान्य रूप से इस्तेमाल कर पाएंगे। हाथ, कलाई और अंगुलियों का व्यायाम करना बहुत ही जरूरी होता है।
 
बिना व्यायाम के आपकी कलाई कठोर हो सकती है और हो सकता है आप अपने हाथ का इस्तेमाल न कर पाएं। डॉक्टर परामर्श देते हैं कि आप दर्द को कम करने के लिए कुछ दवाइयां जैसे आइबूप्रोफेन (मोट्रीन), नैप्रोक्जेन (एलिव), केटोप्रोफेन (ओरूडीस)या एस्प्रिन ले सकते हैं। इसी के साथ डॉक्टर आप को कार्पल टनल में एक दवाई जैसे कोर्टीसोन के साथ इंजेक्शन भी लगा सकते हैं। इससे आप को कुछ समय के लिए सूजन, झुनझुनाहट व दर्द खत्म हो जाएगा।
 
फैक्ट : इस बीमारी को मीडियन नर्व कम्प्रेशन भी कहते हैं। भारत में प्रतिवर्ष 1 करोड़ से अधिक लोग इससे पीड़ित होते हैं।
 
डॉ. सतनाम सिंह छाबड़ा

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