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अमिताभ के रोजगार की चिंता मुझे भी कम नहीं थी

हमें फॉलो करें अमिताभ के रोजगार की चिंता मुझे भी कम नहीं थी
- डॉ. हरिवंशराय बच्चन
अमिताभ ने अपनी स्नातकीय डिग्री के लिए विज्ञान विषय लेकर अपनी मूल प्रवृत्ति को पहचानने में भूल की थी जब परीक्षा-परिणाम संतोषजनक नहीं हुआ। विज्ञान लेकर आगे पढ़ने का रास्ता अब बंद हो गया था। वे अपने जीवन के इक्कीस वर्ष पूरे कर चुके हैं।

मैं अपनी पिछली बीमारी के कारण अपने आगे के जीवन के विषय में शंकालु हो गया हूँ। मैं चाहता हूँ अमिताभ अब किसी काम से लगें। अजिताभ इस वर्ष सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा दे रहे हैं। तीन-चार महीने बाद वे दिल्ली आ जाएँगे। सफल होने पर वे डिग्री कोर्स के लिए तीन वर्ष और आगे पढ़ना चाहेंगे।

जिंदगी हो तो तीन वर्ष और यानी 58 होने तक मैं सरकारी नौकरी में रह सकूँगा, उसके बाद न कोई नौकरी मिलने की संभावना है, न मैं करना ही चाहूँगा। अगर कुछ और आयु शेष है तो स्वतंत्र रूप से कुछ लिखना-पढ़ना चाहूँगा।

आमदनी उससे बहुत अच्छी तो नहीं हो सकती। चाहता हूँ परिवार में कोई-कोई और कौन है?
- अमिताभ ही अर्जन सक्षम हो जाएँ कि यदि अचानक मेरा अंत आ जाए तो वे अपनी माँ और भाई का भरण-पोषण कर सकें, संभव हो तो भाई को आगे पढ़ा सकें।

नवयुवक के लिए यह बड़ा कठिन समय होता है, जब वह विद्यार्थी नहीं रह जाता और नागरिक नहीं हो पाता- जब उसे शिक्षा संस्था के सीमित क्षेत्र से निकलकर खुले संसार का सामना करना पड़ता है, जैसे कोमल सपनों से निकल कटु वास्तविकताओं का- जब उससे प्रत्याशा की जाने लगती है कि वह कोई ऐसा काम खोजे, जिससे वह कुछ कमा सके।

उसे जल्दी सूझता नहीं कि वह क्या करे, कहाँ काम माँगने जाए, किस प्रकार का काम वह कर सकेगा, किस प्रकार का काम उसके मन के अनुकूल होगा। अमित के भी कुछ महीने इसी ऊहापोह में बीते।

अमिताभ की अभिनय में रुचि थी। शेरवुड में, सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए उन्हें केंडल कप मिला था। 'ओथेलो' के नाटक में उन्होंने कैसियो की भूमिका सफलतापूर्वक निभाई थी। फिल्म में जाने की इच्छा उन्होंने एकाध बार प्रकट की थी। फिल्मों की दुनिया में हमारा संपर्क सिर्फ पृथ्वीराज कपूर से था, जो उन दिनों संसद-सदस्य भी थे।

एक बार उन्हें घर पर बुलाकर हमने अमित के फिल्म में जाने की बात चलाई थी, पर उनकी ओर से कोई प्रोत्साहन न मिला। तभी ऑल इंडिया रेडियो में कुछ समाचार पढ़ने वाले लिए जाने वाले थे। अमित ने प्रार्थना-पत्र भेज दिया। उन्हें आवाज-परीक्षण के लिए बुलाया गया, पर उनकी आवाज ना-काबिल पाई गई। पता नहीं रेडियो वालों के पास अच्छी आवाज का मापदंड क्या था।

आज तो अमिताभ के अभिनय में आवाज उनका खास आकर्षण माना जाता है। पर अच्छा हुआ वे रेडियो में नहीं लिए गए। वहाँ चरमोत्कर्ष पर भी पहुँचकर वे क्या बनते? 'मूस मोटाई लोढ़ा होई।' हमारी असफलता और नैराश्य में भी कभी-कभी हमारा सौभाग्य छिपा रहता है।

थोड़े दिनों बाद पता लगा कि बर्ड कंपनी कलकत्ता में एक्जिक्यूटिव पोस्ट के लिए कुछ लोग लिए जाने वाले हैं। वे कलकत्ता गए और बर्ड कंपनी में ले लिए गए। इधर अजिताभ सीनियर कैम्ब्रिज प्रथम श्रेणी में पास हुए और इकॉनॉमिक्स (ऑनर्स) करने के लिए उनका नाम सेंट स्टीफेंस कॉलेज में लिखा दिया गया।

सृजन की दृष्टि से '63 मेरे लिए बहुत अच्छा वर्ष नहीं रहा। पहले तो हार्निया की ऑपरेशनी कमजोरी से मैं न उबरा था, दूसरे अमिताभ के काम मिलने की चिंता जितनी उन्हें थी, उससे कम मुझे नहीं थी; साथ ही इस पर भी मैं दृढ़ था कि मेरे प्रयत्न से काम मिले तो मिले, मेरे संपर्क-संबंधों के प्रभाव से कभी नहीं; अन्यथा उन्हें रेडियो में काम दिला देने के लिए सिर्फ मुझे मुँह खोलने भर की देर थी।

मैं चाहता था अमिताभ जहाँ भी काम शुरू करें अपनी योग्यता-क्षमता सिद्ध करके, किसी के कहने-सुनने, सिफारिश से नहीं। बैसाखी के सहारे चलना शुरू करने वाला कभी अपने पैरों का बल नहीं जानता। मेरी दृष्टि में उन्नति-प्रगति-विकास का पहला कदम आत्मविश्वास है।

(डॉ. बच्चन की आत्मकथा के अंतिम खंड 'दशद्वार से सोपान तक' से)

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