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सदाबहार गीतकार : गोपाल दास नीरज

मरते दम तक लिखता रहूँ....

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प्रख्यात कवि और गीतकार गोपाल दास नीरज का फिल्मी सफर भले ही सिर्फ पाँच साल का रहा हो लेकिन मरते दम तक लिखने के ख्वाहिशमंद इस अदीब को इस अवधि में लिखे गए ‘कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ‘जीवन की बगिया महकेगी’ जैसे अमर गीतों के लिए आज भी रायल्टी मिल रही है।

87वाँ जन्मदिन मनाने वाले नीरज इन दिनों देवानंद जैसे अपने चुनिंदा मित्रों के लिये इक्का-दुक्का गीत ही लिखते हैं। देवानंद ने हाल में अपनी फिल्म ‘चार्जशीट’ के लिए उनसे ‘सूफियाना’ गीत लिखवाया था।

वर्ष 2007 में पद्मभूषण से सम्मानित किये जा चुके नीरज आज भी कवि सम्मेलनों की जान हैं और उनकी रचनाएँ पिछले 70 साल से सुनने वालों को लुभा रही हैं। पहचान की ख्वाहिश से अछूते इस साहित्यकार का यह सफर जारी है और उनकी चाहत है कि वह जब तक जिंदा रहें, अदब की खिदमत करते रहें।

नीरज ने कहा 'अगर दुनिया से रुखसती के वक्त आपके गीत और कविताएँ लोगों की जबान और दिल में हों तो यही आपकी सबसे बड़ी पहचान होगी। इसकी ख्वाहिश हर फनकार को होती है। शायद सचिन देव बर्मन और संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के शंकर जैसे मौसीकीकारों के निधन की वजह से उनका फिल्मी सफर बहुत छोटा रह गया।

लिखे जो खत तुझे’ ‘ए भाई जरा देख के चलो’ ‘दिल आज शायर है, ‘फूलों के रंग से’ और ‘मेघा छाए आधी रात’ जैसे सदाबहार नग्मों के रचयिता नीरज का मानना है,'सचिन देव बर्मन के संगीत ने इन गीतों को यादगार बनाया, इसी वजह से देश-विदेश में मेरे गीतों की रॉयल्टी बढ़ गई है। हिन्दी कवियों की नई पौध के लिये आदर्श बन चुके नीरज के आदर्श प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन हैं।

बच्चन से जुड़ा एक किस्सा बयान करते हुए नीरज ने कहा 'उस वक्त मेरी उम्र करीब 17 बरस रही होगी। हम लोग बांदा में एक कवि सम्मेलन में शिरकत के लिये बस से जा रहे थे। बस खचाखच भरी थी और मुझे सीट नहीं मिली थी। उस वक्त बच्चन जी ने मुझे अपनी गोद में बैठने को कहा था। मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे उनसे इतना स्नेह मिला।'

कवि सम्मेलनों में अब भी सक्रिय नीरज मौजूदा दौर के हिन्दी कवियों के कामकाज से संतुष्ट हैं। उनका कहना है कि नई पीढ़ी के कवि सभी विषयों पर साहसपूर्ण एवं प्रभावी रचनाएँ दे रहे हैं। हिन्दी कविता का भविष्य उज्वल है।

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