Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

ग़ालिब का ख़त-18

हमें फॉलो करें ग़ालिब का ख़त-18
क्यों साहिब,

रूठे ही रहोगे या की मनोगे भी? और अगर किसी तरह नहीं मनते हो तो रूठने की वजह तो लिखो। मैं इस तनहाई में सिर्फ़ ख़तों के भरोसे जीता हूँ, यानी जिसका ख़त आया मैंने जाना कि वह शख्स तशरीफ़ लाया।

Aziz AnsariWD
ख़ुदा का अहसान है कि कोई दिन ऐसा नहीं होता, जो इतराफ़ व जवानिब से दो-चार ख़त नहीं आ रहते हों। बल्कि ऐसा भी दिन होता है कि दो-दो बार डाक का हरकारा ख़त लाता है, एक-दो सुबह को और एक-दो शाम को मेरी दिल्लगी हो जाती है, दिन उनके पढ़ने और जवाब लिखने में गुज़र जाता है। यह क्या सबब? दस-दस, बारह-बारह, दिन से तुम्हारा ख़त नहीं आया।

यानी तुम नहीं आए। ख़त लिखो, साहिब, न लिखने की वजह लिखो। आध आने में बुख्ल न करो। ऐसा ही है तो बैरंग भेजो।

सोमवार, 27 दिसंबर 1858 ई. गा़लिब

  यक़ीन है कि वह ईरान को इरसाल करेगा। उमेदसिंह ने उसी पारसी का नाम भी लिया था, मैं भूल गया। अब जो तुमको इस ख्याल में मुब्तिला पाया, तो उनका मुझको याद आया।      
देखो साहिब, ये बातें हमको पसंद नहीं। सन् 1858 के ख़त का जवाब 1859 में भेजते हो और मज़ा यह है कि जब तुमसे कहा जाएगा तो यह कहोगे कि मैंने दूसरे ही दिन जवाब लिखा है।

लुत्फ़ इसमें है कि मैं भी सच्चा और तुम भी सच्चे। आज तक राय उमेदसिंह यहीं हैं और अभी नहीं जाएँगे। तुम्हारा मुद्दआ़ हासिल हो गया है। जिस दिन वह आए थे, उसी दिन मुझसे कह गए थे। मैं भूल गया और उस ख़त में तुमको न लिखा। साहिब, वे फ़रमाते थे कि मैंने कई मुजल्लद मिर्जा तफ्ता के दीवान के और कई नुस्ख़े 'तज़मीन-ए-अशआ़र-ए-गुलिस्तां' के उनकी ख़ाहिश के बमूजब, कोई पारसी है बंबई में, उसके पासभेज दिए हैं।

यक़ीन है कि वह ईरान को इरसाल करेगा। उमेदसिंह ने उसी पारसी का नाम भी लिया था, मैं भूल गया। अब जो तुमको इस ख्याल में मुब्तिला पाया, तो उनका मुझको याद आया। जानता हूँ कि वे कहाँ रहते हैं। दस बार उनके घर गया भी हूँ। मगर मुहल्ले का नाम नहीं जानता, न मेरे आदमियों में कोई जानता है। अब किसी जानने वाले से पूछकर तुमको लिख भेजूँगा।

मीर बादशाह साहिब से इंदुलमुलाक़ात मेरी दुआ़ कह देना।....

3 जनवरी 1859 ई.

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi