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तो ये है बनारस की अड़ीबाज़ी...

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जयदीप कर्णिक

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बनारस। अपनी बात पर अड़ लेना ये तो शायद पूरे उत्तर भारत की ही ख़ासियत कही जा सकती है। पर अपनी बात पर तर्क और भाषा के साथ अड़ने की बात करेंगे तो बनारस से फिर कोई अड़ नहीं पाएगा। यहाँ कि अड़ी मतलब जहाँ काशी की समस्त सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक चेतना खड़ी। अड़ी मतलब काशी के वो ख़ास अड्डे, वो बैठकें जहाँ बहस-मुबाहिसों, चर्चा और तर्क वितर्क की गंगा प्रवाहित होती है। उसमें भी अस्सी घाट की पप्पू की अड़ी मतलब दुनियाभर में मशहूर वो चाय की दुकान जहाँ की अड़ीबाज़ी सुनना और देखना भी अब बनारस भ्रमण का मुख्य हिस्सा हो गया है। मशहूर उपन्यासकार काशीनाथ सिंह के चर्चित और विवादित उपन्यास अस्सी के काशी में भी यहीं की चर्चाओं का जिक्र है।

वैसे तो आप बनारस में किसी भी पान या चाय की दुकान पर चले जाइए, आपको चर्चाओं का दौर और बनारस की नब्ज़ की कुछ धड़कनें तो मिल ही जाएँगी, पर पप्पू की अड़ी को शोहरत मिली है तो यों ही नहीं मिली है। कमोबेश आज भी यहाँ बनारस की लोकचेतना को बराबर महसूस किया जा सकता है। वक्त के साथ कुछ बदलाव आए हैं पर फिर भी अड़ीबाज़ तो आ ही रहे हैं। कुछ अड़ीबाजों ने किनारा कर भी लिया तो नए आ जाते हैं। साहित्य और पत्रकारिता की नगरी बनारस जिससे कबीर से लेकर प्रेमचंद तक का नाम जुड़ा हुआ है, वहीं ये संभव है कि आप चाय की दुकान में भगवान के स्थान पर पत्रकारों के इतने बड़े फोटो इतने सम्मान से लगे हुए पाएँ। पप्पू की अड़ी पर पत्रकार सुशील त्रिपाठी और अनिल कुमार मिश्र 'झुन्ना' की तस्वीरें बरबस ही आपका ध्यान खींच लेती हैं।

पप्पू मतलब विश्वनाथसिंह 64 वर्ष के हैं।
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उनके पिता गणेश ने ये दुकान शुरू की थी। अस्सी घाट पर होने से ये सहज ही विद्वानों और बुद्धिजीवियों का ख़ास अड्डा बन गया। लंका में टंडन जी की चाय की दुकान और अस्सी के पप्पू की ये अड़ी सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है।


यहां अड़ीबाजी शुरू हुई नरेन्द्र मोदी और लोकसभा चुनाव को लेकर। देखते ही देखते अच्छा खासा मजमा लग गया। भजन गायक अरविंद योगी का कहना है कि मुरली मनोहर जोशी की आक्रामकता के कारण वाराणसी के लोगों के मन में उनके प्रति नफरत है। इस नफरत के कारण ही नरेन्द्र मोदी वाराणसी से उम्मीदवार बनाए गए हैं। वे कहते हैं कि यहां सारे दल एक साथ मिलकर लड़े तो भी उन्हें 40 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिल पाएंगे।

शिक्षक बृजेश्वर त्रिपाठी का कहना है कि नरेन्द्र मोदी के यहां से लड़ने के कई मकसद हैं। वे भारत की किसी भी सीट से लड़ें, उन्हें जीत मिल जाएगी। मोदी बनारस से चुनाव लड़कर पूर्वांचल में भाजपा को मजबूत करना चाहते हैं। बनारस के आसपास की सीटों पर भी भाजपा के उम्मीदवार जीत हासिल करेंगे, क्योंकि मोदी की हवा चल रही है। उत्तरप्रदेश सबसे ज्यादा सीटों वाला प्रदेश है, इसलिए मोदी का काशी से लड़ना महत्वपूर्ण है।

मगर अजय राय तो यहां स्थानीय होने की बात कह रहे हैं? त्रिपाठी का कहना है कि लोकल का यहां कोई मुद्दा ही नहीं है। अजय राय कभी भाजपा में थे, यह भी जनता देख रही है। इसके बाद सपा में चले गए यह भी जनता देख रही है। इसके बाद वे कांग्रेस में आ गए। राय पर जनता को भरोसा नहीं है। मोदी में जनता विकास देख रही है।

वकील सुरेश चौबे का कहना है कि मोदी के चुनाव लड़ने से बनारस में देश-विदेश के लोग नहीं आ रहे हैं, बल्कि काशी एक धर्मस्थली और तीर्थस्थली है, इसलिए सदियों से लोग यहां आते हैं। उनका कहना है बनारस में सांसद का चुनाव नहीं बल्कि प्रधानमंत्री का चुनाव है, इसलिए दुनिया की नजर यहां पर टिकी हुई हैं। मोदी के प्रत्याशी बनने से बनारस के लोगों में आशा की किरण जगी है। मोदी के जीतने से यहां के पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, यहां के हालातमें भी सुधार होगा। यहां की जनता नरेन्द्र मोदी को आशा की किरण के रूप में देख रही है।

व्यवसायी विजय शंकर का मानना है कि काशी को एक आध्यात्मिक नगरी के रूप में जाना जाता है। यह शहर हमेशा दुनिया को देता है, लेकिन विडंबना है कि मोदी के चुनाव लड़ने को यहां की जनता अपना सौभाग्य मान रही है। मोदी ने यहां से लड़कर कोई एहसान नहीं किया है। चुनावी मुद्दों के बीच काशी मृतप्राय: हो गई है। काशी की गरिमा मोदी से बड़ी है। 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' नारे से मोदी महादेव के बराबर नहीं हो सकते हैं।

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