Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

Ganesh chaturthi 2023 : मुंबई और पुणे में गणेश उत्सव का इतिहास

हमें फॉलो करें Ganesh chaturthi 2023 : मुंबई और पुणे में गणेश उत्सव का इतिहास
, मंगलवार, 19 सितम्बर 2023 (12:32 IST)
History of Ganesh Chaturthi: मुंबई और पुणे ही नहीं संपूर्ण महाराष्ट्र में गणपति उत्सव मनाने की प्राचीनकाल से ही परंपरा रही है। हर घर और मंदिर में गणेश उत्सव मनाने की परंपरा प्राचीनकाल से ही रही है, परंतु इसे सार्वजनिक रूप से भव्य पैमाने पर मनाने की परंपरा अंग्रेजों के काल में बाल गंगाधर तिलक ने शुरु की थी।
 
मुबंई और पुणे में गणेश उत्सव का इतिहास-
  • महाराष्ट्र के मुंबई और पुणे में गणपति उत्सव मनाए जाने का प्रचलन ज्यादा रहा है। 
  • महाराष्ट्र में सात वाहन, राष्ट्र कूट, चालुक्य आदि राजाओं ने गणेशोत्सव को भव्य पैमाने पर मनाने की परंपरा प्रारंभ की। 
  • शिवाजी महाराज के बाल्यकाल में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कसबा गणपति की स्थापना की थी। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
  • शिवाजी महाराजा के बाद पेशवा राजाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया।
  • अब तो महाराष्ट्र में हर जगह गणेश पांडाल सजाए जाते हैं।
  • महाराष्ट्र में ही करीब 50 हजार से ज्यादा सार्वजनिक गणेश मंडल हैं। 
  • इसमें से अकेले पुणे में 5 हजार से ज्यादा गणेश मंडल है।
  • ऐसा भी कहते हैं कि गणेश उत्सव की शुरुआत 1892 में हुई जब पुणे निवासी कृष्णाजी पंत मराठा द्वारा शासित ग्वालियर गए। 
  • वहां उन्होंने पारंपरिक गणेश उत्सव देखा और पुणे आकर अपने मित्र बालासाहब नाटू और भाऊ साहब लक्ष्मण जावले जिन्हें भाऊ रंगारी के नाम से भी जाना जाता था, उनसे इस बात करके पहली मूर्ति स्थापित की।
  • लोकमान्य तिलक ने 1893 में अपने अखबार केसरी में जावले के इस प्रयास की प्रशंसा की और अपने कार्यालय में भी गणेश जी की बड़ी मूर्ति की स्थापना की।
  • तिलक ने गणेश जी को 'सबके भगवान' कहा और गणेश चतुर्थी को भारतीय त्योहार घोषित कर इसे सार्जजनिक रूप से मनाने का आह्‍वान किया।
webdunia
बाल गंगाधर तिलक ने दिया सांस्कृतिक और सार्वजनिक उत्सव का स्वरूप:-
  • सार्वजनिक गणपति उत्सव की शुरुआत 1893 में महाराष्ट्र से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की। 
  • 1893 के पहले भी गणपति उत्सव बनाया जाता था पर वह सिर्फ घरों तक ही सीमित था। 
  • उस समय आज की तरह पंडाल नहीं बनाए जाते थे और ना ही सामूहिक गणपति विराजते थे।
  • तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। 
  • तिलक के इस कार्य से दो फायदे हुए, एक तो वह अपने विचारों को जन-जन तक पहुंचा पाए और दूसरा यह कि इस उत्सव ने आम जनता को भी स्वराज के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा दी और उन्हें जोश से भर दिया।
  • इस तरह से गणपति उत्सव ने भी आजादी की लड़ाई में एक अहम् भूमिका निभाई। 
  • तिलक जी द्वारा शुरू किए गए इस उत्सव को आज भी हम भारतीय पूरी धूमधाम से मना रहे हैं और आगे भी मनाते रहेंगे।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Ganesh sthapana 2023 : कैसे करें गणेश स्थापना, जानें संपूर्ण पूजा विधि