Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

शाश्वत है गाँधी दर्शन

संपूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक है गाँधीवाद

हमें फॉलो करें शाश्वत है गाँधी दर्शन

संदीपसिंह सिसोदिया

ND
भारत की आजादी के संघर्ष के दौरान अहिंसात्मक अंदोलन का नेतृत्व करने वाले महात्मा गाँधी को आज की पीढ़ी के कुछ लोग अज्ञानतावश देश का बँटवारा करने वाले गाँधी के नाम से भी पुकारते हैं। उनके संदेशों और जीवनशैली को आज की पीढ़ी सिर्फ एक बोझिल, अति आदर्शवादी विचारधारा तथा चुनाव के समय बताए जाने वाले उपदेशों से अधिक नहीं मानती।

वैचारिक अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग के चलते हर कोई अब गाँधी की अतार्किक आलोचना करने लगा है। महात्मा गाँधी के गाँधीवाद को बिना पढ़े, समझे ही लोगों ने उस पर टीका-टिप्पणी की जिसका परिणाम यह हुआ की गाँधीवाद दर्शन की पुस्तकों में ही सिमटकर रह गया वह कभी विश्व-दर्शन न बन सका और न ही जनआंदोलन।

जिन भी लोगों ने गाँधीवाद या गाँधी दर्शन को समझा है वे बता सकते हैं कि गाँधीवाद सिर्फ किसी व्यक्ति, समाज, संगठन, धर्म या देश के लिए ही नहीं अपितु पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है। यह सकारात्मक प्रतिकार और संघर्ष का मार्ग है जो विनाश नहीं सृजन करता है।

धार्मिक कट्टरता और हिंसात्मक आंदोलन के परिणामों के चलते वर्तमान में गाँधी की प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता। यह सोचा जाना व्यर्थ है कि क्रांति सिर्फ हिंसात्मक आंदोलनों से ही हो सकती है। फ्रांस और रूस की क्रांतियों के असफल होने का कारण ही यह है कि उन्होंने अपने विचार को हिंसात्मक तरीके से समाज पर लादा। समाज या व्यवस्था को अहिंसात्मक आंदोलनों से भी परिवर्तित किया जा सकता है। भारत की आजादी इस बात का श्रेष्ठ उदाहरण है।

महात्मा गाँधी ने आत्म-विकास और समाज-विकास के लिए श्रीमद्भभगवद् गीता, बाइबिल, कुरान इत्यादि धार्मिक ग्रंथों से, हेनरी डेविड थोरो जैसे पश्चिमी और पूर्वी विचारकों के आदर्शों को आत्मसात कर अपने व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन में उपयोग किया।

webdunia
ND
गाँधीवाद अन्याय और शोषण की समाप्ति शांतिपूर्ण व अहिंसात्मक उपायों द्वारा ही करना चाहता है। गाँधी ने इन आदर्शों को दक्षिण अफ्रीका में निवास के दौरान तथा भारत के अपने सामाजिक-राजनीतिक जीवन में जिस प्रकार से व्यावहारिक रूप से प्रयोग किये, उन्हीं के निष्कर्षों को गाँधीवाद कहा जाता है।

गाँधी दर्शन के प्रमुख सिद्धांत है; सत्य तथा अहिंसा। इसके अन्य आधार हैं अष्टाँग योग के प्रथम चरण यम के अन्य तीन अंग- अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। आश्रम के निवासियों के लिए उन्होंने जो व्रत निर्धारित किये, उनमें कुछ अन्य सिद्धान्त भी जोड़े- जैसे ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शरीर श्रम, अस्वाद, सर्वत्र भय वर्जनं, सर्वधर्म समानत्वं, स्वदेशी, स्पर्श भावना।

जब इन सिद्धान्तों को व्यावहारिक तौर पर उपयोग में लाया गया तो कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी शुरू हुए, जिनमें प्रमुख हैं:- वर्ग-सहयोग, विकेंद्रीकरण, हृदय-परिवर्तन व सत्याग्रह। समाज के उत्थान के लिए कुछ रचनात्मक कार्यक्रम स्थूल रूप में शुरू किए गए - सांप्रदायिक एकता, अस्पृश्यता-निवारण, मद्यनिषेध, खादी-प्रचार, ग्रामोद्योग, सफाई की शिक्षा, बुनियादी तालीम, हिन्दी-प्रचार, अन्य भारतीय भाषाओं का विकास, स्त्रियों की उन्नति, स्वास्थ्य-शिक्षा, प्रौढ़-शिक्षा, इसी प्रकार देशहित के लिए आर्थिक समानता, कृषक-संगठन, श्रमिक-संगठन, विद्यार्थी-संगठन और स्वतंत्रता (धार्मिक, वैचारिक, आर्थिक) के लिए तथा स्वराज (सुशासन) के लिए निरंतर संघर्ष।

अन्याय और शोषण के विरुद्ध निर्भीकता से संघर्ष करते हुए आत्मबलि देना ही शायद गाँधीवाद की मुख्य पहचान है। इसमें कोई संदेह नहीं कि दक्षिण और वामपंथी कट्टरता के दौर के चलते भारत जैसे विविध धर्मों, संस्कृतियों व भाषाओं वाले देश में गाँधीवाद ही सफल हो सकता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi