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हंसी-ठिठोली के संग हास्य कवि की कामना

हमें फॉलो करें हंसी-ठिठोली के संग हास्य कवि की कामना
- सूर्यकुमार पांडेय 

* होली पर सु-नामी हास्य कवियों  की बढ़ती मांग 
 

 
मूलतः वह हास्य का एक सु-नामी, मेरा मतलब है अच्छे नाम वाला कवि है। नाम वाला है, इसलिए बदनाम भी है क्योंकि 'जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है।' हास्य कवि कहलाने में उसको लिजलिजेपन का बोध होता है। वह अपने आप को हमेशा ही व्यंग्य का कवि बताता है। व्यंग्यकार कहलवा कर वह आभिजात्य मानसिकता से सराबोर हो उठता है। 
 
अपने यहां आज भी हास्य को हेय और व्यंग्य को प्रेय समझने का चलन है। उस कवि को आलोचकों से सदैव यही शिकायत रही कि वे हास्य की चाशनी में लिपटे हुए उसके व्यंग्य की मारक धार नहीं देख पाते हैं। ऊपर ही ऊपर चाट कर रह जाते हैं। 
 
होली है और हास्य कवि रचना-कर्म में तल्लीन है। फागुन के चलते कवि के भीतर लाफ्टर का रेडियोधर्मी रिसाव होने लग गया है। वह हास्य के ताप और पारिश्रमिक के आंतरिक दाब को सतत बर्दाश्त कर रहा है। उसे लगातार कवि सम्मेलनों में जाना है। आयोजनों में जाते ही उसके भीतर के हास्य के ईंधन की छड़ें जैसे ही वाह-वाही वाली हवा के संपर्क में आती हैं, उनमें विस्फोट होने लग जाता है। 
 
हालांकि वह हर बार वही पुरानी रचनाएं सुना आता है किंतु इस बार प्रेशर में है। आयोजकों ने साफ कह रखा है, कुछ नया लिखा हो तभी आइएगा। वह लिखता ही चला जा रहा है। वह रात में सिर के नीचे चुटकुलों की किताब रख कर सोता है। दिन में शीशे के सामने खड़ा होकर रिहर्सल करता है। धरती हिले या आसमान फट जाए, वह इससे बेपरवाह है। 
 
वह कवि क्या, जो प्राकृतिक आपदाओं से डर जाए? कहा भी गया है- आग लगी बस्ती में, कवि जी अपनी मस्ती में, अगर कवि भी भूकंप, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, घोटालेबाजी, अन्याय, शोषण आदि से डर गया तो समाज को कौन राह दिखलाएगा? कवि को यह गफलत है कि क्रिकेटर, फिल्म स्टार जैसों के होते हुए भी समाज को दिशा देने की क्षमता उसके ही पास है। 
 
साल भर बाद सुअवसर आया है। होली में हास्य कवियों की सहालग होती है। हास्य कवि सम्मेलनों की बाढ़ आ जाती है। जिन्हें हंसना होता है, वे इन हास्य कवियों को बुलवा भेजते हैं। महानगरों में दो-दो महीने पहले से ऐसे कवियों की बुकिंग चालू हो जाती है। ग्लैमर वाले कवियों के तो भाव ही नहीं मिलते। छुटभैयों तक की बन आती है। वे तक खाली नहीं मिलते। महामूर्ख सम्मेलन, मूढ़ सम्मेलन, टेपा, ठहाका, हंसगुल्ला कार्यक्रमों में सप्लाई हो जाते हैं। 
 
तो हास्य कवि मस्त है। होली के मस्त माहौल में सबको अपनी लहरों में डुबा लेने की आकांक्षा लिए वह भगवान से प्रार्थना कर रहा है, प्रभु, अपने देश की मस्ती को यूं ही बरकरार रखना, जिससे वह हंसी के रंग बिखेरता रहे।

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