Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कैसे निभाएँ दोस्ती

हमें फॉलो करें कैसे निभाएँ दोस्ती
अखिलेश श्रीराम बिल्लौर

WDWD
इस नश्वर संसार में भाई-बहन, माता-पिता, मामा-मामी आदि अनेक रिश्ते हैं, जिन्हें समाज ने पारिवारिक नाम दिया है। इन रिश्तों की अपनी-अपनी मर्यादाएँ हैं। सीमाएँ हैं, बंधन हैं, पवित्रता है। इन्हीं रिश्तों के आगे एक और अहम रिश्ता मनुष्य कायम करता है, जिसमें न कोई धर्म है, न जात-पात और न ही कोई ऊँच-नीच। वह रिश्ता है दोस्ती का। जी हाँ दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें दो दोस्त आपस में एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हैं। एक-दूसरे का सुख-दु:ख बाँटते हैं।

एक सच्चा दोस्त वह होता है जो अपने दोस्त को गलत रास्ते पर जाने से रोके। उसके हित में ऐसा कार्य करे जिसमें चाहे उसे अपनी दोस्ती तक का बलिदान क्यों न करना पड़े। दोस्ती जैसे पवित्र रिश्ते में किसी भी प्रकार की हीन भावना को स्थान नहीं मिलता। जैसे वह अमीर है, मैं गरीब हूँ, वह ऊँचे कुल का मैं नीच इ‍त्यादि। यदि दो पढ़ने वाले बच्चों में अगर दोस्ती है तो उनका रिश्ता कितना निर्मल होता है। इस बात का अंदाजा हम इसी उदाहरण से लगा सकते हैं कि वह बालक पहले अपने दोस्त की बात मानता है फिर दूसरे की।

बचपन की दोस्ती के मायने ही अलग रहते हैं। कोई भी अपने बचपन के दोस्त को नहीं भूल सकता। दोस्त के साथ वह मस्ती, वह खेलकूद, पढ़ाई में सुखद प्रतिस्पर्धा, एकसाथ खाना, स्कूल जाना, एक-दूसरे के सुख-दु:ख को समझना, आपसी भावना की कद्र करना, ये सब बचपन में आप-हम सभी ने किए हैं। इस मौके पर फिल्म दोस्ताना का वह गीत मुझे याद आ रहा है जो परदे पर अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा पर फिल्माया गया- उसके बोल हैं- बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा सलामत रहे दोस्ताना हमारा...

दोस्ती का जिक्र आए और यह गाना याद न आए शायद बिरला ही ऐसा होता होगा। इसमें गीतकार ने बचपन की उन तमाम गतिविधियों को उल्लेखित किया है, जो आमतौर पर दो सच्चे दोस्तों के बीच संचालित होती हैं। वे दोनों दोस्त बड़े होकर गीत के रूप में बचपन याद करते हैं, बड़ा अच्छा लगता है। सच्ची दोस्ती ही सच्चा प्यार होता है। यह मायने भी गीतकारों ने अपनी रचनाओं के जरिए बताए हैं।

दोस्त अपने दोस्त की भावना की कद्र करके उसकी गलती को छुपाए, बताए नहीं, अपने दोस्त को सचेत नहीं करे, तो वह दोस्त नहीं है। सच्चे दोस्त की परिभाषा में यह नहीं आता कि दोस्त का वर्तमान उसका भविष्य बिगाड़ दे और दोस्त उसे देखता रहे। स्कूली छात्र यदि पेन नहीं लाया है, भूल गया है और उसका दोस्त उसे दोस्ती की शान बताकर यह कहकर पेन दे देता है कि ये ले, मैं हूँ न, तू भूल आया तो क्या हुआ।

लेकिन दोस्तों यह सच्चे दोस्त की निशानी नहीं, नादानी है। इससे आपके भुलक्कड़ दोस्त की आदत ही खराब होगी। अच्छा होता यह कि आप उससे कहते- आज पहली बार भूलकर आया है तो दे देता हूँ, अगली बार भूलेगा तो पेन नहीं मिलेगा। इसमें आपके दोस्त को हो सकता है कुछ देर बुरा लगे लेकिन यह उसके भले के लिए उपयुक्त है। उसे अहसास होना चाहिए कि मेरा दोस्त मेरे भले के लिए कह रहा है। इस प्रकार की भावना यदि उसके मन में विकसित हो गई तो अगली बार वह भूल नहीं करेगा और आप समझ जाना कि मेरी दोस्ती कामयाब हो गई।

यह दोस्ती में कठोरता का उदाहरण है। कठोरता भी ऐसी पवित्र कि जिसमें दोस्ती भी न टूटे और दोस्त भी बना रहे। ध्यान रहे सच्चे दोस्त बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। लेकिन दोस्तों की परीक्षा भी कभी लेनी नहीं चाहिए क्योंकि दोस्ती की परीक्षा जब सचाई के धरातल पर उतरती है तब बहुत तकलीफ होती है। दोस्ती में धोखा, फरेब, झूठ, बेईमानी का कोई स्थान नहीं होता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लोग दोस्ती का दम तो भरते हैं लेकिन वक्त आने पर दोस्ती निभाने में भोलेपन में मूर्खता कर बैठते हैं जो हानिकारक हो जाती है।

प्रसिद्ध पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियों में भी इसी विषय को लेकर ज्ञानवर्धक उदाहरण दिए गए हैं। कैसे एक भोले बंदर की दोस्ती राजा को भारी पड़ती है। कैसे एक मगर अपनी पत्नी की बातों में आकर अपने दोस्त बंदर को मारने के लिए उतारू हो जाता है। इसी प्रकार सच्ची दोस्ती के भी उदाहरण इन कहानियों में मिल जाएँगे। इनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। कैसे निभाई जाए दोस्ती, इस बारे में काफी अच्छी-अच्छी जानकारियाँ मिलती हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi