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असम से नदारद हो गई हैं प्यारी गौरैया!

पूरे असम से गायब होती जा रही हैं गौरैया!

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देश के कई भागों से, खास कर असम से गौरैया नदारद हो गई हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि संचार टावरों से विद्युत चुंबकीय विकिरण, सीसायुक्त पेट्रोल का वाहनों में उपयोग और खेती में कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल की वजह से गौरैया नदारद हुई हैं।

लखीमपुर के क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक प्रबल सैकिया ने बताया ‘यह सच है कि गौरैया पूरे असम से गायब होती जा रही हैं। न वह घरों में नजर आती हैं और न ही पेड़ों पर।’ सैकिया ने कहा कि घरेलू गौरैया के बारे में गुवाहाटी, लखीमपुर, धेमाजी, सोनितपुर, जोरहाट और तिनसुकिया जिलों में किए गए अनुसंधान से पता चला है कि ऊपरी असम के दिखोवमुख इलाके में ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे तथा उसकी सहायक नदियों दिखोव और मितोंग के किनारे बड़ी संख्या में गौरैया देखी गईं।

उन्होंने कहा ‘दिखोवमुख में इतनी अधिक संख्या में गौरैया पाए जाने का कारण यह है कि वहां अपेक्षाकृत कम प्रदूषण है, फूस की झोपड़ियों की संख्या अधिक है और पर्यावरण सुरक्षा के बारे में जागरूकता है।’ ‘नेचर्स बेकन्स’ नामक संरक्षण संगठन के पर्यावरण कार्यकर्ता हीरेन दत्ता ने दिखोवमुख में सर्वे के दौरान पाया कि कृष्णासिगा गांव में एक मकान के बरामदे में कुछ गौरैया ने एक कॉलोनी बना रखी थी।

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दत्ता ने पाया कि वहां से मोबाइल का एक टावर करीब था लेकिन पांच घोंसलों में गौरैया के आठ जोड़े आराम से रह रहे थे। उन्होंने कहा कि राज्य में गौरैया के सर्वे और अध्ययन जारी हैं इसलिए अभी यह नहीं कहा जा सकता कि असम में कितनी गौरैया हैं।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी के निदेशक डॉ. असद रहमानी की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जिसने ‘वन्यजीव, पक्षियों और मधुमक्खियों पर संचार टावरों के विकिरण के संभावित असर’ का अध्ययन किया।

समिति द्वारा पेश रिपोर्ट के अनुसार, मोबाइल टावरों से होने वाला विद्युत चुंबकीय विकिरण गौरैया और मधुमक्खियों की संख्या घटने के लिए जिम्मेदार है।

पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन का हवाला देते हुए समिति ने एक घटना का जिक्र किया है जब विद्युत चुंबकीय विकिरण के संपर्क में आने के बाद केवल साढ़े पांच मिनट में 50 भ्रूण नष्ट हो गए थे। इसके अलावा, विकिरण से प्रभावित गौरैया अपनी रचनात्मक क्षमता और दिशाबोध खो देती है। (भाषा)

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