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अशोक सिंघल : प्रोफाइल

हमें फॉलो करें अशोक सिंघल : प्रोफाइल
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के नायक रहे विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) संरक्षक अशोक सिंघल अपने जीवनकाल में ही भव्य राम मंदिर निर्माण की हसरत दिल में ही लेकर चले गए। मंदिर आंदोलन के मुख्य रणनीतिकार रहे सिंघल चाहते थे कि उनके ही जीवनकाल में यहां राम का भव्य मंदिर बन जाए, लेकिन उनकी यह हसरत पूरी नहीं हुई और आज उनका करीब ढाई बजे हरियाणा में गुडगांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में निधन हो गया। 
अस्पताल में महज दो दिन पहले उनका हालचाल लेने पहुंचे गृहमंत्री राजनाथ सिंह और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया से मुलाकात के बाद सिंघल ने कहा था, मैं अभी ठीक हूं, मुझे कुछ नहीं हुआ है। अभी तो अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाना है।       
 
उनके अनन्य सहयोगी चम्पत राय ने बताया कि 89 वर्षीय सिंघल ने दो बजकर 24 मिनट पर अंतिम सांस ली। वे पिछले कई दिनों से बीमार थे। उन्हें 14 नवम्बर को सांस लेने में गंभीर शिकायत के बाद इलाहाबाद से लाकर मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें गहन चिकित्सा कक्ष में जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया था।
 
राय ने बताया कि विहिप नेता का अंतिम संस्कार बुधवार को दिल्ली के निगम बोध घाट पर अपरान्ह तीन बजे किया जाएगा। उनकी अस्थियां अयोध्या समेत देश के 50 स्थानों पर ले जाई जाएंगी। अस्थियां उत्तराखंड के हरिद्वार, उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन, इलाहाबाद, वाराणसी, चित्रकूट के साथ ही अंडमान निकोबार, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, पश्चिम बंगाल समेत सभी राज्यों में प्रमुख नदियों में विसर्जित की जाएंगी।
 
सन् 1926 में उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे सिंघल 20 वर्षों तक विहिप के कार्यवाहक अध्यक्ष रहे। अस्वस्थ रहने की वजह से उन्होंने दिसम्बर 2011 में यह पद छोड़ दिया था। उनके स्थान पर प्रवीण भाई तोगड़िया को विहिप का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया था।
 
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से 1950 में इंजीनियरिंग में स्नातक करने से पहले ही वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। उन्हें संगीत से भी लगाव था। सन् 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित विहिप के धर्म संसद में विवादित राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के प्रस्ताव पारित होते ही सिंघल राम मन्दिर आंदोलन के नायक बनने की ओर पहली बार बढ़े थे।
 
विहिप संरक्षक के साथ काम कर चुके उनके सहयोगियों का मानना है कि सिंघल के पास गजब की सांगठनिक क्षमता थी। वे चंद समय में ही किसी को भी अपना बना लेते थे। राम मंदिर की न्यायालय में पैरवी करने वाले और सिंघल के साथ कई वर्ष रहे त्रिलोकी नाथ पाण्डेय ने उनके साथ बिताए क्षणों को याद करते हुए कहा कि अयोध्या और राम उनकी आत्मा में बसते थे।
 
पाण्डेय ने बताया कि अक्टूबर नवम्बर 1990 की तरह 17 अक्टूबर 2003 को भी अयोध्या की ओर आने वाली रेलगाड़ियों और बसों आदि को आने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी गई थी, लेकिन पाबंदियों को धता बताते हुए सिंघल न सिर्फ अयोध्या पहुंच गए, बल्कि मंदिर निर्माण के लिए 'अयोध्या कूच' आंदोलन का नेतृत्व किया।  वे विहिप मुख्यालय कारसेवकपुरम पहुंच गए और विहिप कार्यकर्ताओं पर हो रहे पुलिसिया लाठीचार्ज का विरोध किया। पुलिस ने उन्हें भी पीटा और बाद में गिरफ्तार कर लिया।
 
पाण्डेय कहते हैं अविवाहित सिंघल में अदम्य साहस था। दो नवम्बर 1990 को अयोध्या में गहरी चोट खाने के बावजूद वे कारसेवकों के बीच डटे रहे, हालांकि उस दिन कई कारसेवक मारे गए थे। सिंघल का यूं तो ज्यादातर समय प्रयाग (इलाहाबाद) के संघ के प्रचारक के रूप में बीता, लेकिन उन्होंने अयोध्या में भी काफी समय बिताया। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के संस्थापक अध्यक्ष रहे दिगम्बर अखाड़ा के महंत दिवंगत परमहंस रामचन्द्र दास के साथ बिताए क्षणों को याद कर वे भावुक हो जाया करते थे।
 
विहिप नेता दलितों और पिछड़ों के उत्थान पर जोर देते थे। वे अक्सर कहा करते थे कि हिन्दुत्व का मतलब है कि सभी का उत्थान। जब तक दलितों और अनुसूचित जनजातियों का विकास नहीं होगा। वे शिक्षा और सामाजिक दृष्टि से ऊपर नहीं आएंगे तब तक हिन्दुत्व संपूर्ण नहीं होगा।
 
अयोध्या वे अंतिम बार गत 13 जून को आए थे। चौदह से 29 जून तक यहां श्रीराम जन्मभूमि न्यास की बैठक थी। इन्हीं दिनों में उन्होंने विवादित धर्मस्थल में प्रतिष्ठापित 'रामलला' के दर्शन किए थे। उन्हें विहिप कार्यकर्ता व्हील चेयर पर बैठाकर ले गए थे। यह उनका रामलला का अंतिम दर्शन था। उस दिन भी उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं कि मंदिर निर्माण हो, लेकिन खूनखराबे के बगैर। (वार्ता)

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