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उत्पन्ना एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा, क्यों करते हैं इस दिन उपवास?

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Utpana Ekadashi 2023: मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार 8 दिसंबर 2023 शुक्रवार को रखा जाएगा। उत्पन्ना एकादशी के दिन विष्णु की एक शक्ति स्वरूप एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। कहते हैं कि देवी ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था।
 
उत्पन्न एकादशी का व्रत क्यों रखते हैं?
  • मान्यता के अनुसार इस दिन स्वयं माता एकादशी को आशीर्वाद दिया था और इस व्रत को महान व पूज्नीय बताया था।
  • कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के पूर्वजन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • जो व्यक्ति उत्पन्ना एकादशी का व्रत करता है उस पर भगवान विष्णु जी की असीम कृपा बनी रहती है।
  • उत्पन्ना एकादशी व्रत करने से हजार वाजपेय और अश्‍वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
  • इससे देवता और पितर तृप्त होते हैं।
  • इस व्रत को करने से सभी तीर्थों का फल मिलता है।
  • इस व्रत को विधि-विधान से निर्जल व्रत करने से मोक्ष वा विष्णु धाम की प्राप्ति होती है।
  • व्रत के दिन दान करने से लाख गुना वृद्धि के फल की प्राप्ति होती है।
  • यह व्रत निर्जल रहकर करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।
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उत्पन्ना एकादशी की कथा-Utpanna ekadashi katha:-
 
उत्पन्ना एकादशी की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार सतयुग में एक मुर नामक दैत्य था जिसने इन्द्र सहित सभी देवताओं को जीत लिया। भयभीत देवता भगवान शिव से मिले तो शिव जी ने देवताओं को श्रीहरि विष्‍णु के पास जाने को कहा। क्षीरसागर के जल में शयन कर रहे श्रीहरि इंद्रसहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर उठे और मुर दैत्य को मारने चन्द्रावतीपुरी नगर गए। 
 
सुदर्शन चक्र से उन्होंने अनगिनत दैत्यों का वध किया। फिर वे बद्रिका आश्रम की सिंहावती नामक 12 योजन लंबी गुफा में सो गए। मुर ने उन्हें जैसे ही मारने का विचार किया, वैसे ही श्रीहरि विष्‍णु के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया।
 
जागने पर श्रीहरि को उस कन्या ने, जिसका नाम एकादशी था, बताया कि मुर को श्रीहरि के आशीर्वाद से उसने ही मारा है। खुश होकर श्रीहरि ने वैतरणी/उत्पन्ना एकादशी देवी  को सभी तीर्थों में प्रधान होने का वरदान दिया। इस तरह श्री विष्णु के शरीर से माता एकादशी के उत्पन्न होने की यह कथा पुराणों में वर्णित है।
 
इस एकादशी के दिन त्रिस्पृशा यानी कि जिसमें एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि भी हो, वह बड़ी शुभ मानी जाती है। इस दिन एकादशी का व्रत रखने से एक सौ एकादशी व्रत करने का फल मिलता है।
 


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