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5 नवंबर को है सेहत और धन का पर्व धनतेरस, जानिए कैसे मनाएं त्योहार

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पं. हेमन्त रिछारिया

कैसे मनाएं धनत्रयोदशी (धनतेरस)
 
धनत्रयोदशी से दीपावली पर्व का प्रारंभ हो जाता है। ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के उपरांत धनत्रयोदशी के दिन ही भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लिए प्रकट हुए थे। धन्वंतरि भगवान विष्णु के अंशांश अवतार माने जाते हैं। भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के जनक कहे जाते हैं।
 
प्रात:काल क्या करें-
 
धनतेरस के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने के उपरांत भगवान धन्वंतरि की पंचोपचार
पद्धति से पूजा करें। सर्वप्रथम एक चौकी पर भगवान धन्वंतरि का चित्र, जिसमें वे अमृत कलश लिए हों, स्थापित करें। तत्पश्चात उस चित्र की धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य व आरती से पूजा करें। इस प्रकार धनत्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से आरोग्य एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
 
मध्यान्ह काल-
 
भगवान धन्वंतरि की पूजा के उपरांत अपरान्ह (दोपहर) में नवीन वस्तुओं का क्रय करें। नवीन वस्तुओं का क्रय करते समय ध्यान रखें कि खरीददारी में चांदी की कोई वस्तु अवश्य हो। धनत्रयोदशी के दिन चांदी खरीदने से वर्षभर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
 
सायंकाल (प्रदोषकाल)-
 
धनत्रयोदशी के दिन सायंकाल यमराज के निमित्त दीपदान करें। इसे 'यम दीपदान' कहा जाता है। घर के मुख्य द्वार के बाहर गोबर का लेपन करें तत्पश्चात मिट्टी के 2 दीयों में तेल डालकर प्रज्वलित करें। दीये प्रज्वलित करते समय 'दीपज्योति नमोस्तुते' मंत्र का जाप करते रहें एवं अपना मुख दक्षिण दिशा की ओर रखें। धनत्रयोदशी के दिन 'यम दीपदान' करने से घर-परिवार में किसी सदस्य की अकाल मृत्यु नहीं होती है।
 
प्रदोषकाल समय-
 
शास्त्रानुसार प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट तक रहता है। मतांतर से कुछ विद्वान इसे 1 घड़ी (24 मिनट) सूर्यास्त से पूर्व तथा 1 घड़ी (24 मिनट) सूर्यास्त के पश्चात तक का भी मानते हैं।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमंत रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र

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