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ध्यान में होने वाले अनुभव- 3

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अनिरुद्ध जोशी

ध्यान के अनुभव निराले हैं। पहले भाग में हम लिख आए हैं कि ध्यान के शुरुआती अनुभव कैसे होते हैं। जब मन मरता है तो वह खुद को बचने के लिए पूरे प्रयास करता है। जब विचार बंद होने लगते हैं तो मस्तिष्क ढेर सारे विचारों को प्रस्तुत करने लगता है। ध्यान में कई तरह के भ्रम उत्पन्न होते हैं लेकिन उन सभी के बीच साक्षी भाव में रहकर जाग्रत बने रहने से धीरे-धीरे सभी भ्रम और विरोधाभास हट जाते हैं।
 
 
शुरुआती ध्यान के अनुभव में हमने बताया था कि पहले भौहों के बीच अंधेरा दिखाई देने लगता है। अंधेरे में कहीं नीला और फिर कहीं पीला रंग दिखाई देने लगता है। नीला रंग आज्ञा चक्र एवं जीवात्मा का रंग है। नीले रंग के रूप में जीवात्मा ही दिखाई पड़ती है। पीला रंग जीवात्मा का प्रकाश है। अन्य रंगों की उत्पत्ति दृश्यों और ऊर्जा के प्रभाव से होती है।
 
 
निरंतर ध्यान करते रहने से सभी रंग हट जाते हैं और सिर्फ नीला, पीला या काला रंग ही रह जाता है। अब इस दौरान हमारे मन-मस्तिष्क में जैसी भी कल्पना या विचारों की गति हो रही है उस अनुसार दृश्य निर्मित होते रहते हैं। कहीं-कहीं स्मृतियों की परत-दर-परत खुलती रहती है, लेकिन ध्यानी को सिर्फ ध्यान पर ही ध्यान देने से गति मिलती है। एक गहन अंधकार और शांति का अनुभव ही विचारों और मानसिक हलचलों को सदा-सदा के लिए समाप्त कर सकता है।
 
 
यह अनुभव जब गहराता है, तब व्यक्ति का संबंध धीरे-धीरे ईथर माध्‍यम से जुड़ने लगता है। वह सूक्ष्म से सूक्ष्म तरंगों का अनुभव करने लगता है और दूर से दूर की आवाज भी सुनने की क्षमता हासिल करने लगता है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति ईथर माध्यम से जुड़कर कहीं का भी वर्तमान हाल जानने की क्षमता की ओर कदम बढ़ा सकता है। सिद्धियां गहन अंधकार और मन की गहराइयों में छुपी हुई हैं।

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