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क्या 'केजरीवाल' के अच्छे दिन आ गए हैं?

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-ब्रजमोहन सिंह
एग्जिट पोल्स के नतीजों को देखें तो अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पार्टी को दिल्ली का सबसे बड़ा “पॉवरहाउस” बना दिया है। महज दो साल पहले बनी पार्टी ने वो कुछ कर दिखाया है जिसको बड़ी पार्टियाँ सालों में हासिल नहीं कर पाती हैं। 
 
एग्जिट पोल के आकलन की पुष्टि अगर असली नतीजे कर दें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा कि पूरी ताक़त लगाने के बाद आखिर गलती कहाँ हुई और कैसे हुई?
मोदी और अमित शाह की जोड़ी लगातार चुनाव जीतती आ रही है, क्या अब इनका जादू सर से उतर रहा है? क्या उन तमाम लोगों का मोदी से मोह भंग हुआ है, जो बहुत जल्द मोदी सरकार से बहुत कुछ हासिल करने की उम्मीद पाले हुए थे। 
 
इन आठ महीनों में क्या मोदी वह हासिल नहीं कर पाए, जिसको लोगों को अपेक्षा थी। सवाल कई हैं, जो लोगों के जेहन में अभी उमड़-घुमड़ रहे होंगे। 
 
अरविन्द केजरीवाल ने फरबरी 2014 में दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया था, उसके बाद पार्टी के कार्यकर्ताओं में हताशा भर गई, पार्टी के कई बड़े नेता “आप” से विमुख भी हुए, लेकिन केजरीवाल ने हिम्मत नहीं हारी। दिल्ली की हर गली, नुक्कड़ और बड़ी-बड़ी सोसाइटीज में केजरीवाल ने अपनी मौजूदगी बढ़ा ली।
 
जो लोग कुछ समय पहले तक ‘आप' को मजदूरों, ऑटोरिक्शा वालों की पार्टी कहते थे, वो बहुत बड़ी गलती कर रहे थे। आप ने बहुत कम समय में उस लोअर मिडिल क्लास, मिडिल क्लास और युवाओं के एक बहुत बड़े तबके को अपने पक्ष में कर लिया।
 
बीजेपी में रहा नेतृत्व का संकट : हर्षवर्धन के केंद्र में मंत्री बन जाने के बाद दिल्ली बीजेपी के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया, विजय गोयल और जगदीश मुखी सरीखे नेताओं में वह मास अपील नहीं थी कि वह केजरीवाल के सामने खड़े हो सकें।
 
दिल्ली में पिछले साल भर से किरण बेदी के बीजेपी में शामिल होने की चर्चा थी, लेकिन बेदी दिल्ली के दंगल में कूदने की हिम्मत नहीं कर पा रही थीं, डर था कि कहीं बीजेपी में उनके नाम को लेकर विद्रोह न हो जाए। बेदी जब बीजेपी में आईं तो उनके ऊपर “आउटसाइडर, और मौकापरस्त” होने का इल्ज़ाम लगा। 
 
पब्लिक डिबेट से कांग्रेस गायब? : वहीँ 15 साल तक सरकार में रही कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ी परीक्षा की घड़ी है। दिल्ली में चुनाव अभियान शुरू हुआ तो कांग्रेस नेताओं को यकीन नहीं था कि वह सारी सीटों पर चुनाव भी लड़ पाएंगे। अरविंदर लवली की जगह पर अजय माकन को जब पार्टी की कमान दी गई तो ऐसा लगा कि कांग्रेस मुकाबला करेगी।
 
इस चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस की चर्चा नहीं हुई। चर्चा में नहीं रहना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था। एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं की कांग्रेस का दिल्ली में कहीं सफाया न हो जाए। उम्मीद थी कि 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जो वोट बैंक कांग्रेस से निकल आम आदमी पार्टी की तरफ चला गया था वह वापस आ जाएगा, लेकिन ऐसा होता हुआ फिलहाल नहीं लगता। दो साल पुरानी पार्टी क्या आगे चलकर कांग्रेस की जगह ले लेगी, क्या कांग्रेस का वजूद खतरे में है, ऐसे कई सवाल जेहन में उठ रहे हैं।    
 
क्या लोगों का मोदी से डिसकनेक्ट हुआ है? : दिल्ली में झुग्गी वालों से लेकर सरकारी दफ्तर और कॉर्पोरेट में काम कर रहे लोगों के जुबान पर एक ही सवाल है कि मोदी जितनी बातें करते हैं, उतना काम क्यों नहीं हो रहा। अगर काम हो रहा है, तो उसके नतीजे लोगों तक क्यों नहीं पहुंचे? लोगों को बीजेपी की नीतियों का फायदा कब पहुंचेगा?
दिल्ली चुनाव के नतीजे मोदी और केजरीवाल दोनों के लिए काफी अहम हैं। अब दोनों को सोचना होगा कि आने वाले दिनों में सिर्फ वादों से काम नहीं होगा, नतीजे रखने होंगे। 
 
जनता सबकी खबर लेती है, जनता निर्दयी भी है, क्रूर फैसला भी करती है। नेताओं को पता है जो बयार दिल्ली में बह रही है, वह उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल और पंजाब हर जगह जाएगी। जो हवा का रुख जो पहचान लेगा, वही आगे तक जाएगा। 
    

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