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भारत-जापान की कुंडली का मेल

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सुरेश बाफना

भारत और जापान चाहे तो दुनिया के बाजार में अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकते है। आज दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे की पूरक बन गई है। जापान की पूँजी व उच्च टेक्नोलॉजी भारत की अर्थव्यवस्था को नए शिखर पर पहुँचाने में सहायक बन सकती है, वहीं भारत का कच्चा माल व मानव संसाधन जापानी कंपनियों को भारी लाभ पहुँचा सकता है।

भारतीय जनमानस में जापान की छवि 'लव इन टोक्यो' या 'मेरा जूता है जापानी...' के रूप में आज भी अंकित है। जापानी वेशभूषा किमोनो में लिपटी युवतियाँ व उनके हाथ में रंग-बिरंगा पंखा आज भी हमारी कल्पना में छाया हुआ है। दुनिया में जापान की स्थिति इस मायने में विशिष्ट है कि आधुनिक मूल्यों व टेक्नोलॉजी को अपनाने की प्रक्रिया में उसने अपनी मूल्यवान परंपराओं को नहीं खोया है। इस अर्थ में जापान भारत के काफी निकट है। डेढ़ हजार साल पहले जापान को बुद्ध के विचारों ने इतना अधिक प्रभावित किया कि आज बुद्धिज्म जापान का प्रमुख धर्म बन गया है।

टोक्यो में सातवीं शताब्दी में निर्मित असाकुसा बुद्ध मंदिर में प्रवेश करने पर आपको यह अहसास ही नहीं होगा कि आप भारत से 7 हजार किलोमीटर दूर है। अगरबत्ती की गंध में सराबोर वातावरण में बुद्ध की प्रतिमा के सामने हाथ जोड़कर खड़े जापानी भारतीय मंदिरों की याद ताजा कर देते हैं। जापानी घरों में आज भी जूते पहनकर अंदर जाने की अनुमति नहीं है। बुद्ध की जन्मभूमि होने के कारण जापानी भारत को एक तीर्थस्थल के रूप में देखते हैं। जापान की अर्थव्यवस्था अमेरिका के साथ गहरे जुड़ी हुई है, लेकिन संस्कृति के स्तर पर जापानी भारत को सबसे अधिक निकट महसूस करते हैं।

तीस साल पहले जब कोई भारतीय जापानी से मिलता था तो उसकी पहली टिप्पणी यह होती थी कि भारतीय करी (फूड) बहुत स्वादिष्ट होती है, वहीं आज वह सबसे पहले भारत की आईटंी उद्योग की उपलब्धियों को याद करता है।

टोक्यो में अकासाका इलाके की छोटी परचूनी दुकान में एक अधेड़ महिला (रेस्तराँ में काम करने वाली) यह जानने को बेहद उत्सुक थी कि भारत आईटी के क्षेत्र में इतना आगे कैसे निकल गया? जापान के ऑटोमोबाइल व इलेक्ट्रॉनिक उद्योगों ने दुनिया के बाजार पर आज भी अपना आधिपत्य जमाया हुआ है। ऑटोमोबाइल उद्योग में जापान का दबदबा इतना अधिक बढ़ गया है कि डेढ़ साल पहले टोक्यो में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने अमेरिकी कंपनी के कार शोरूम का उद्घाटन किया था।

जापान की जिंदगी में टेक्नोलॉजी का प्रयोग इतना अधिक है कि वहाँ टॉयलेट सीट पर भी इलेक्ट्रॉनिक डैशबोर्ड लगा हुआ है। सड़कों पर रोबोट ट्रैफिक सिग्नल देते हुए दिखाई देते हैं। उद्योग में भी कई बिंदुओं पर रोबोट का इस्तेमाल किया जा रहा है। लंबे अरसे तक भारत जापान के लिए कच्चे माल का स्रोत बना रहा है, लेकिन आईटी की सफलता ने भारत की छवि को पूरी तरह बदल दिया है।

एक साल पहले भारत की सॉफ्टवेयर कंपनी ने बीमार जापानी बैंक के लिए ऐसा सॉफ्टवेयर निर्मित किया कि वह बैंक आज मुनाफा कमा रहा है। इस घटना ने जापानी उद्योगपतियों को यह सोचने के लिए विवश किया कि भारत और जापान मिलकर दुनिया के बाजार में अपना प्रभुत्व स्थापित कर सकते हैं।

सुजुकी कंपनी भारत से प्रतिवर्ष 3 लाख कारों का निर्यात करना चाहती है। जापान के पास विश्वव्यापी ब्रांड, पूँजी व टेक्नोलॉजी है और भारत के पास कच्चा माल व युवा इंजीनियरों की फौज उपलब्ध है। जापान में श्रम महँगा होने के कारण उत्पादन की लागत बढ़ जाती है और विश्व बाजार की प्रतियोगिता में वह पिछड़ जाता है। जापान के लिए यह भी चिंता का विषय है कि भारतीय बाजार में दक्षिण कोरिया की कंपनियों ने अपनी गहरी पैठ बना ली है। जापानी कंपनियों के लिए भारत एक बड़ा बाजार होने के साथ-साथ उत्पादन का हब भी है।

जापान की एक बड़ी समस्या यह है कि वहाँ वर्किंग आबादी में भारी कमी हो रही है और वृद्ध लोगों की संख्या में तेजी के साथ बढ़ोतरी हो रही है। जनसंख्या विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान जन्म व मृत्यु दर के हिसाब से वर्ष 2050 में जापान की आबादी 25 प्रतिशत कम हो जाएगी। दूसरी तरफ अमेरिका, चीन व योरपीय देशों में भी युवाओं की आबादी में कमी हो रही है, वहीं भारत में युवाओं की आबादी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जापान में आज भारतीयों की आबादी लगभग 14 हजार है। अधिकतर भारतीय प्रोफेशनल और बिजनेसमैन हैं। भारतीय भोजन की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि टोक्यो शहर में ही 400 से अधिक भारतीय रेस्तराँ हैं। इन रेस्तराँओं में आपको 90 प्रतिशत जापानी दिखाई देंगे और इनमें भी अधिकतर जापानी युवतियाँ।

जापानी युवतियों में यह मिथ प्रचलित है कि मसालेदार भारतीय भोजन से उनकी खूबसूरती में इजाफा होता है। जापानियों की आम धारणा है कि बातचीत के दौरान अधिकांश भारतीय हावी होने की कोशिश करते हैं। समय की पाबंदी और अनुशासन के मामले में जापानियों का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। दूसरे विश्वयुद्ध में जापान राखके ढेर में तब्दील हो गया था। देशभक्ति, अनुशासन, प्रतिभा व कड़ी मेहनत के बल पर ही जापानियों ने अपने देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया के शिखर पर पहुँचाया है।

कोई भी जापानी 10-12 घंटे से कम काम नहीं करता है। काम के प्रति इतने अधिक समर्पण की वजह से उनको वर्कोहालिक की संज्ञा दी गई है। जापानी समाज की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह भी है कि वहाँ अन्य विकसित देशों की तुलना में आर्थिक समानता का स्तर काफी कम है। न्यूयॉर्क की सड़कों पर आपको भिखारी व बेघरबार लोग दिखाई देंगे, लेकिन चार दिन की यात्रा के दौरान टोक्यो की सड़कों पर एक भी भिखारी नहीं दिखाई दिया।

यदि कोई जापानी कंपनी वित्तीय संकट का शिकार होती है तो पहले उन लोगों के वेतन में आनुपातिक कटौती होती है, जो सबसे अधिक वेतन पाते हैं। अमेरिका में जहाँ व्यक्ति को केंद्र में रखा जाता है, वहीं जापान में टीम भावना व संस्था सबसे आगे होती है।

जापान और भारत के बीच सालाना 6 अरब डॉलर का व्यापार यह रेखांकित करता है कि दोनों देशों ने एक-दूसरे की उपेक्षा की है। आज दोनों देशों की अर्थव्यवस्था एक-दूसरे की पूरक बन गई है। जापान की पूँजी व उच्च टेक्नोलॉजी भारत की अर्थव्यवस्था को नए शिखर परपहुँचाने में सहायक होगी तो भारत में उपलब्ध कच्चा माल व मानव संसाधन जापानी कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम बनाएगी।

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