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इतिहास के आईने में बजट

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कुछ पूर्व ‍वित्तमंत्रियों के बजट भाषण के मुख्य अंश
हम उस तीर्थयात्री की तरह महसूस कर रहे हैं, जो अपने थके हुए अंगों को खींच, घसीटकर अन्ततः पर्वत शिखर पर पहुँच जाता है और अपनी आँखों के आगे केवल और भी ऊँची-ऊँची पहाड़ियों को भी फैले हुए पाता है। -आरके षणमुखम चेट्टी
(1948-49 का बजट प्रस्तुत करते हुए)

एक वित्तमंत्री के लिए घाटों और अतिरिक्त करों के प्रस्तावों के साथ सदन में आना सुखद नहीं है, लेकिन एक वित्तमंत्री भी उसी तरह परिस्थितियों की पैदाइश होता है, जैसे कि कोई भी अन्य। ... मैंने हमेशा यह माना कि अंतिम विश्लेषण में एक सरकारी बजट एक मानवीय दस्तावेज होता है, इस दृष्टि से कि इसमें देशभर के करोड़ों स्त्री-पुरुषों की भावनाएँ और अनुभव तथा उनकी प्रतिक्रियाएँ समाहित रहती हैं। -जॉन मथाई
(1949-50 और 50-51 का बजट प्रस्तुत करते हुए)

हमें यह मानना चाहिए कि हमारी सफलता स्वयं हमारे ऊपर निर्भर करती है... हमारी शक्ति और हमारे विवेक पर, हमारी एकता और हमारे आपसी सहयोग पर, हमारे उन लोगों की भावना पर जिनकी सेवा का अवसर हमें मिला हुआ है। -जवाहरलाल नेहरू
(58-59 का बजट पेश करते हुए)

यदि हम सिर्फ किसी तात्कालिक लाभ के लिए विकास की मौजूदा रफ्तार को कम हो जाने देते हैं, तो हम आने वाले समय के लिए विकास की तीव्र गति से होने वाले संचीय लाभों से हमेशा के लिए वंचित हो जाएँगे। यदि विकास की जरूरतें अनिवार्य हैं, तो सामाजिक कल्याण के कुछ चुनिंदा उपायों की जरूरत भी अनिवार्य है। वित्त व्यवस्था को आमदनी, खपत और सम्पत्ति के समानता के लक्ष्य को अधिकाधिक पूरा करना चाहिए, संसाधनों की किसी तात्कालिक जरूरत के बावजूद। -इंदिरा गाँधी
(70-71 का बजट पेश करते हुए)

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