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परी : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

बॉलीवुड में हॉरर फिल्मों पर उम्दा काम कम हुआ है। वर्षों पहले रामसे ब्रदर्स अपने सीमित साधन के बूते पर फ्रंट बैंचर्स के लिए डरावनी फिल्में बनाते रहे। बाद में यह जिम्मा विक्रम भट्ट ने उठा लिया। एक ही फॉर्मूले पर उन्होंने इतनी सारी फिल्में बना डाली कि फॉर्मूला तार-तार हो गया, दर्शक उब गए, लेकिन विक्रम थके नहीं। बीच में रामगोपाल वर्मा ने कुछ अच्छी हॉरर मूवीज़ बनाई थीं। 
 
अनुष्का शर्मा बतौर निर्माता कुछ अलग करना चाहती हैं। एनएच 10 में उनका प्रयास बहुत सफल रहा था, लेकिन फिल्लौरी में बात नहीं बन पाई। अब हॉरर फिल्म 'परी' लेकर अनुष्का हाजिर हुई हैं। हॉरर फिल्म का नाम परी अजीब जरूर लगता है, लेकिन फिल्म की मुख्य किरदार रुखसाना जो कि शुरुआत में खूब डराती हैं, बाद में दर्शकों की सहानुभूति हासिल कर लेती है, शायद इसीलिए इसे परी कहा गया है। 
 
परी में हॉरर, इमोशन और रहस्य के जरिये रोमांच पैदा किया गया है। फिल्म में माहौल तो बढ़िया बनाया गया है, लेकिन कहानी उतनी दमदार नहीं है। हालांकि कहानी की कमियां तब उजागर होती है जब अच्छी खासी फिल्म आंखों के सामने से गुजर जाती है और दर्शक फिल्म से बंधा रहता है और दिलचस्पी बनी रहती है। 
 
कोलकाता में अर्णब (परमब्रता चटर्जी) की कार से टकराकर एक महिला की मौत हो जाती है। कार उसके पिता चला रहे थे। जिस महिला की मौत होती है वह शहर से दूर एक गंदी सी झोपड़ी में रहती है। वहां पर पुलिस के साथ जब अर्णब जाता है तो रुखसाना (अनुष्का शर्मा) नामक उस महिला की बेटी वहां उन्हें मिलती है। रुखसाना के पैरों में जंजीर बंधी हुई है। उसके कपड़े गीले हैं और उसे एक अंधेरी और गीली जगह में बांध कर रखा हुआ है। 
 
रुखसाना एक दिन अर्णब के घर पहुंच जाती है। वह डरी हुई है और उसका कहना है कि उसे कुछ लोग मारना चाहते हैं। उसकी हालत देख अर्णब उसे अपने घर रख लेता है और अपनी मंगेतर पियाली (ऋताभरी चक्रवर्ती) से यह बात छिपा कर रखता है। अर्णब को रुखसाना के बारे में कुछ पता नहीं है। वह यह नहीं जानता कि यह आम लड़की नहीं है। रुखसाना को ढूंढते हुए प्रोफेसर (रजत कपूर) अर्णब के घर आता है, रुखसाना की असलियत से परिचित कराता है और रहस्य की कई परतें खुलती हैं। 
 
अभिषेक बैनर्जी और प्रोसित रॉय की कहानी थोड़ी हट कर जरूर है, लेकिन इसमें कई ऐसे प्रश्न हैं जिनके जवाब नहीं मिलते। परी अचानक कैसे इतनी शक्तिशाली हो जाती है? फिल्म में शुरुआत के बाद पुलिस नजर ही नहीं आती। अर्णब के घर पर इतना हंगामा होता रहता है, लेकिन किसी को पता नहीं चलता। परी की अजीबो-गरीब हरकतों के बावजूद अर्णब बिना उससे डरे इतना विश्वास उस पर क्यों करता है? 
 
कहानी का दूसरा कमजोर पहलू यह है कि इसे बंगला देश में वर्षों पूर्व घटी एक घटना से जोड़ा गया है। जिसमें इफरित (बुरी आत्माएं) महिलाओं को गर्भवती बना देती थी ताकि उनकी आबादी बढ़े। यह सारा किस्सा बहुत ही कन्फ्यूजिंग है और इसे ठीक से समझाया नहीं गया है। इसलिए जब यह किस्सा शुरू होता है तो फिल्म ट्रेक से उतर जाती है। 
 
 
फिल्म की कमियां अंत में तेजी से उभरती है जब कहानी को समेटने की कोशिश की जाती है, जबकि फिल्म की शुरुआत शानादर हुई थी। 
 
प्रोसित रॉय निर्देशक के रूप में कुछ हद तक दर्शकों को बांधने में सफल रहे हैं। उन्होंने वो कोलकाता दिखाया है जब मानसून इस शहर पर मेहरबान होता है। गहरे बादलों से ढंका कोलकाता, बारिश, हल्की रोशनी, गीलापन को उन्होंने इस तरह से पेश किया है कि सिनेमाघर में बैठे-बैठे महसूस होने लगता है कि बाहर बारिश हो रही है। 
 
माहौल तो निर्देशक ने अच्छा बना लिया, लेकिन कहानी की कमियों ने उनके निर्देशन को प्रभावित किया। कई बार उन्होंने दर्शकों को चौंकाया तो कई बार लगा कि वे यह कोशिश कर रहे हैं। फिल्म के अंत में वे रुखसाना के किरदार के प्रति सहानुभूति में पैदा करने में सफल रहे, लेकिन जरूरी नहीं है कि यह बात सभी को पसंद आए। 
 
अनुष्का शर्मा का अभिनय बेहद शानदार है। एक अजीब सा व्यवहार करने वाली लड़की के रूप में उन्होंने खौफ पैदा किया है। कई बार वे डरावनी से ज्यादा मासूम लगी हैं। परमब्रत चक्रवर्ती बेहतरीन कलाकार हैं और उन्होंने अपने अभिनय से कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वे अभिनय कर रहे हैं। रजत कपूर का किरदार बेहद अस्पष्ट है। उसे विलेन जैसा क्यों पेश किया गया, इसका जवाब नहीं मिलता। हालांकि रजत का अभिनय अच्‍छा है। ऋताभरी चक्रवर्ती अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। 
 
फिल्मी की सिनेमाटोग्राफी उम्दा है। संपादन में और कसावट लाई जा सकती थी। 
 
परी देखने का मजा तभी लिया जा सकता है जब ज्यादा उम्मीद के साथ न जाया जाए। 
 
बैनर : क्लीन स्लेट फिल्म्स, कृअर्ज एंटरटेनमेंट, केवायटीए प्रोडक्शन्स 
निर्माता : अनुष्का शर्मा, कर्नेश शर्मा 
निर्देशक : प्रोसित रॉय
संगीत : अनुपम रॉय 
कलाकार : अनुष्का शर्मा, परमब्रता चटर्जी, रजत कपूर, ऋताभरी चक्रवर्ती, रजत कपूर
सेंसर सर्टिफिकेट : केवल वयस्कों के लिए * 2 घंटे 16 मिनट 
रेटिंग : 2.5/5 

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