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घायल वंस अगेन : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें घायल वंस अगेन : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

संन्यास के बाद भी जब सौरव गांगुली ने आईपीएल में खेलना जारी रखा तब उनका स्वर्णिम दौर गुजर गया था और उन्हें नौसिखिए गेंदबाजों के आगे जूझते देख उनके प्रशंसकों भी ऐसा लगा कि उन्हें अब खेलना बंद कर देना चाहिए। कुछ ऐसा हाल सनी देओल का भी हो गया है। सुनहरा दौर बीत चुका है। 58 वर्ष की उम्र में लार्जर देन लाइफ किरदार के लिए वे फिट नज़र नहीं आते। घायल, घातक या गदर का सनी देओल पीछे छूट चुका है जो दहाड़ता था तो सिनेमाघर थर्रा उठता था। वे उस सनी देओल की अब परछाई मात्र हैं। 
 
'घायल' (1990) फिल्म का सीक्वल 'घायल वंस अगेन' लेकर सनी हाजिर हुए हैं और इस फिल्म में 90 के दशक का हैंगओवर उन पर अभी भी है। उस दौर की फिल्मों में किसी लड़की से बलात्कार हो जाता था तो वह अपने आपको मुंह दिखाने लायक नहीं मानते हुए आत्महत्या कर लेती थी। अब फिल्मों में इस तरह के सीन नहीं आते क्योंकि बलात्कार में लड़की की कोई गलती नहीं होती, परंतु 'घायल वंस अगेन' में इस तरह के दृश्य देखने को मिलते हैं। इस कारण 'घायल वंस अगेन' ऐसी फिल्म नजर आती है जिसकी एक्सपायरी डेट बहुत पहले खत्म हो चुकी है। 
 
'घायल' के अंत में अजय मेहरा (सनी देओल) को सजा हो जाती है। 'घायल वंस अगेन' में दिखाया गया है कि अजय भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ इतना बड़ा नाम हो चुका है कि लोग उसके साथ सेल्फी लेते हैं। चार टीनएजर्स वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी करते हैं। कैमरे में एक मर्डर भी दर्ज हो जाता है। शक्तिशाली बिज़नेसमैन राज बंसल (नरेन्द्र झा) का बेटा यह मर्डर करता है। इन चार किशोरों से टेप ‍छीनने की कोशिश शुरू हो जाती है। इन किशोरों और राज बंसल के बीच अजय मेहरा नामक दीवार खड़ी हो जाती है। 
फिल्म की कहानी ठीक  है, लेकिन स्क्रीनप्ले ने मामला गड़बड़ कर दिया है। सनी देओल और साथियों ने स्क्रीनप्ले और संवाद लिखे हैं। स्क्रीनप्ले 90 के दशक की फिल्मों की याद दिलाता है और इस पर 'घायल' की छाप नजर आती है। घायल में जो रोमांच, दमदार संवाद, सही उतार-चढ़ाव थे वो इसके सीक्वल में नदारद हैं। 
 
फिल्म में बहुत सारी बातें कहने की कोशिश की गई है, लेकिन मामला जम नहीं पाता। साथ ही यह दर्शकों को भी कन्फ्यूज करता है। समय का ध्यान ही नहीं रखा गया है। घटना घंटों में है या दिनों में, पता ही नहीं चलता। बस भागम-भाग चलती रहती है। 
 
साथ ही फिल्म विलेन को फोकस करती है। दर्शक सनी देओल को देखने आए हैं, लेकिन सनी को बहुत कम संवाद मिले हैं। फिल्म देखते समय कई तरह के प्रश्न भी उठते हैं जिनका जवाब नहीं मिलता। पीछा करने के कुछ दृश्य उबाने की हद तक लंबे है, जैसे शॉपिंग मॉल में इन बच्चों के पीछे बंसल के आदमी लगे रहते हैं। 
 
सनी देओल ने अभिनय के साथ-साथ लेखन और निर्देशन की जिम्मेदारी भी निभाई है। फिल्म को सनी ने लुक तो आ‍धुनिक दिया है, लेकिन फिल्म को वे आउटडेटेट होने से नहीं बचा पाए। घायल से सीक्वल को जोड़ने की कोशिश में जरूर कामयाब रहे हैं, लेकिन फिल्म को वे मनोरंजन नहीं बना पाए। उन्होंने अपनी ही खूबियों का उपयोग नहीं किया। 
 
फिल्म का काफी हिस्सा हॉलीवुड एक्शन को-ऑर्डिनेटर डान ब्रेडले ने फिल्माया है क्योंकि फिल्म में लंबे एक्शन सीक्वेंसेस हैं। ड्रामे में बोरियत होने के कारण ये एक्शन सीन भी रोमांचित नहीं करते। 
 
सनी देओल एक्शन दृश्यों में फिट नजर नहीं आते। इमोशनल सीन में वे और बुरे लगे हैं। खलनायक के रूप में नरेन्द्र झा अप्रभावी रहे। वे सनी की टक्कर के विलेन नहीं लगते। अमरीश पुरी की तरह वे दहशत पैदा नहीं कर सके। सोहा अली खान का कैरेक्टर फिल्म में न भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। ओम पुरी को फिल्म में इसलिए रखा गया ताकि पिछली फिल्म से कड़ी जोड़ी जा सके। मनोज जोशी थोड़ा मनोरंजन करते हैं। 
 
'घायल वंस अगेन' से बेहतर है कि 'घायल' ही दोबारा देख ली जाए। 
 
बैनर : विजयेता फिल्म्स
निर्माता-निर्देशक : सनी देओल
संगीत : शंकर-एहसान-लॉय
कलाकार : सनी देओल, सोहा अली खान, ओम पुरी, नरेन्द्र झा, शिवम पाटिल, आंचल मुंजाल, ऋषभ अरोरा, डायना खान, टिस्का चोपड़ा  
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 6 मिनट 44 सेकंड 
रेटिंग : 1.5/5 

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