Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बाजीराव मस्तानी ‍: फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें बाजीराव मस्तानी ‍: फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

बाजीराव मस्तानी की कहानी पर फिल्म बनाने का सपना संजय लीला भंसाली वर्षों से संजोये हुए थे जो अब जाकर साकार हुआ। उन्होंने यह फिल्म सलमान खान और ऐश्वर्या राय को लेकर प्लान की थी और अब इसे रणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा और दीपिका पादुकोण के साथ बनाया है। फिल्म एक लंबे 'डिस्क्लेमर' से शुरू होती है जो कि किसी तरह के विवाद से बचने की पतली गली है। स्पष्ट है कि यह बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी पर आधारित है, लेकिन निर्देशक ने ड्रामे को मनोरंजक बनाने के लिए अपनी ओर से भी बहुत कुछ जोड़ा है।
 
फिल्म एन.एम. इनामदार के उपन्यास 'राउ' पर आधारित है। मराठा शासक बाजीराव पेशवा (रणवीर सिंह) से बुंदेलखंड के राजा अपनी बेटी मस्तानी (दीपिका पादुकोण) के जरिये दु‍श्मन से निपटने के लिए मदद मांगते हैं। बाजीराव अपनी सेना लेकर पहुंच जाते हैं। मस्तानी भी युद्ध में बाजीराव के साथ हिस्सा लेती है। उसके सौंदर्य और बहादुरी से बाजीराव प्रभावित होते हैं। दूसरी ओर मस्तानी, बाजीराव के इश्क में दीवानी हो जाती है। बाजीराव उसे बताते हैं कि वे शादीशुदा हैं। काशी (प्रियंका चोपड़ा) उनकी पत्नी है, एक बेटा है, लेकिन मस्तानी तो इश्क में डूब चुकी थी।  
 
युद्ध के बाद बाजीराव पूना अपने नए महल शनिवारवाड़ा में लौट आते हैं। कुछ दिनों बाद मस्तानी भी बुंदेलखंड से पूना आ जाती है। जब बाजीराव और मस्तानी की मोहब्बत की बात बाजीराव की पत्नी काशी और मां (तनवी आजमी) को पता चलती है तो उन्हें दु:ख पहुंचता है। मस्तानी का अपमान किया जाता है। 
 
मस्तानी हिंदू पिता और मुस्लिम मां की संतान है, मुस्लिम धर्म को मानती है इस वजह से ब्राह्मण इस रिश्ते का विरोध करते हैं। बाजीराव देखते हैं कि मस्तानी को मान-सम्मान नहीं मिल रहा है तो वे मस्तानी से विवाह रचा लेते हैं और उसके लिए मस्तानी महल बनवा देते हैं। तमाम विरोधों के बावजूद मस्तानी और बाजीराव का इश्क कम होने के बजाय दिन-प्रतिदिन परवान चढ़ता है और कहानी मुख्यत: काशी, बाजीराव और मस्तानी के इर्दगिर्द घूमती है। 
फिल्म का स्क्रीनप्ले प्रकाश आर. कपाड़िया, संजय लीला भंसाली और मल्लिका दत्त घारडे ने मिलकर लिखा है। इसमें कितना हकीकत है और कितना फसाना, ये तो वे ही बेहतर जानते हैं, लेकिन स्क्रीनप्ले इस तरह से लिखा गया है कि फिल्म बांध कर रखती है। एक के बाद एक बेहतरीन दृश्य आते रहते हैं और आप बाजीराव-मस्तानी-काशी की दुनिया में खो जाते हैं।
 
फिल्म एक शानदार युद्ध दृश्य से शुरू होती है और फिर बाजीराव-मस्तानी के इश्क पर आ जाती है। ड्रामे में जान तब आती है जब मस्तानी पूना आती है और तमाम विरोध, अपमान सहते हुए बाजीराव के प्रति इश्क जारी रखती है। यहां से तीनों किरदारों की मनोदशा को बेहद सूक्ष्मता के साथ संजय लीला भंसाली ने पेश किया है। 
 
एक ओर मस्तानी है, जिसका बिना शर्त वाला इश्क जो उसके लिए इबादत है, खुदा है तो दूसरी ओर महज़ब और रिश्तों के बीच जकड़ा हुआ बाजीराव है, जिसके इश्क को दुनिया समझ नहीं पाती और वह सभी की नजर में खलनायक बन गया है। मस्तानी को मान-सम्मान दिलाने के लिए वह सबसे भिड़ जाता है। 
 
इन दोनों के बीच काशी पिसती है जो चुपचाप सब सहती है और बिना अपराध के भी अपने पति को दूसरी स्त्री की बांहों में देखने का दु:ख उठाती है। इन तीनों किरदारों के मन की हलचल, बेहतरीन अभिनय और निर्देशन के कारण सतह पर आ जाती है और दर्शक इसे महसूस करता है। जरूरत है धैर्य के साथ सब कुछ देखने और महसूस करने की।
 
किस किरदार से आपको सहानुभूति है ये आपकी सोच और समझ पर निर्भर है, लेकिन एक आम दर्शक की नजर में बाजीराव और मस्तानी की नकारात्मक छवि बनती है क्योंकि शादीशुदा होने के बावजूद बाजीराव ने इश्क फरमाया और बिना कारण अपनी पत्नी काशी को दु:ख पहुंचाया। पर ये इश्क है, उम्र-जाति-महजब-रिश्ते नहीं देखता, कब किससे हो जाए कहा नहीं जा सकता। 
 
संजय लीला भंसाली का निर्देशन लाजवाब है। हर सीन को उन्होंने पेंटिंग की तरह पेश किया है। उनका प्रस्तुतिकरण जादुई है जो दर्शकों को अलग दुनिया में ले जाता है। हर सीन को उन्होंने भव्य बनाया है जो कही-कही अतिरेक भी लगता है। जरूरी नहीं है कि हर दृश्य में भीड़ खड़ी कर दी जाए। कुछ प्रसंग जल्दबाजी में भी निपटाए गए हैं, शायद समय का बंधन होगा। बाजीराव को नाचते देखना भी नहीं सुहाता, लेकिन ये फिल्म की छोटी-मोटी कमियां हैं।
 
फिल्म का क्लाइमैक्स बेहतरीन है जिसमें मृत्यु के पूर्व बाजीराव को नदी में दुश्मन की सेना खड़ी नजर आती है और वह हवा में तलवार चलाता है। 
 
प्रकाश आर. कापड़िया द्वारा लिखा गया हर संवाद तारीफ के काबिल है और यह ड्रामे का मजा दोगुना कर देते हैं। फिल्म के सेट देखने लायक हैं और सुदीप चटर्जी की सिनेमाटोग्राफी में रंग, लाइट, शेड्स का कमाल देखने को मिलता है। 
 
संगीत खुद संजय लीला भंसाली का है और फिल्म के मूड के अनुरूप है। 'दीवानी' और 'पिंगा' इसमें से बेहतरीन हैं। इनकी कोरियोग्राफी और फिल्मांकन जबरदस्त है। तकनीकी रूप से फिल्म बेहद मजबूत है और फिल्म के तकनीशियनों की मेहनत नजर आती है। 
 
रणवीर सिंह को अपने करियर में इतनी जल्दी ही इतना भारी-भरकम रोल मिल गया। डर था कि क्या वे निभा पाएंगे, लेकिन उन्होंने कर दिखाया। वे कैरेक्टर में घुस गए और बाजीराव के गेटअप में वे जमे हैं। अपने लहजे, फिजिक पर भी उन्होंने खूब मेहनत की और उनका काम शानदार रहा है। हालांकि उनके अभिनय की भी सीमा है, लेकिन अपनी सीमा के भीतर रहते हुए उन्होंने जितना बन बड़ा उससे ज्यादा किया। 
 
मस्तानी के किरदार में दीपिका पादुकोण का अभिनय देखने लायक है। वे बेहद खूबसूरत लगी हैं और 'दीवानी' में उनकी खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। इश्क में दीवानी  एक राजकुमारी का किरदार उन्होंने बखूबी जीवंत किया है। प्रियंका चोपड़ा के पास संवाद कम थे और ज्यादातर उन्हें चेहरे के भाव से ही अपने दर्द को बयां करना था और यह काम उन्होंने बेहतरीन तरीके से किया। 'पिंगा' में उनका डांस दीपिका से बेहतर रहा। बाजीराव की मां के रूप में तनवी आजमी अपने दमदार अभिनय के बूते पर पूरी ताकत के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। 
 
'बाजीराव मस्तानी' को देखने के अनेक कारण हैं और इसे देखा जाना चाहिए। 
 
बैनर : इरोज़ इंटरनेशनल, एसएलबी फिल्म्स
निर्माता : किशोर लुल्ला-संजय लीला भंसाली
निर्देशक-संगीत : संजय लीला भंसाली 
कलाकार : रणवीर सिंह, प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, तनवी आजमी, महेश मांजरेकर, मिलिंद सोमण
सेंसर सर्टिफिकेट : यू * 2 घंटे 38 मिनट 
रेटिंग : 3.5/5 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

बाजीराव मस्तानी को आप पांच में से कितने अंक देंगे?