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जहां मिली थी 'पांच रुपैया..' की प्रेरणा, वहां याद किए गए किशोर

हमें फॉलो करें जहां मिली थी 'पांच रुपैया..' की प्रेरणा, वहां याद किए गए किशोर
, शुक्रवार, 4 अगस्त 2017 (22:49 IST)
इंदौर। हिन्दुस्तानी फिल्म जगत के हरफनमौला कलाकार किशोर कुमार आज अपनी 88वीं जयन्ती पर यहां उस क्रिश्चियन कॉलेज में बड़ी शिद्दत से याद किए गए, जहां उन्हें अपने विद्यार्थी जीवन की मामूली उधारी के कारण 'पांच रुपैया बारह आना...' जैसे मशहूर गीत की प्रेरणा मिली थी।
 
चार अगस्त 1929 को मध्यप्रदेश (तब मध्य प्रांत) के खंडवा कस्बे में पैदा हुए किशोर का वास्तविक नाम आभास कुमार गांगुली था। किशोर मैट्रिक पास करके इंटरमीडिएट में पहुंचे, तो उनके पिता कुंजलाल गांगुली ने  उनका दाखिला इंदौर के प्रतिष्ठित क्रिश्चियन कॉलेज में करा दिया था।
 
क्रिश्चियन कॉलेज के पूर्व और वर्तमान छात्रों ने किशोर की जयन्ती पर उनकी याद में आज एक कार्यक्रम  आयोजित किया, जिसमें उनके मशहूर गीत गुनगुनाए गए और उनके विद्यार्थी जीवन के संस्मरण साझा किए  गए। इन गानों में एक ऐसा मशहूर गीत भी शामिल है, जिसे क्रिश्चियन कॉलेज छोड़ने के करीब 10 साल बाद किशोर कुमार ने गाया था।
 
क्रिश्चियन कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर स्वरूप वाजपेयी ने बताया, 'किशोर कुमार ने हमारे कॉलेज में वर्ष 1946 में दाखिला लिया था। वह 1948 में पढ़ाई अधूरी छोड़कर मुंबई चले गए थे। लेकिन कैंटीन वाले के उन पर पांच रुपए 12 आने उधार रह गए थे।'
 
माना जाता है कि यह बात किशोर कुमार को याद रह गई थी और उधारी की इसी रकम से 'प्रेरित' होकर फिल्म 'चलती का नाम गाड़ी' (1958) के यादगार गीत 'पांच रुपैया बारह आना...' का मुखड़ा लिखा गया था। इस गीत को किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने आवाज दी थी।
 
क्रिश्चियन कॉलेज परिसर के खेल के मैदान में आज भी मौजूद इमली का पेड़ नौजवान किशोर की अल्हड़ सुर लहरियों का गवाह है। किशोर लेक्चर से भाग कर इस पेड़ के नीचे यार-दोस्तों की मंडली जमाने के लिए प्रोफेसरों के बीच 'कुख्यात' थे।
 
बाजपेयी ने बताया कि किशोर कुमार इमली के पेड़ के नीचे 'यॉडलिंग' (गायन की एक विदेशी शैली) का अभ्यास  भी करते थे। उन्होंने खासकर पुरानी हिंदी फिल्मों के गीतों में इस शैली का कई बार खूबसूरती से इस्तेमाल  किया और श्रोताओं को गायकी की अपनी इस खास अदा का दीवाना बनाया।
 
किशोर कुमार अपने छोटे भाई अनूप कुमार के साथ क्रिश्चियन कॉलेज के पुराने हॉस्टल की पहली मंजिल के एक कमरे में रहते थे। मौसम की मार सहने और संरक्षण के अभाव में करीब 100 साल पुराना होस्टल अब खण्डहर में बदल गया है। (भाषा)

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