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खूबसूरत होने के साथ नेक दिल इंसान भी थे शशि कपूर

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शशि कपूर की बाहरी खूबसूरती की झलक तो सभी को दिखाई दी। कपूर्स में वे सबसे हैंडसम माने गए। आम लड़कियों की तो बात छोड़िए, फिल्म अभिनेत्रियां भी शशि कपूर के चार्म से बमुश्किल बच पाती थीं। शशि कपूर का दिल भी बहुत खूबसूरत था। दिल की खूबसूरती आदमी के व्यवहार से झलकती है। शशि कपूर बेहद सज्जन और विनम्र थे। कभी अपनी खूबसूरती पर वे इतराए नहीं। कभी उन्होंने कपूर खानदान से होने की अकड़ नहीं दिखाई। उनकी भलमानसता के कई किस्से हैं।
 
शशि कपूर ने फिल्मों से पैसा कमाया और फिल्मों में ही लगाया। वे कमर्शियल फिल्मों में काम करते रहे, लेकिन जब फिल्म निर्माता बने तो उन्होंने विजेता, कलयुग, उत्सव, 36 चौरंगी लेन जैसी असाधारण फिल्में बनाईं। इन फिल्मों का व्यवसाय कुछ खास नहीं होता, इसके बावजूद उन्होंने इन फिल्मों में भरपूर पैसा लगाया और दुनिया को दर्शाने की कोशिश की कि भारत में भी उम्दा फिल्में बनती हैं। इन फिल्मों के जरिये कई संघर्षशील और उभरते हुए कलाकारों, तकनीशियनों और निर्देशकों को अवसर मिले और बाद में वे फिल्माकाश में जगमगाने लगे। 
 
पृथ्‍वी थिएटर को शशि कपूर ने घाटा होने के बावजूद जिंदा रखा। पृथ्वी थिएटर को हमेशा नो प्रॉफिट नो लॉस में चलाया गया और यह संघर्षरत कलाकारों का खास ठिया है। यहां पर उन्हें मंच के साथ-साथ खाना भी बहुत ही सस्ते दाम में मिलता है और संघर्षरत कलाकार अक्सर पृथ्वी थिएटर में खाना खाने ही पहुंच जाते हैं। शशि ने एक छोटा फंड भी बना रखा था जिसके जरिये वे उभरते हुए कलाकारों की आर्थिक मदद करते हैं। इस बारे में वे किसी को कुछ नहीं बताते थे। लोगों तक कई बार मदद भी पहुंच जाती थी और पता भी नहीं चलता था कि शशि उनकी मदद कर रहे हैं। 
 
पृथ्‍वी थिएटर से जुड़ा एक और किस्सा है। जब यहां रोजाना नाटक के दो शो हुआ करते थे। शाम छ: बजे और रात 9 बजे। एक बार ऐसा नाटक हुआ जिसे देखने के लिए लोग उमड़ पड़े। रात 9 बजे का शो खत्म हुआ तब भी सैकड़ों लोग इस नाटक को देखने से वंचित रह गए। वे इस नाटक का एक और शो रखने की जिद करने लगे। पृथ्वी थिएटर के मैनेजर ने आकर कहा कि कलाकार थक चुके हैं। लोगों का उत्साह देख जब कलाकार तैयार हो गए तो मैनेजर ने नया पैंतरा चला। उसने कहा कि पृथ्वी थिएटर का कानून सिर्फ दो शो की ही इजाजत देता है। 
 
इस हंगामे के बीच किसी ने यह खबर शशि कपूर तक पहुंचा दी। शशि कपूर तुरंत वहां पहुंचे और अपने ही मैनेजर से उन्होंने विनती की कि कभी-कभी कानून अच्छी बातों के लिए तोड़े जा सकते हैं। पृथ्वी थिएटर्स में उस नाटक का एक और शो रात 11 बजे बाद खेला गया। 
 
कई फिल्म निर्माताओं के लिए शशि कपूर ने कम फीस लेकर काम किया। असीम छाबड़ा ने शशि कपूर पर लिखी किताब में ऐसा ही एक किस्से का जिक्र किया है। शशि कपूर ने 1986 में प्रदर्शित फिल्म 'न्यू देल्ही टाइम्स' में एक ईमानदार पत्रकार की भूमिका निभाई थी, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। रमेश शर्मा की उम्र तब बहुत कम थी और किसी तरह से वे शशि कपूर से मिलने में सफल हो गए। शशि कपूर को वे अपनी फिल्म की कहानी के बारे में बताने लगे। कहानी सुनते-सुनते शशि प्रभावित हो गए और अचानक रमेश से पूछ बैठे कि फिल्म का बजट क्या है? रमेश ने सचकुचाते हुए कहा 25 लाख रुपये। इतना कम बजट सुन कर शशि चौंक गए। 
 
शशि ने दूसरा सवाल दागा कि तुम्हारी जेब में इस समय कितने पैसे हैं? रमेश ने कहा कि कुछ हजार होंगे। शशि ने उसमें से एक सौ एक रुपये ले लिए और कहा कि यह रहा मेरा पारिश्रमिक और यह फिल्म मैं कर रहा हूं। रमेश हैरान रह गए। शशि ने कहा कि मेरी दो शर्तें हैं। कभी किसी को यह मत बताना कि इतने कम दाम में मैंने यह फिल्म की है वरना दूसरे निर्माता सोचेंगे कि मुझे काम नहीं मिल रहा है और मैं किसी भी कीमत पर काम करने के लिए तैयार हूं। चूंकि फिल्म की शूटिंग दिल्ली में होगी। तुम्हारी फिल्म का इतना बजट नहीं है कि तुम मुझे बड़े होटल में ठहरा सको। मैं अपने खर्चे पर ताज मानसिंह होटल में ठहरूंगा वरना दूसरे निर्माता-निर्देशक यह समझ बैठेंगे कि मेरा बुरा दौर चल रहा है। हालांकि बाद में फिल्म की शूटिंग मुंबई में हुई। 
 
एक और किस्सा है। अमिताभ बच्चन से जुड़ा हुआ। शायद अमिताभ आज जहां हैं वहां नहीं होते यदि शशि सही समय पर सही सलाह नहीं देते। अमिताभ बच्चन उन दिनों संघर्ष कर रहे थे और गुस्से में आकर उन्होंने 'पाप और पुण्य' फिल्म में महत्वहीन रोल स्वीकार लिया। उस फिल्म में शशि कपूर लीड रोल में थे। शशि जब सेट पर पहुंचे तो अमिताभ भाला लेकर शूटिंग के लिए तैयार खड़े थे। अमिताभ को देख शशि उनके पास पहुंचे और कहा कि तुम बेहतरीन अभिनेता हो। बहुत आगे जाने की योग्यता रखते हो। इतनी महत्वहीन भूमिका क्यों स्वीकार कर ली है। इसके बाद तुम्हें बड़े रोल नहीं मिलेंगे। तुरंत यह फिल्म छोड़ दो। अमिताभ ने वैसा ही किया। यदि शशि यह सलाह नहीं देते तो पता नहीं अमिताभ किस हालत में होते। 
 
आमतौर पर फिल्म की जब शूटिंग होती है तो बड़े कलाकारों और निर्देशकों को अलग तथा अन्य क्रू मेंबर्स को अलग खाना खिलाया जाता है। लेकिन जब शशि निर्माता बने तो उन्होंने सभी को एक जैसा खाना खिलाया। कोई भेदभाव नहीं किया। वे सबके साथ बराबरी के साथ पेश आते थे। शशि कपूर के लिए जब श्याम बेनेगल फिल्म बना रहे थे तब शशि और वे ड्रिंक्स साथ लेते थे। शशि को महंगी व्हिस्की पीना पसंद था जबकि श्याम वोदका पीते थे। श्याम असहज महसूस ना करें इसलिए शशि उनके साथ व्हिस्की पीने लगे। दिखावटी दुनिया में शशि जैसे नेक दिल इंसान बहुत कम पाए जाते हैं। 

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