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सबसे कूल हैं धरमजी, फिर बॉबी और इसके बाद सनी : कृति खरबंदा

हमें फॉलो करें सबसे कूल हैं धरमजी, फिर बॉबी और इसके बाद सनी : कृति खरबंदा

रूना आशीष

"अगर मेरे दादाजी ज़िंदा होते तो शायद धरमजी जैसे ही होते। वैसे ही गर्मजोशी से बात करते। मस्ती भरी बातें करते। एक दिन मैं शूट के दौरान उनसे मिलने गई औप पांव छुए। अचानक से वे बोले बूमरैंग ऐप मेरे मोबाइल पर डाउनलोड कर दो। फिर इंस्टाग्रैम की बातें की। तो वो ऐसे हैं मेरे लिए। लेकिन उनके साथ काम करना मतलब मेरा सपना पूरा होने जैसा है।"
 
कृति खरबंदा ‘यमला पगला दीवाना फिर से’ में चीकू जैसे छोटे से नाम से तो खु़श हैं ही, साथ ही में वो देओल परिवार के साथ काम करके भी खूब खुश हैं। 
 
वेबदुनिया संवाददाता से बात करते हुए बताती हैं "अगर इन तीनों देओल्स में से कोई सबसे कूल है तो पहला नंबर धरमजी का आता है।  फिर बॉबी का। बॉबी अपना काम करते हैं और खुश रहने वालों में से हैं।  और फिर नंबर आता है सनी का। पहले मैं थोड़ा झिझक कर उनसे बातें करती थी। उनका पर्सोना ही ऐसा है। बाद में तो फिर अच्छी दोस्ती हो गई। फिर तो मैं उनके पास जा कर कहती थी, सनी सर, वो ढाई किलो वाला डायलॉग सुनाओ ना.."
 
धरमजी और सनी के बारे में आपकी बचपन की क्या यादें हैं?
मुझे जो अपनी ज़िंदगी की पहली फिल्म ‘चुपके चुपके’ याद आती है।  यार, कोई कैसे ड्रायवर की ड्रेस में इतना स्मार्ट दिख सकता है। ये फिल्म मेरे पापा की भी फेवरेट है। वहीं सनी देओल की ऐसी याद है कि वो एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। एक होटेल की छत पर चढ़े हुए थे। मैं छोटी थी तो अपनी मम्मा से पूछ बैठी कि ये वहां कैसे चढ़ गए?   अब गिर तो नहीं जाएंगे? अब सब समझ में आता है कि वो कैसे चढ़े होंगे, लेकिन उस समय तो मैं ये सब देख कर चौंक गई थी। 
 
आपको ‘यमला पगला दीवाना फिर से’ करने में कोई दिक्कत हुई? 
नहीं। फिल्म करने में कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन मुझे इसमें गुजराती बोलनी थी, तो, वो सही सरीके से बोलूं या लहजे में बोलूं उसके लिए मुझे मेहनत करनी पड़ी। इसके लिए मुझे समय भी दिया गया था।  एक सीन के लिए मैंने तीन बार डबिंग की क्योंकि मैं खुश नहीं थी। 
 
आपने अपने लिए कोई बाउंड्री बनाई है क्या? 
मैंने राज़ सीरिज की मूवी की है। मैंने पहले सोचा था कि कभी भी बि‍किनी नहीं पहनूंगी या किस नहीं करूंगी, लेकिन फिर लगा कि मैं अपने आप को आगे बढ़ने से रोक रही हूं। ऐसे तो मैं बेहतर इंसान और बेहतर एक्टर नहीं बन सकूंगी। वैसे भी जब पिक्चराइज़ कला के नज़रिये से किया गया हो तो सब ठीक लगता है। 

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