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गीत कोई भी हो, उसमें पोएट्री जरूर होना चाहिए: प्रतीक मजूमदार

हमें फॉलो करें गीत कोई भी हो, उसमें पोएट्री जरूर होना चाहिए: प्रतीक मजूमदार

समय ताम्रकर

हिंदी फिल्मों में गीतकार अपना महत्व खोते जा रहे हैं क्योंकि संगीत का स्तर भी पहले जैसा नहीं रह गया है, लेकिन इनके बीच प्रतीक मजूमदार जैसे गीतकार आशा भी बंधाते हैं। प्रतीक उभरते गीतकार हैं जो हिंदी, बंगाली और अंग्रेजी में गीत लिखना पसंद करते हैं। रफ्तार उनकी धीमी जरूर है, लेकिन कदम सधे हुए है। आई एम कलाम, जलपरी, बैडमैन, इश्केरिया, हल्का फिल्मों में उन्होंने अर्थपूर्ण गीत लिखे हैं। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश: 
 
एक जमाने में शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी, साहिर लुधियानवी, मजरूह सुल्तानपुरी जैसे गीतकार थे जो सरल शब्दों में गहरे अर्थ लिए गीत लिखते थे। यही कारण है कि उनके लिखे गीत आज भी चाव से सुने जाते हैं। लेकिन अब ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है? 
गीत कोई भी हो उसमें पोएट्री जरूर रहना चाहिए वरना मकसद खत्म हो जाएगा। गीतों में उपयोग किए जाने वाले शब्द वक्त के हिसाब से बदलते रहते हैं। इन दिनों बोलचाल की भाषा या हिंग्लिश बोलने का चलन है इसलिए इसी तरह के गीतों का चलन बढ़ गया है। फिल्म इश्केरिया में मुझे कॉलेज एंथम लिखने को कहा गया। आज का युवा जिस तरह के शब्दों का उपयोग करता है उसका उपयोग मैंने इस गीत में किया। आजकल हिंग्लिश ट्रेंड में है इसलिए हिंग्लिश का प्रयोग किया गया। मैं कोशिश करता हूं कि जैसा भी गीत लिखूं उसमें भावनाएं उभर कर आना चाहिए। उसका अर्थ निकलना चाहिए। यह बात जरूर है कि अब साहिर, शैलेन्द्र या मजरूह जैसे गीतकार नहीं हैं, लेकिन अमिताभ भट्टाचार्य, इरशाद कामिल जैसे गीतकार अच्छा काम कर रहे हैं। मेरी भी यही कोशिश रहती है। मैं इन गीतकारों से प्रभावित हूं और वैसा ही अच्छा लिखने की कोशिश करता हूं।
 
आप पर किस गीतकार का सर्वाधिक असर रहा है? 
एक का नाम कहना मुश्किल है। साहिर साहब हैं, मजरूह जी हैं, कैफी आजमी हैं। साहिर साहब बहुत बढि़या शायर थे, लेकिन फिल्मों के लिए उन्होंने गीत भी खूब लिखे। 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया' उन्होंने क्या खूब लिखा है। गुलजार को बचपन से सुनता आया हूं और उनसे प्रभावित होकर ही गीत लिखने लगा। मैं इन गीतकारों को लगातार सुनता रहता हूं और इसका असर मेरे गीतों में महसूस किया जा सकता है।  

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पहले एक गीतकार किसी भी फिल्म के सारे गीत लिखता था, लेकिन अब यह चलन खत्म सा हो गया है। एक फिल्म में अलग-अलग गीतकारों के गीत होते हैं। इन दोनों में से आप किसे सही मानते हैं? 
मेरा मानना है कि किसी भी फिल्म के लिए एक गीतकार का होना ज्यादा सही है। मैं लकी हूं कि मुझे ऐसे ही काम करने का मौका मिला। इससे गीतकार स्क्रीनप्ले, कहानी, किरदार के मिजाज को बखूबी जानता है और उसी के अनुरूप गीत लिखता है। राज कपूर साहब जब स्क्रिप्ट पर काम करते थे तो उनके साथ शैलेन्द्र और शंकर-जयकिशन भी साथ होते थे। वे भी फिल्म के हर पक्ष से जुड़े होते थे। इससे उन्होंने महान संगीत की रचना की। ऐसा ही दूसरे संगीतकार और गीतकार भी करते थे। इससे काम बेहतर होता है। 
 
आपको किस संगीतकार के साथ काम करने सुकून महसूस हुआ? 
जितने संगीतकारों के साथ मैंने काम किया है उनमें से शंकर-अहसान-लॉय सबसे बेहतर लगे। वे पुराने दौर के संगीतकारों की तरह काम करते हैं। वे कहानी को अच्छी तरह समझते हैं और उसी के अनुरूप संगीत रचते हैं। मुझे प्रीतम और अमित त्रिवेदी का काम भी अच्छा लगता है। मौका मिला तो मैं उनके साथ काम करना चाहूंगा। 
 
जो गीतकार बनना चाहते हैं उन्हें आप क्या सलाह देना चाहेंगे? 
फिल्म इंडस्टई में बहुत कम गीतकार हैं और मैं चाहता हूं कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस क्षेत्र में आएं। गीतकार बनने के लिए साहित्य को पढ़ना चाहिए। मैंने भी जयशंकर प्रसाद, विजय तेंडुलकर जैसे नाटककारों की रचनाएं पढ़ी जो मेरे बहुत काम आई। जितना लिखो उससे पांच गुना पढ़ो। इससे लिखने की कला निखर जाएगी। गाने सुनना भी जरूरी है, लेकिन बैठ कर। ऐसा नहीं कि हेडफोन लगाया और साथ में दूसरा काम भी करते रहे। इन दिनों सुनने की कला लुप्त होती जा रही है। 

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