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रोमांस के बादशाह को बौना बना कर कहा अब रोमांस कर के दिखा : आनंद एल. राय

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रूना आशीष

चलिए हम अधूरेपन का जश्न मनाएं। ज़ीरो कहानी है ऐसे ही तीन अधूरे लोगों की जिनमें कहीं कोई अधूरापन है, लेकिन आप मिलिए इन लोगों से,  ये आपको कभी भी अपने ऊपर तरस खाने का मौका नहीं देते। हम सब में कोई ना कोई कमियां होती हैं, लेकिन मैं चल-फिर सकता हूं और कोई है जो व्हील चेयर पर बैठा है, इसलिए वह दुखी है ऐसा जरूरी नहीं है। वह सुखी है क्योंकि वह सुखी रहना चाहता है। 
 
इस हफ्ते रिलीज़ हुई फिल्म ज़ीरो के निर्देशक आनंद एल राय आगे बताते हैं कि अनुष्का का रोल सेरिब्रल पाल्सी के मरीज़ वाला रोल है वहीं कैटरीना अपने ज़िंदगी के एक ऐसे मोड़ पर है जहां वह बहुत संवेदनशील हो रही है या दिल से बहुत कमज़ोर महसूस कर रही है, लेकिन बऊआ को ये बिल्कुल नहीं लगता कि वह किसी से कम है हालांकि वो वर्टिकली चैलेंज्ड है। उसे लगता है कि वह जिस लड़की से मिलेगा उससे फ्लर्ट कर लेगा, थोड़ा प्यार जता लेगा और बस काम बन जाएगा। जबकि देखने वाली लड़की को लगेगा कि ये क्या कर रहा है, लेकिन थोड़ी देर बाद वह लड़की भी बुरा मानना बंद कर देती है और सोचती है कि बऊआ चल तू भी खुश हो ले। 
 
सुना है कि इस रोल के लिए पहली पसंद सलमान थे? 
मैं निर्देशक हूं। मेरा काम है कि मैं अभिनेताओं से मिलता रहूं। मैं अपने बऊआ के किरदार में एक ऐसे शख्स को चाहता था जिसके पास किसी चीज़ की कमी नहीं हो। जब मैं उसे बौना बनाऊं तो उसे भी चुनौती लगे, मुझे भी चुनौती लगे और तब मज़ा आए। सलमान से बात भी हुई थी फिर शाहरुख पर बात तय हो गई। वैसे भी रोमांस के बादशाह को ऐसे रूप में मुझे देखना था और कहना था बेटा चल अब रोमांस करके दिखा। 
 
आप और शाहरुख दोनों निर्माता हैं। इस फिल्म के लिए साथ में सफर कैसा रहा? 
अरे, आप कह रही हैं तो मालूम पड़ रहा है। कभी लगा नहीं कि हम दोनों निर्माता हैं। शाहरुख से बातें करना मुझे बहुत पसंद है। वह बहुत सुलझे हुए और पढ़े-लिखे हैं, जानकार हैं। उन्होंने जीवन में जो सीखा है वो शेयर करते हैं। शायद हम दोनों बहुत अच्छे टीचर हैं और अच्छे स्टूडेंट भी हैं। ज़िंदगी ने जो सिखाया उससे टीचर बन गए और जब मैं निर्देशन करता हूं तो वह एक स्टूडेंट की भांति मेरी बातें सुनने समझने की कोशिश करते हैं। 
 
श्रीदेवी की ये आखरी फिल्म है। कैसे याद आएंगी वे आपको? 
एक निर्देशक का सपना कभी पूरा नहीं होता या वो कभी संपूर्ण निर्देशक नहीं बनता जब तक आप इतने बड़े सितारे के साथ काम ना कर लें। मैं तो अपने आप को खुशकिस्मत ही मानूंगा कि मुझे ये मौका मिल गया। पूरी फिल्म तो नहीं बना सका, लेकिन मेरी फिल्म में काम करके उन्होंने मुझे मौका दिया कि मैं चंद पल उनके साथ बिता सका। लोग तरसते हैं उनके पास सेट पर जाने के लिए, लेकिन मुझे वो पल मिले जिनमें उन्होंने मुझे समझा दिया कि को इतना बड़ा कलाकार कैसे बनता है। कैसे कैमरा पर कुछ लम्हे पर आने के लिए भी तैयारी करनी पड़ती है। 
 
आपके बड़े भाई रघु राय भी टीवी इंडस्ट्री में बड़ा नाम रहे हैं। उनकी सीख कितनी काम आती है? 
कहते हैं बचपन में आपको जिस काम से लगाव हो जाता है वो हमेशा आपका रिझाता रहता है। टीवी या फिल्मों मे काम करने का झुकाव या लगाव ऐसा ही रहा मेरे लिए। मेरे बड़े भाई हैं तो मैं हमेशा से ही उनसे सीखता रहा हूं। उन्हीं को देख कर तो काम करना सीखा हूं। मौका पड़े तो मैं फिर टीवी करना चाहूंगा। मैं तो टीवी की ही पैदाइश हूं। 
 
आपके परिवार ने बंटवारे को करीब से देखा है। कभी फिल्म बनाएंगे बंटवारे पर? 
हां, मेरे दादा-दादी से कई कहानियां सुनी हैं। वैसे भी शायद मेरी पीढ़ी वो आखरी पीढ़ी हो जिसे बंटवारे का दर्द मालूम हो। मैंने तो नहीं देखा लेकिन घरवालों ने तो भोगा है उस दर्द को। मेरी इच्छा है कि एक ऐसी फिल्म ज़रूर बनाऊं जो लोगों तक याद रह जाए। साथ ही अगली पीढ़ी को मेरी फिल्म के ज़रिए बंटवारे के बारे में जानकारी मिल सके। 

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