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इमरजेंसी के दौरान कैसा था महिलाओं का हाल

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, मंगलवार, 26 जून 2018 (09:31 IST)
देश में दंगे हों या कोई विशेष कानून लागू हो, महिलाओं के लिए हालात बहुत मुश्किल हो जाते हैं। क्या ऐसी स्थिति 25 जून 1975 को लगी इमरजेंसी के दौरान भी थी?
 
इमरजेंसी के दौरान महिलाओं का अनुभव कैसा था, बीबीसी पंजाबी की संवाददाता खुशबू संधु, अरविंद छाबड़ा और सत सिंह ने महिलाओं से बात करके ये जानने की कोशिश की।
 
19 महीने जेल में रही
हरियाणा बीजेपी की पहली अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. कमला वर्मा ने बताया, 'जब इमरजेंसी लगाई गई तो मैं ऑल इंडिया वर्किंग कमिटी की सदस्य थी। मैं राजनीति में सक्रिय थी लेकिन इमरजेंसी जैसे हालातों के लिए नई थी।'
 
'तब मैंने सोचा कि इमरजेंसी के विरोध में एक मार्च निकालना चाहिए लेकिन तब एक बुर्जुग व्यक्ति ने मुझसे कहा कि तुम्हें पता भी है इमरजेंसी का मतलब क्या होता है? इसका मतलब है कि लोग सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकते।'
 
कमला वर्मा ने बताया कि तब उन्होंने अखबारों में अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी जैसे नेताओं की गिरफ्तारी की खबर पड़ी। उन्हें अहसास हो गया कि अब उनका नंबर भी आने वाला है।
 
वह कहती हैं, 'मैं दो दिनों के लिए एक दोस्त के घर अंडरग्राउंड हो गई। मैंने 27 जनवरी को घर लौटने का फ़ैसला किया और देखा कि सीआईडी के अधिकारी मेरे घर के आसपास मौजूद थे। वो पूरे दिनभर घर के आसपास घूमते रहे और रात को 7 बजे करीब घर में जबरदस्ती आ गए। वह दिन में गिरफ़्तारी करने से बचते थे ताकि कोई हंगामा न खड़ा हो जाए।'
 
'मेरे पति को भी गिरफ़्तार किया गया। वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य था। पुलिस ने कहा कि वो मेरे पति को थोड़ी पूछताछ के बाद छोड़ देंगे लेकिन उन्हें 8 महीने बाद छोड़ा।'
 
कमला वर्मा को अलग-अलग जेलों में ले जाया गया। वह कहती हैं, 'हमें पहले युमनानगर पुलिस थाने ले जाया गया। अगले दिन अंबाला जेल लेकर गए। पुलिस बार-बार मुझे एक जेल से दूसरी में भेजती रही। मुझे करनाल, हिसार और रोहतक भी भेजा गया। करनाल सबसे बुरी जेल थी। वहां बहुत चूहे थे जिन्होंने मेरा तौलिया, पेन और किताबें खराब कर दीं।'
 
'गृह विभाग में मेरी शिकायत पर मुझे अंबाला जेल भेजा गया। मैंने नौ महीनों से अपने परिवार को नहीं देखा था और न उनकी कोई जानकारी थी। मुझे पता चला कि मेरे बेटे ने कई बार मुझसे मिलने की कोशिश की लेकिन उसे मना कर दिया गया।'
 
डॉ. कमला ने बताया, 'अंबाला जेल में मुझे स्पांडेलाइटिस हो गया था और तब मुझे रोहतक में एक अस्पताल में एडमिट किया गया। जब मैं 19 महीनों बाद घर लौटी तो लोग मुझसे बात करने से भी डरते थे। मुझे लगता है कि इमरजेंसी ने लोकतंत्र के लिए ख़तरा पैदा कर दिया था।'
 
झूठी गिरफ्तारियों का सिलसिला
पंजाब के अमृतसर की रहने वाली पुडुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी आपातकाल लगाए जाने के समय तीन साल तक पुलिस सेवा में थी। उस समय को याद करते हुए वह कहती हैं, 'झूठी गिरफ्तारी उस समय के लिए आम बात हो गई थी. हालांकि भगवान ने मुझे बचा लिया।'
 
भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने बताया, 'नई दिल्ली में एएसपी के तौर पर नई दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट में मेरी नियुक्ति के कुछ दिनों बाद ही मेरा ट्रांसफ़र फ़ील्ड ड्यूटी से सिक्यूरिटी ड्यूटी में कर दिया गया।'
 
'आपातकाल की समर्थक मंडली ने मुझे किनारे कर दिया। लेकिन, किस्मत को ये मंजूर था कि उस समय घटने वाली घटनाओं की मैं गवाह रहूं। उस समय के आदेश के बावजूद मैंने झूठी गिरफ्तारी नहीं की।'
 
वह कहती हैं, 'हालांकि, भगवान ने मुझे सुरक्षित करने के लिए सही समय पर इससे अलग कर दिया नहीं तो मैं उन गैरकानूनी आदेशों को मानने से मना कर देती और अपने करियर की शुरुआत में ही विवादों में फंस जाती।' वह कहती हैं कि उस समय महिलाएं उपेक्षित थीं और मौजूद स्थिति को चुनौती भी नहीं दे पाईं।
 
महिलाओं ने सबसे ज्यादा झेला
 
भाजपा नेता और अकाली-बीजेपी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहीं लक्ष्मी कांता चावला ने कहा कि महिलाएं उस वक्त सबसे ज्यादा बुरी स्थिति में थी। उनके पतियों को जेल में डाल दिया गया और वो अपने परिवार व बच्चों को बचाने के लिए अकेली रह गईं।
 
लक्ष्मी कांता कहती हैं, 'जो भी कांग्रेस से जुड़ा नहीं था उसे गिरफ्तार किया गया। न अपील न वकील न दलील की इजाजत थी। कई महिलाओं को घर से निकलकर दुकानों पर काम करना पड़ा। कई बच्चों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। महिलाओं को घर भी देखना होता था और पति के मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट भी जाना पड़ता था।'
 
लक्ष्मी कांता तब लेक्चरर और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह कहती हैं, 'हालांकि, उस वक्त पंजाब में किसी महिला को गिरफ़्तार नहीं किया गया।'
 
इमरजेंसी से अनुशासन आया
हालांकि, इमरजेंसी को लेकर सभी का अनुभव बुरा नहीं है। सभी ये नहीं मानतीं कि इमरजेंसी में सामान्य महिलाओं पर पाबंदियां लगाई गई थीं।
 
पंजाब में मशहूर फिल्म और टीवी एक्ट्रेस निर्मल ऋषि याद करते हुए कहती हैं, 'मैं उन दिनों एक थियेटर आर्टिस्ट थी और पंजाब के अलावा अलग-अलग राज्यों में यात्रा करती थी।'
 
वह कहती हैं, 'लेकिन, उस दौरान मेरे साथ कोई गलत घटना नहीं हुई। मुझे और अन्य सामान्य पुरुष व महिलाओं को कोई दिक्कत नहीं हुई।'
 
चंडीगढ़ पंजाब विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग में रिसर्च स्कॉलर आशा सेठी कहती हैं, 'तब जिंदगी बहुत सामान्य थी। मुझे उस दौरान का कोई भी बुरा अनुभव याद नहीं है।'
 
75 वर्षीय आशा सेठी ने बताया, 'नेताओं के लिए स्थितियां मुश्किल हो सकती हैं लेकिन सामान्य औरत और मर्दों के लिए नहीं। लोग दफ़्तर समय पर आने लगे थे। कानून व्यवस्था की हालत अच्छी थी। आज रेप और हत्याएं होती हैं लेकिन तब इसकी कल्पना करना भी मुश्किल था।'
 
नेताओं ने बदला लिया
छह बार एमएलए और भिवानी संसदीय क्षेत्र से पूर्व सांसद चंद्रावती कहती हैं कि उस वक्त जिन नेताओं के हाथ में ताकत थी उन्होंने अपने विरोधियों से बदला लिया।
 
वह बताती हैं, 'मुझे इमरजेंसी लगने के कुछ समय पहले राज्य मंत्री के पद से हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। मुझे इमरजेंसी रहने तक छुपकर रहना पड़ा। पुलिस ने मेरे दोनों भाइयों को जेल में डाल दिया।'
 
इसका कारण मेरे कजन पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बंसी लाल थे। पर मैं कभी उनके दबाव में नहीं आई। उस वक्त के जिन मुख्यमंत्रियों की इं​दिरा जी से करीबी थी उन्होंने अपना हिसाब चुकता किया। जिन्होंने आवाज उठाने की कोशिश की उन्हें जेल में डाल दिया गया।

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