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विवेचना : कितना कठिन था सर्जिकल स्ट्राइक करके ज़िंदा लौटना?

हमें फॉलो करें विवेचना : कितना कठिन था सर्जिकल स्ट्राइक करके ज़िंदा लौटना?
, गुरुवार, 28 जून 2018 (16:00 IST)
- रेहान फ़ज़ल (नई दिल्ली)
 
जब 29 सितंबर, 2016 को भारत के मिलिट्री ऑपरेशन के महानिदेशक लेफ़्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने संवादादाता सम्मेलन में घोषणा की कि भारत ने सीमापार चरमपंथियों के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक की है तो पूरी दुनिया अवाक रह गई। ऐसा नहीं था कि इससे पहले लाइन ऑफ़ कंट्रोल के पार सर्जिकल स्ट्राइक न की गई हो, लेकिन ये पहली बार था कि भारतीय सेना, दुनिया को साफ़ साफ़ बता रही थी कि वास्तव में उसने ऐसा किया था।
 
 
कारण था, भारतीय सेना के उड़ी ठिकाने पर चरमपंथियों द्वारा किया गया हमला जिसमें 17 भारतीय सैनिक मारे गए थे और दो सैनिकों की बाद में अस्पताल में मौत हो गई थी। जैसे ही ये ख़बर फैली दिल्ली के रायसिना हिल्स पर गतिविधियां तेज़ हो गईं। आनन फानन में अत्यंत गोपनीय 'वार रूम्स' में भारत के सुरक्षा प्रबंधन की खुफ़िया बैठकें बुलाई गई जिसमें कम से कम एक बैठक में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ शामिल हुए।
 
 
'इंडियाज़ मोस्ट फ़ियरलेस-ट्रू स्टोरीज़ ऑफ़ माडर्न मिलिट्री हीरोज़' के सह-लेखक राहुल सिंह बताते हैं, "इस बारे में हमने बहुत सारे जनरलों और स्पेशल फ़ोर्स के अधिकारियों से बात की है और हम पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि इस बैठक में ही ये फ़ैसला लिया गया कि भारतीय सेना लड़ाई को दुश्मन के क्षेत्र में ले जाएगी और इस हमले पर भारत चुप नहीं बैठेगा और इसका समुचित जवाब दिया जाएगा।"
 
 
माइक टैंगो को ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी : सीमा पार चरमपंथियों के ठिकानों को ध्वस्त करने की ज़िम्मेदारी एलीट पैरा एसएफ़ के टूआईसी मेज़र माइक टैंगो को दी गई। ये उनका असली नाम नहीं है। सुरक्षा कारणों से इस पूरी किताब में उन्हें उनके इस ऑपरेशन के दौरान रेडियो नाम मेज़र माइक टैंगों के नाम से चित्रित किया गया है।
 
 
'इंडियाज़ मोस्ट फ़ियरलेस' के लेखक, शिव अरूर बताते हैं, "स्पेशल फ़ोर्स के अधिकारियों को क्रेम डेला क्रेम ऑफ़ सोल्जर्स कहा जाता है। ये भारतीय सेना के सबसे फ़िट, मज़बूत और मानसिक रूप से सजग सैनिक होते हैं। इनकी फ़ैसला लेने की क्षमता सबसे तेज़ होती है और जहां ज़िदगी और मौत का मामला हो, इनका दिमाग बहुत तेज़ी से काम करता है।"
 
वो कहते हैं, "ख़तरनाक परिस्थितियों में ज़िंदा रहने की कला जितनी इन्हें आती है किसी को नहीं। सेना का इस्तेमाल आमतौर से रक्षण के लिए किया जाता है, लेकिन स्पेशल फ़ोर्सेज़ शिकारी होते हैं। उनका इस्तेमाल हमेशा आक्रमण के लिए होता है।"
 
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ख़ुफ़िया सूत्रों से संपर्क : इस बीच दिल्ली में इस पूरे मामले को इस तरह लिया गया जैसे कुछ हुआ ही न हो। नरेंद्र मोदी ने कोझिकोड़ में भाषण देते हुए उड़ी पर एक शब्द नहीं कहा। उन्होंने ये ज़रूर कहा कि भारत और पाकिस्तान को ग़रीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़नी चाहिए।
 
 
संयुक्त राष्ट्र में सुषमा स्वराज ने भी उड़ी पर भारत के गुस्से का कोई इज़हार नहीं किया। पाकिस्तान को ये आभास देने की कोशिश की गई कि सब कुछ सामान्य है जबकि अंदर ही अंदर सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी ज़ोरों पर थी।
 
राहुल सिंह बताते हैं, "मेज़र टैंगो की टीम ने पाकिस्तान के अंदर अपने चार सूत्रों से संपर्क किया। इनमें से दो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के ग्रामीण थे और दो जैश-ए-मोहम्मद में भारत के लिए काम कर रहे जासूस थे। चारों लोगों ने अलग अलग इस बात की पुष्टि की कि चरमपंथियों के लॉंचिंग पैड में चरमपंथी मौजूद हैं।"
 
 
रात साढ़े आठ बजे कूच : माइक टैंगो के नेतृत्व में 19 भारतीय जवानों ने 26 सितंबर की रात साढ़े आठ बजे अपने ठिकानों से पैदल चलना शुरू किया और 25 मिनटों में उन्होंने एलओसी को पीछे छोड़ दिया। टैंगो के हाथ में उनकी एम 4 ए1 5.56 एमएम की कारबाइन थी। उनकी टीम के दूसरे सदस्य एम4 ए1 के अलावा इसराइल में बनी हुई टेवर टार-21 असॉल्ट रायफ़लें लिए हुए थे।
 
माइक टैंगो ने शिव अरूर और राहुल सिंह को बताया कि उन्होंने इस अभियान के लिए स्पेशल फ़ोर्स में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ जवान चुने थे। लेकिन इस तरह के अभियान में कुछ लोगों का हताहत होना अवश्यसंभावी है।
 
 
असल में इसकी संभावना 99.9999 फ़ीसदी थी और उनकी टीम ये क़ुरबानी देने के लिए मानसिक रूप से तैयार भी थी। टैंगो मान कर चल रहे थे कि इस अभियान का सबसे मुश्किल चरण होगा वापसी का, जब पाकिस्तानियों को उनके वहाँ होने के बारे में पूरी जानकारी हो मिल चुकी होगी।
 
अचानक फ़ायरिंग की आवाज़ : चार घंटे चलने के बाद टैंगो और उनकी टीम अपने लक्ष्य के बिल्कुल नज़दीक पहुंच गई। वो वहाँ से 200 मीटर की दूरी पर थे कि वो हुआ जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी। लांच पैड से अचानक फ़ायरिंग शुरू हो गई। एक सेकंड को उन्हें लगा भी कि क्या पाकिस्तानियों को उनके आने का पता चल गया है।
 
 
सारे जवान एक सेकेंड से भी कम समय में ज़मीन के बल लेट गए, लेकिन टैंगो के अनुभवी कानों ने अंदाज़ा लगा लिया कि ये अंदाज़े से की गई फ़ायरिंग है और उसका निशाना उनकी टीम नहीं है।
 
लेकिन एक तरह से ये बुरी ख़बर भी थी, क्योंकि इससे साफ़ ज़ाहिर था कि लांच पैड के अंदर रह रहे चरमपंथी सावधान थे। टैंगो ने तय किया कि वो उस इलाक़े में छिपे रहेंगे और अपना हमला 24 घंटे बाद अगली रात में बोलेंगे।
 
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शिव अरूर बताते हैं, "ये इस ऑपरेशन का सबसे संवेदनशील और ख़तरनाक हिस्सा था। रात के अंधेरे में तो दुश्मन के इलाक़े में छिपे रहना शायद इतना मुश्किल काम नहीं था, लेकिन सूरज चढ़ने के बाद उस इलाक़े में जमे रहना ख़ासा जीवट का काम था।
 
लेकिन उससे उन्हें एक फ़ायदा ज़रूर होने वाला था कि उन्हें उस इलाक़े को पढ़ने और रणनीति बनाने के लिए 24 घंटे और मिलने वाले थे। टैंगो ने आख़िरी बार सेटेलाइट फ़ोन से अपने सीओ से संपर्क किया और फिर उसे ऑफ़ कर दिया।
 
 
50 गज़ की दूरी से चरमपंथियों पर निशाना साधा : 28 सितंबर का रात दिल्ली में भारतीय कोस्ट गार्ड कमांडर्स का वार्षिक भोज हो रहा था, लेकिन सभी चोटी के मेहमान रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और सेनाध्यक्ष जनरल दलबीर सिंह ने अपने मेज़बानों से माफ़ी मांगी और सेना के मिलिट्री ऑपरेशन रूम पहुंच गए ताकि वहाँ से उस समय शुरू हो चुके इस अभियान को दिल्ली से मॉनीटर किया जा सके।
 
 
आधी रात को दिल्ली से 1000 किलोमीटर दूर टैंगो और उनकी टीम अपने छिपे हुए स्थान से निकले और उन्होंने लांच पैड की तरफ़ बढ़ना शुरू किया। लांचपैड से 50 गज़ पहले टैंगो ने अपनी नाइट विजन डिवाइस से देखा कि दो लोग चरमपंथियों के ठिकाने पर पहरा दे रहे हैं।
 
राहुल सिंह बताते हैं, "टैंगो ने 50 गज़ की दूरी से निशाना लिया और एक ही बर्स्ट में दोनों चरमपंथियों को धराशायी कर दिया। पहली गोली चलने तक ही कमांडोज़ के मन में तनाव रहता है। गोली चलते ही ये तनाव जाता रहता है।"
 
 
38 से 40 चरमपंथी मारे गए : इसके बाद तो गोलियों की बौछार करते हुए टैंगो के कमांडो लांच पैड की तरफ़ बढ़े। अचानक टैंगो ने देखा कि दो चरमपंथी जंगलों में भागने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वो भारतीय सैनिकों पर पीछे से हमला कर सकें।
 
टैंगो ने अपनी 9एमएम बेरेटा सेमी ऑटोमेटिक पिस्टल निकाली और 5 फ़ीट की दूरी से उन चरमपंथियों पर फ़ायर कर उन्हें गिरा दिया।
 
 
शिव अरूर बताते हैं, "माइक टैंगो और उनकी टीम वहां पर 58 मिनटों तक रही। उन्हें पहले से ही बता दिया गया था कि वो शवों को गिनने में अपना समय बरबाद न करें। लेकिन एक अनुमान के अनुसार, चार लक्ष्यों पर कुल 38 से 40 चरमपंथी और पाकिस्तानी सेना के 2 सैनिक मारे गए। इस पूरे अभियान के दौरान पूरी तरह से रेडियो साइलेंस रखा गया।"
 
कानों के बग़ल से गोलियां : अब टैंगो के सामने असली चुनौती थी कि किस तरह वापस सुरक्षित भारतीय सीमा में पहुंचा जाए, क्योंकि अब तक पाकिस्तानी सेना को उनकी उपस्थिति का पता चल चुका था।
 
 
राहुल सिंह बताते हैं, "माइक टैंगो ने हमे बताया कि अगर मैं कुछ इंच लंबा होता तो आपके सामने बैठकर बात न कर रहा होता। पाकिस्तानी सैनिकों की गोलियां हमारे कानों के बग़ल से गुज़र रही थीं। जब ऑटोमेटिक हथियार की गोली कान के बगल से गुज़रती है तो आवाज़ आती है.... पुट.. पुट.. पुट. हम चाहते तो उसी रास्ते से वापस आ सकते थे, जिस रास्ते से हम वहाँ गए थे। लेकिन अपने जानबूझ कर वापसी का लंबा रास्ता चुना।"
 
 
"हम पाकिस्तानी क्षेत्र में और अंदर गए और फिर वहाँ से वापसी के लिए मुड़े। बीच में 60 मीटर का एक ऐसा हिस्सा भी आया जहाँ आड़ के लिए कुछ भी नहीं था। सारे कमांडोज़ ने पेट के बल चलते हुए उस इलाक़े को पार किया।"
 
"टैंगो की टीम ने सुबह साढ़े चार बजे भारतीय क्षेत्र में क़दम रखा। लेकिन तब भी वो पूरी तरह से सुरक्षित नहीं थे। लेकिन तब तक वहां पहले से मौजूद भारतीय सैनिकों ने उन्हें कवर फ़ायर देना शुरू कर दिया था। सबसे बड़ी बात ये थी कि इस पूरे अभियान में टैंगो की टीम का एक भी सदस्य न तो मारा गया और न ही घायल हुआ।"
 
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बोतल से सीधे मुंह में व्हिस्की
भारत की सीमा पार करते ही एक चीता हेलिकॉप्टर, टैंगो को 15 कोर के मुख्यालय ले गया। उनको सीधे ऑपरेशन रूम ले जाया गया। वहाँ उनके सीओ ने उन्हें गले लगाया। कोर कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल सतीश दुआ को देखते ही टैंगो ने उन्हें सेल्यूट किया।
 
राहुल सिंह बताते हैं, "जब जनरल दुआ टैंगो से मिल रहे थे, एक वेटर एक ट्रे में ब्लैक लेबेल व्हिस्की भरे कुछ ग्लास ले कर आया। जनरल ने हुक्म दिया, इन्हें वापस ले जाओ। सीधे बोतल लाओ। तुम्हें पता नहीं कि ये लोग गिलास खा जाते हैं। ये सही भी है क्योंकि स्पेशल फ़ोर्स के कमांडोज़ को गिलास खाने की ट्रेनिंग दी जाती है।"
 
 
"वेटर तुरंत ब्लैक लेबेल की बोतल ले आया। जनरल दुआ ने बोतल अपने हाथ में ली और टैंगो से अपना मुंह खोलने के लिए कहा। वो तब तक टैंगो के मुंह में व्हिस्की डालते रहे जब तक उन्होंने बस नहीं कह दिया। उसके बाद टैंगों ने भी जनरल दुआ के मुंह में सीधे बोतल से व्हिस्की उड़ेली।"
 
जब टैंगो उत्तरी कमान के प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल डीएस हूदा से मिलने ऊधमपुर गए तो व्हिस्की का एक और दौर चला। राहुल बताते हैं, "टैंगो ने मन ही मन सोचा, कोई खाना दे दो। सारे दारू ही पिला रहे हैं।"
 
 
20 मार्च, 2017 को सर्जिकल स्ट्राइक करने वाली टीम के पाँच सदस्यों को शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।
 
मेज़र टैंगो को राष्ट्पति प्रणव मुखर्जी ने कीर्ति चक्र से सम्मानित किया। उस समय इस बात का ज़्यादा प्रचार नहीं किया गया कि कीर्ति चक्र पाने वाले और कोई नहीं, सर्जिकल स्ट्राइक के हीरो मेज़र माइक टैंगो ही हैं।
 

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