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म्यांमार का ARSA: वो संगठन जिस पर 99 हिंदुओं को मारने का आरोप है

हमें फॉलो करें म्यांमार का ARSA: वो संगठन जिस पर 99 हिंदुओं को मारने का आरोप है
, गुरुवार, 24 मई 2018 (10:46 IST)
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की म्यांमार के रख़ाइन प्रांत पर आई ताज़ा जाँच रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि रोहिंग्या मुसलमानों के हथियारबंद चरमपंथी संगठन ने एक या संभवत: दो नरसंहारों में 99 हिंदू नागरिकों को मार डाला था। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगस्त, 2017 में हिंदू गाँवों पर अराकान रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी (एआरएसए) द्वारा किए गए हमलों में महिलाओं और पुरुषों समेत कई बच्चे भी मारे गए थे।
 
 
म्यांमार और बांग्लादेश में किए गए दर्जनों इंटरव्यू, कई तस्वीरों, गवाहों और फ़ॉरेंसिक रिपोर्टों के विश्लेषण के आधार पर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ये रिपोर्ट तैयार की है। इसमें बताया गया है कि कैसे अराकान रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी (एआरएसए) ने हिंदूओं पर क्रूर हमले कर उनमें भय बैठाने की कोशिश की।
 
 
क्या है 'ARSA'?
अराकान रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी (एआरएसए) कथित तौर पर म्यांमार के उत्तरी सूबे रख़ाइन में सक्रिय एक सशस्त्र संगठन है। बताया जाता है कि ये संगठन रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष कर रहा है और इसके ज़्यादातर सदस्य बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थी हैं।
 
 
इस संगठन के अनुसार, अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी नाम का एक शख़्स उनका लीडर है। 'एआरएसए' पहले दूसरे नामों से जाना जाता था जिसमें से एक था 'हराकाह अल-यक़ीन।'
 
 
संगठन की शुरुआत
अराकान रोहिंग्या सैल्वेशन आर्मी के प्रवक्ता के अनुसार, इस विद्रोही सेना ने साल 2013 से प्रशिक्षण शुरू कर दिया था। लेकिन इन्होंने पहला हमला अक्टूबर 2016 में किया, जिसमें 9 पुलिसकर्मी मारे गए थे। म्यांमार सरकार का आरोप है कि इस संगठन ने अब तक 20 से ज़्यादा पुलिसकर्मियों की हत्या की है।
 
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'ARSA' का मक़सद
संगठन के मुताबिक़, उनका मक़सद म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या समुदाय के लोगों की रक्षा करना है। वे रोहिंग्या लोगों को सरकारी दमन से बचाना चाहते हैं। संगठन लगातार दावा करता रहा है कि उसने कभी भी आम नागरिकों पर हमला नहीं किया। लेकिन उनके इस दावे पर सवाल उठते रहे हैं। आरसा ने एमनेस्टी की ताज़ा रिपोर्ट में संगठन पर लगे आरोपों को ख़ारिज करते हुए इस तरह के किसी भी हमले को अंजाम देने से इनकार किया है।
 
 
मार्च, 2017 में एक अज्ञात स्थान से समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए इंटरव्यू में अताउल्लाह ने कहा था कि उनकी लड़ाई म्यांमार के बौद्ध बहुमत के दमन के ख़िलाफ़ है। और ये लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक म्यांमार की नेता आंग सान सू ची उन्हें बचाने के लिए कोई क़दम नहीं उठातीं। भले इस लड़ाई में लाखों लोगों की जान क्यों न चली जाए। संगठन के लोग कहते हैं कि वे सभी साल 2012 में हुए दंगों के बाद सरकार की हिंसक प्रतिक्रिया से नाराज़ हैं।
 
 
कैसे हथियार हैं आरसा के पास?
25 अगस्त, 2017 को पुलिसकर्मियों पर हुए हमले के बाद सरकार ने कहा था कि 'आरसा' के हमलावरों के पास चाकू और घर में बनाए बम थे। संगठन के विद्रोहियों के पास अधिकांश वो हथियार हैं जिन्हें घर में तैयार किया गया है। हालांकि इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) की रिपोर्ट बताती है कि 'आरसा' में शामिल लोग पूरी तरह से अनुभवहीन नहीं हैं।
 
 
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि इस विद्रोही सेना के लोग दूसरे संघर्ष में शामिल लोगों से भी मदद ले रहे हैं जिसमें अफ़ग़ानिस्तान के लोग भी शामिल हैं। म्यांमार सरकार ने कहा था कि रोहिंग्या लोगों ने खाद और स्टील पाइपों से आईईडी तैयार किए हैं।
 
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पाकिस्तान, सऊदी और बांग्लादेश कनेक्शन
म्यांमार सरकार की नज़र में अराकान रोहिंग्या रक्षा सेना एक चरमपंथी संगठन है जिसके नेता विदेशों से प्रशिक्षण लेते हैं। वहीं इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप (आईसीजी) के मुताबिक़, इस सेना के लीडर अताउल्लाह एक रोहिंग्या शरणार्थी के बेटे हैं जिनकी पैदाइश पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की है।
 
 
हालांकि अताउल्लाह जब 9 साल के थे तो उनका परिवार सऊदी अरब चला गया था और अताउल्लाह सऊदी अरब में ही पले-बढ़े। आईसीजी ने अपने विश्लेषण में भी कहा था कि बाहरी चरमपंथी समूहों से मिल रही मदद के बावजूद ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनसे पता चलता हो कि एआरएसए के लड़ाके अंतरराष्ट्रीय जिहादी एजेंडे का समर्थन करते हैं। इस्लामिक स्टेट के समर्थकों ने भी एआरएसए के समर्थन में ऑनलाइन बयान जारी कर म्यांमार के ख़िलाफ़ हिंसा का आह्वान किया था।
 
 
नई दिल्ली में म्यांमार के पत्रकारों की स्थापित की गई निजी कंपनी 'द मिज़्ज़िमा मीडिया ग्रुप' ने 19 अक्टूबर, 2016 को अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि एएसआरए के नेता अताउल्लाह उर्फ़ हाफ़िज़ तोहार को एक अन्य चरमपंथी संगठन हरक़त उल-जिहाद इस्लामी अराकान (हूजी-ए) ने जोड़ा था।
 
 
हरक़त उल-जिहाद इस्लामी अराकान (हूजी-ए) के पाकिस्तानी चरमपंथी समूह लश्कर-ए-तैयबा और पाकिस्तानी तालिबान के साथ संबंध हैं। इस रिपोर्ट में बांग्लादेश के चरमपंथ रोधी अधिकारियों के हवाले से कहा गया था कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी चरमपंथी समूहों के बीच तालमेल को भी ख़ारिज नहीं किया जा सकता है। हालांकि विदेशी इस्लामी चरमपंथियों से संबंध रखने के म्यांमार सरकार के आरोपों को अताउल्लाह बेबुनियाद बताते हैं।
 
 
म्यांमार सेना की कार्रवाई
माना जाता है कि अगस्त, 2017 में पुलिस चौकियों पर आराकान रोहिंग्या रक्षा सेना के सशस्त्र हमलावरों ने कथित तौर पर हमला किया जिसके बाद रख़ाइन में रोहिंग्या मुसलमानों का संकट गहरा गया। इसके बाद म्यांमार के सुरक्षा बलों की कार्रवाई शुरू हुई और लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश की तरफ पलायन करना पड़ा।
 
 
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया कि म्यांमार के सुरक्षा बलों ने रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर नरसंहार और गैंग रेप को अंजाम दिया। इस रिपोर्ट में म्यांमार के सुरक्षा बलों की कार्रवाई को मानवता के विरुद्ध अपराध कहा गया था।

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