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क़तर में कामयाबी की दास्तान लिखने वाले हिंदुस्तानी सबिह बुख़ारी

हमें फॉलो करें क़तर में कामयाबी की दास्तान लिखने वाले हिंदुस्तानी सबिह बुख़ारी
, सोमवार, 23 अक्टूबर 2017 (11:56 IST)
उमर दराज़ नांगियाना (बीबीसी उर्दू, दोहा, क़तर)
 
खाड़ी देशों की अरब रियासतों में क़तर एक छोटा-सा मुल्क है। हालांकि, उसके पास दुनिया के तीसरे बड़े क़ुदरती गैस के भंडार मौजूद हैं। उनसे हासिल होने वाली दौलत की बदौलत बीते दो दशकों से क़तर ने तेज़ी से विकास का सफ़र तय किया है। जहां कुछ दशक पहले तक सिर्फ़ रेत ही रेत थी। वहां, आज आसमान को छूती इमारतें और चौड़ी सड़कें नज़र आती हैं। मौजूदा क़तर को खड़ा करने में आप्रवासियों का बहुत बड़ा हाथ है जिन्होंने इस कोशिश में अपना जीवन भी बेहतर बनाया। ऐसी कई मिसालें मौजूद हैं जहां बेहद आम लोगों के पास आज धन-दौलत है।
 
वाटर प्रूफिंग कंपनी में सेल्समैन
विशेष रूप से दक्षिण एशिया से संबंध रखने वाले कई आप्रवासियों के लिए क़तर सपनों की धरती साबित हुआ है। उन्हीं में भारत के भोपाल शहर से ताल्लुक़ रखने वाले मोहम्मद सबिह बुख़ारी भी शामिल हैं। तक़रीबन तीन दशक पहले वह क़तर आए और वाटर प्रूफ़िंग का काम करने वाली एक मामूली सी कंपनी में सेल्समैन की नौकरी शुरू कर दी। आज वह देश की चंद बड़ी कंपनियों में शुमार होती है, वह कंपनी कई तरह का व्यवसाय कर रही है और सबिह बुख़ारी उसके मैनेजिंग पार्टनर हैं।
 
सन 2014 में मशहूर फोर्ब्स मैगज़ीन ने उन्हें मध्य पूर्व के 100 प्रभावी कारोबारियों की लिस्ट में शामिल किया था। बीबीसी से बात करते हुए सबिह बुख़ारी ने बताया कि उनकी इस ग़ैर-मामूली तरक़्क़ी के पीछे उनकी मेहनत, बेहतर रणनीति और फिर अच्छी क़िस्मत का हाथ है।
 
क़तर नहीं जाना चाहते थे सबिह
उन्होंने कहा, "मैं क़तर या खाड़ी देशों में नहीं आना चाहता था। मैं भारत में ही अपना भविष्य देखता था। मगर कहते हैं क़िस्मत के आगे किसी की नहीं चलती तो मेरी भी नहीं चली।" 
 
वह बिज़नेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री हासिल करने के बाद सन 1989 में क़तर में साटको इंटरनेशनल नामक एक कंपनी में सेल्समैन की नौकरी करने लगे। भारत में कंपनी की ओर से उनका इंटरव्यू लेने वाले शख़्स ने उन्हें साथ चलने के लिए मनाया था। उन्होंने सोचा था कि काम पसंद नहीं आया तो वह तीन महीने बाद वापस लौट जाएंगे। इसलिए न ही सैलरी तय हुई और न ही दूसरी चीज़ें तय हुईं। कंपनी ने हवाई टिकट भेजा और वह चले आए।
 
सेल्समैन का काम नहीं आता था
उन्होंने बताया, "अरबी भाषा से मैं परिचित नहीं था। सेल्समैन के जिस काम के लिए मुझे लाया जा रहा था वो मुझे आता नहीं था और पहली बार भारत से निकला था इसलिए उदास भी था।" सबिह की परेशानी तब बढ़ी जब महज़ एक महीने के बाद कंपनी के मालिक की ग़ैर-हाज़िरी के बाद तमाम काम उन्हें संभालना पड़ गया।
 
ज़िम्मेदारी ने उन्हें वह सब कुछ सिखा दिया जिससे वह भाग रहे थे। जब रुकने का फ़ैसला कर लिया तो कारोबार को बढ़ाने का मंसूबा बनाया। उनका कहना है कि महज़ तीन साल के अरसे में वाटर प्रूफ़िंग के कारोबार में उनकी कंपनी देश की दूसरी बड़ी कंपनियों को पीछे छोड़ चुकी थी।
 
सबिह बुख़ारी की रणनीति से कंपनी के दूसरे हिस्से वजूद में आए और 15 कर्मचारी से चलने वाली कंपनी में 15 हज़ार कर्मचारी जा पहुंचे। साथ ही सबिह बुख़ारी तरक़्क़ी पाते हुए ऊपरी मैनेजमेंट में पहुंच गए और अंत में पहले कंपनी के हिस्सेदार बने फ़िर इसके मैनेजिंग पार्टनर या कहें मालिक बन गए।
 
क़िस्मत को देते हैं क्रेडिट
यह ग़ौरतलब है कि क़तर समेत खाड़ी देशों में कारोबार करने के लिए स्थानीय व्यक्ति को भागीदार बनाया जाना ज़रूरी है। बुख़ारी कहते हैं कि वह दुनिया के कई देशों में घूम चुके हैं। हालांकि, वह क़तर को सपनों की सरज़मीं समझते हैं। वह कहते हैं, "ये सच है कि आप स्थानीय भागीदार के बिना यहां कारोबार नहीं कर सकते मगर यहां सरकार आपकी पूंजी को पूरी सुरक्षा प्रदान करती है।"
 
उनका कहना था कि ज़िंदगी में मुश्किल हर क़दम पर आपके सामने आती है पर इंसान के पास यह ताक़त मौजूद है कि वह उसका मुक़ाबला कैसे करे। उनका मानना है कि उनकी तरक़्क़ी में मेहनत उनकी थी लेकिन फ़िर भी इसमें 'अच्छे नसीब' का हाथ है। वह कहते हैं, "इसलिए मैं ख़ुद को आत्म सम्मानित व्यक्ति नहीं समझता बल्कि नसीब का बनाया इंसान समझता हूं।" उनका कहना था कि कामयाबी के लिए उनका एक ही मंत्र है। वह हार मानने या छोड़ देने में यक़ीन नहीं रखते।

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