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ऑफ़िस में कोट टाई या फिर साड़ी पहनने का मतलब?

हमें फॉलो करें ऑफ़िस में कोट टाई या फिर साड़ी पहनने का मतलब?
, शुक्रवार, 25 अगस्त 2017 (11:19 IST)
- कैरी कूपर (बीबीसी कैपिटल)
पहनावे के अजीबोग़रीब नियमों के चलते लोग असहज महसूस करते हैं और अब तो इनके ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठने लगी है। निकोला थॉर्प को जब हाई हील न पहनने की वजह से दफ़्तर से वापस भेजा गया तो लोगों ने इसकी कड़ी आलोचना की। जो बार्ज गर्मी के दिनों में भी शॉर्ट्स पहनने की अनुमति न देने की अपनी कंपनी की नीति से इतने दुखी थे कि एक दिन स्कर्ट पहनकर ऑफिस पहुंच गए।
 
कार्यस्थलों पर पहनावे के नियम कई बार इतने बेतुके होते हैं कि हैरानी होती है। महिलाओं और पुरुषों दोनों को इन ऊटपटांग नियमों का शिकार होना पड़ता है। और ऐसा नहीं कि ये नियम सिर्फ कॉरपोरेट कार्यालयों में ही लागू होते हों। अभी कुछ दिन पहले तक ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में यह परंपरा थी कि सांसद टाई पहनें हों, तभी सवाल पूछ सकतें हैं वरना नहीं। स्पीकर जॉन बर्को ने हाल ही में सदियों पुरानी यह परंपरा ख़त्म करने की घोषणा की।
 
जब एक महिला पत्रकार को शोल्डरलेस पोशाक की वजह से अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर लॉबी में प्रवेश नहीं करने दिया गया तो हाउस स्पीकर पॉल रयान को ड्रेस कोड पर सवालों का जवाब देना पड़ा। दबाव के चलते रयान को पोशाक संबंधी नियमों को बदलने का निर्देश देना पड़ा।
 
क्या है उचित पोशाक?
फ़ैशन कंपनी स्टाइल द्वारा पूर्णकालिक नौकरी कर रहे 2000 लोगों के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण में करीब अस्सी फ़ीसदी लोगों ने कहा कि वे कार्यालय हर दिन वही पहनकर जाते हैं जो उन्हें कहा जाता है। चालीस फ़ीसदी लोगों को हमेशा बिज़नेस सूट पहनना होता है।
 
आख़िर बिज़नेस ड्रेस है क्या, इसकी परिभाषा बड़ी अजीब है। पुरुषों के मामले में तो ग़नीमत है, सूट और टाई से काम चल जाता है, टाई भी पहनें या न पहनें। लेकिन महिलाओं के लिए इस बारे में कोई निश्चित नियम नहीं हैं, इसलिए इससे भी दिक्कत होती है। पुरुष तयशुदा ढर्रे से परेशान होते हैं तो महिलाएं बिज़नेस ड्रेस की अमूर्त अवधारणा से। वे समझ ही नहीं पातीं कि सही बिज़नेस ड्रेस क्या है और अचानक से किसी दिन उन्हें बताया जाता है कि आज आपका पहनावा कार्यालय के लिहाज़ से उपयुक्त नहीं है। ट्रांसजेंडर लोगों की मुश्क‍िलों का तो कहना ही क्या।
 
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और पहनावे को लेकर इतनी चिंता किसलिए? सर्वेक्षण में शामिल 61% लोगों ने कहा कि ड्रेस कोड से उनके आउटपुट पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता और 45% का तो यहां तक कहना था कि अगर वे अपने पहनावे में सहज महसूस करेंगे तो उनका आउटपुट बेहतर ही होगा। फ़ेसबुक के संस्थापक मार्क ज़करबर्ग कहते हैं, 'अगर बिज़नेस ड्रेस से कर्मचारियों की उत्पादकता बढ़ती है तो शुक्रवार को अपनी मर्ज़ी की ड्रेस पहनने की छूट से तो आर्थिक आपदा ही आ जाती।'
 
सर्वेक्षण के मुताबिक पहनावे से जुड़े बेतुके नियमों के कारण 12% लोग अपनी नौकरी छोड़ना चाहते हैं। कॉल सेंटर में काम करने वाले लोगों के मामले में तो यह आंकड़ा 32% का है। अगर लोग नौकरी ही छोड़ने लगेंगे तो कंपनी की उत्पादकता में आने वाली गिरावट की तो कल्पना ही की जा सकती है।
 
पूर्व नियोक्ताओं की समीक्षा वाली वेबसाइट ग्लासडोर पर पिछले वर्ष 8500 से ज्यादा लोगों ने अपनी पूर्व कंपनी में पहनावे के नियमों पर भी टिप्पणी की।
 
ड्रेस जैसी बात पर इतना झमेला?
पहनावे के परंपरागत नियमों के समर्थकों को चिंता है कि संगठनों द्वारा अपनी ड्रेस कोड में ढील देने से उनकी छवि पर बुरा असर पड़ेगा। ब्रिटेन के सांसद पीटर बॉर्न का कहना है टाई के बिना तो संसद किसी गांव-देहात की पंचायत लगेगी। हो सकता है यह सही हो, लेकिन इससे क्या फ़र्क पड़ता है? 
 
ऑस्ट्रेलियाई सीनेटर डेरिन हिंच जब संसद में सोते हुए पाए गए तो वह सूटबूट और टाई पहने हुए थे। अगर आपने बिज़नेस ड्रेस पहनी हो तो आपकी छवि लीडर और भरोसेमंद की बन भी सकती है या फिर यह भी हो सकता है कि आप ज़रूरत से ज्यादा बने-ठने और अलग-थलग नजर आएं। कहा जाता है कि टी-शर्ट और हुड से लापरवाह की छवि बनती है, लेकिन अक्सर इसे पहनने वाले मार्क ज़ुकरबर्ग की नेतृत्व क्षमता के बारे में तो कोई संदेह नहीं उपजा।
 
पहनावे के नियम परंपरा और परिपाटी पर आधारित होते हैं और वर्षों से इन नियमों का पालन कर रहे वरिष्ठ अधिकारी इन्हें अपनाने पर बल देते हैं, जबकि युवा इनका विरोध करते हैं।
 
मार्क ज़ुकरबर्ग जैसे युवा नेतृत्व के चलते पहनावे के पुराने नियमों की समाप्ति और नए नियमों की शुरुआत होने की संभावना है। जबकि पहनावे के नियम लचीले होने चाहिए ताकि कर्मचारी वह पोशाक पहन सकें जिनमें वे सहज हों। उन्हें वरिष्ठ अधिकारियों की धारणाओं के हिसाब से अपना पहनावा तय न करना पड़े।
 
वस्त्रों का अपना एक अर्थ होता है, और हम उन्हीं वस्त्रों में सहज होते हैं जो हमारी आत्मछवि से मेल खाते हैं। हर व्यक्ति के मन में अपनी एक छवि होती है, यह छवि अपने जेंडर, क्षमताओं या वयस्क व्यक्ति के रूप कोई व्यक्ति कैसे खुद को देखता है, उस पर आधारित होती है और वह इसी छवि को औरों के सामने भी पेश करना चाहता है। किसी भी व्यक्ति को ऐसे वस्त्र पहनने के लिए मजबूर करना, जो उसकी आत्मछवि के विपरीत हों, सही नहीं है।
 
स्टारबक्स कंपनी ने अपने उदार ड्रेस कोड में और भी ढील दी है और अपने कर्मचारियों को स्पोर्ट हैट और रंग-बिरंगी केशसज्जा अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया है।
 
यकीनन, माहौल का अपना महत्व है और लोग अपने व्यवसाय के मुताबिक ही पोशाक पहनते हैं। लेकिन क्या पहनावे पर इतना ज़ोर दिया जाना चाहिए कि लोग नौकरी ही छोड़ना चाहें?
 
सिलिकॉन वैली में पहनावे के नियम बेहद उदार हैं लेकिन उत्पादकता अच्छी-ख़ासी। गोल्डमन सैक्स ने पिछले महीने अपने पहनावे संबंधी नियमों में छूट देने की घोषणा की और इससे कंपनी की छवि को कोई नुकसान नहीं पहुंचा। बल्कि जिस दिन यह घोषणा हुई उस दिन कंपनी के एक शेयर का मूल्य 225 डॉलर था और एक महीने बाद यह बढ़कर 232 डॉलर हो गया।
 
कार्यालयों में पहनावे के नियमों के कई मनोवैज्ञानिक नुकसान भी हैं। और जब बड़ी-बड़ी कंपनियां ऐसे असहज नियमों से तौबा कर प्रगति के कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, तो फिर ऐसे नियमों को ढोते रहने से भला क्या हासिल होगा?

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