Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

HIV पॉज़िटिव बच्चों के सपनों को पंख देता एक स्कूल

हमें फॉलो करें HIV पॉज़िटिव बच्चों के सपनों को पंख देता एक स्कूल
, मंगलवार, 8 मई 2018 (12:30 IST)
रवि प्रकाश बनाहप्पा (हज़ारीबाग) से
 
'मेरी मां बहुत सुंदर थी. मुझे दूध-भात खिलाती थी. उनके नाक में नथुनी थी और वो फूल के छाप वाली साड़ी पहनती थी. लेकिन, मेरे पापा 'गंदे' थे. 'गंदा काम' किए थे. इसलिए उनको बीमारी (एड्स) हो गई थी. वही 'बीमारी' मेरी मां को भी हो गई और एक दिन मेरी मां मर गई। हम बहुत छोटे थे, तभी पापा भी मर गए। इसके बाद मेरा भाई मर गया और फिर मेरी बहन। मैं अकेली रह गई।'
 
रनिया (बदला हुआ नाम) यह कहते हुए कभी गुस्साती है, तो कभी उसकी आंखों में आंसू भर जाते हैं। आज वो बारह साल की है लेकिन जब ये सबकुछ हुआ वो सिर्फ़ पांच साल की थी।
 
'सबके रहते हम अनाथ हो गए'
रनिया ने बीबीसी से कहा, "मां-पापा की मौत के बाद चाचा-चाची का व्यवहार बदल गया। मुझे अलग बिठाकर खाना दिया जाने लगा। कोई मुझसे बात नहीं करता था। लोगों को लगता था कि मेरे छू जाने से भी उन्हें एड्स हो जाएगा। इसलिए कोई मेरे पास नहीं आता था। घर में सब थे लेकिन हम अनाथ हो चुके थे। तब मेरी दादी मुझे हज़ारीबाग के पास एक अनाथ स्कूल मे छोड़ गईं। उसके बाद जब यह स्कूल खुला, तो मैं सिस्टर ब्रिटो के साथ यहां आ गई।"
 
बकौल रनिया, अब उसकी ज़िंदगी अच्छी है। बड़ी होकर उसे टीचर बनना है। ज़िंदा रहना है। इसलिए वह समय पर दवा खाती है और खूब पढ़ती है। वो कहती हैं, "एचआईवी पॉज़िटिव होने का मतलब मौत नहीं होता। मैं ठीक हो जाउंगी और बच्चों को पढ़ाउंगी।"
 
एड्स पीड़ितों का स्कूल
रनिया एचआईवी पॉज़िटिव (एड्स पीड़ित) उन 120 बच्चों में से एक हैं, जिनके लिए 'घर' का मतलब स्नेहदीप होली क्रॉस आवासीय विद्यालय है। सिर्फ़ एचआईवी पॉज़िटिव पेरेंट्स और उनके बच्चों के लिए संचालित यह स्कूल हज़ारीबाग से कुछ कोस दूर बनहप्पा गांव में है। इसे सिस्टर ब्रिटो चलाती हैं। वे नन हैं। केरल से आई हैं और अब झारखंड में रहकर एड्स पीड़ितों के बीच काम कर रही हैं।
webdunia
चार साल पहले खुला स्कूल
सिस्टर ब्रिटो ने मुझे बताया कि सितंबर 2014 में 40 बच्चों के साथ उन्होंने यह स्कूल खोला था। तब यहां हज़ारीबाग के अलावा कोडरमा, चतरा, गिरिडीह, धनबाद आदि ज़िलों के एचआईवी पॉज़िटिव बच्चों का दाखिला लिया गया था। वो कहते हैं कि अब यहां कई और ज़िलों के बच्चे पढ़ते हैं। यहां उनके रहने-खाने और पढ़ने की मुफ़्त व्यवस्था है। होली क्रॉस मिशन और समाज के लोग इसके लिए पैसे उपलब्ध कराते हैं।
 
एड्स पीड़ितों की मां हैं सिस्टर ब्रिटो
सिस्टर ब्रिटो ने बीबीसी से कहा, "मैं साल 2005 से एड्स पीड़ित लोगों के लिए काम कर रही हूं। मैंने तरवा गांव में ऐसे लोगों को समर्पित एक अस्पताल खोला था।"
 
वो कहती हैं, "इस दौरान मुझे ऐसे लोगों के परिजनों को नजदीक से देखने-जानने का मौका मिला। मुझे लगा कि ऐसे लोगों के बच्चे पढ़-लिख नहीं पाते। जिंदगी से निराश हो जाते हैं। तब साल 2009 में एचआईवी पॉज़िटिव बच्चों के लिए स्कूल खोलने का प्रस्ताव लेकर मैं हज़ारीबाग के तत्कालीन डीसी विनय चौबे से मिली।"
 
"उनकी मदद से मैंने एक अनाथ स्कूल खोला। उसके संचालन के दौरान साल 2014 की जनवरी में रामकृष्ण मिशन के स्वामी तपानंद ने मुझे स्थायी स्कूल खोलने का सुझाव दिया। ज़मीन ख़रीदने के लिए पैसे भी दिए। तब मैं बनाहप्पा आ गई और सितंबर 2014 में मैंने इस स्कूल की शुरुआत की। अब स्कूल के बच्चे मुझे मां कहते हैं तो संतुष्टि मिलती है।"
 
एड्स का मतलब मौत नहीं
इन बच्चों के इलाज का ज़िम्मा डा लाइका और डॉ. अनिमा कुंडू संभालती हैं। डॉ. अनिमा ने बताया कि अगर दवाइयां समय पर दी जाएं तो एचआईवी पॉज़िटिव बच्चे भी सामान्य ज़िदगी जी सकते हैं। इस स्कूल के बच्चों को हमलोगों ने अपनी देखरेख में रखा है और ये स्वस्थ हैं।
webdunia
बच्चों में गुस्सा है लेकिन प्रतिभा भी
इस स्कूल में बच्चों की काउंसलिंग करने वाली शिक्षिका डेजी पुष्पा ने बताया कि काउंसलिंग के दौरान बच्चों के स्वाभाविक गुस्से को शांत करना पड़ता है। बच्चों को ऐसा लगता है कि उनके मां-बाप की ग़लतियों के कारण वे एचआईवी पॉज़िटिव हो गए हैं। वो कहती हैं, "जब हम उन्हें समझाते हैं तो फिर बच्चे काफ़ी उत्साहित हो जाते हैं। मेरे बच्चे न केवल पढ़ाई बल्कि डांस, खेल और पेंटिंग में भी अव्वल हैं।"
 
सामान्य बच्चे भी पढ़ते हैं
इस स्कूल में एड्स पीड़ित मां-बाप के सामान्य बच्चे भी पढ़ते हैं। ऐसे ही एक बच्चे मिथुन (बदला हुआ नाम) से मेरी मुलाकात हुई। वह अब उच्च शिक्षा के लिए दूसरे स्कूल में पढ़ता है। उसने बताया कि उसके मां-बाप और दो भाई-बहनों की एड्स से मौत हो चुकी है।
 
उनकी मौत के बाद मामा-मामी उसे सिस्टर ब्रिटो के स्कूल में छोड़ गए। यहां चार साल रहने के बाद वह अब दूसरे स्कूल में पढ़ रहा है। मिथुन ने बताया कि हॉस्टल में वह दूसरे एचआईवी पॉज़िटिव बच्चों के साथ रहता-खाता था।
 
उसने कहा कि लोगों को समझना चाहिए कि एड्स साथ रहने-खाने से नहीं फैलता। यह सिर्फ़ एक बीमारी है अभिशाप नहीं। मैं इसका उदाहरण हूं। सिस्टर ब्रिटो अब इस स्कूल के विस्तार में लगी हैं। उन्होंने बताया कि जल्दी ही हम झारखंड के सभी जिलों के एचाईवी पॉज़िटिव बच्चों का एडमिशन लेने लगेंगे।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वो लड़की जिसके साथ राहुल की शादी की अफ़वाह उड़ी