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वो देश जहां 'डबल मीनिंग' बातों की पढ़ाई होती है

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, शनिवार, 2 जून 2018 (10:55 IST)
- सुज़ाना रिग (बीबीसी ट्रैवल)
 
हर देश और समाज में दोहरे मायनों या द्विअर्थी बातों का चलन होता है। बहुत से ऐसे जुमले हमारे समाज में भी चलते हैं, जो दोहरे मतलब वाले होते हैं। ख़ास तौर से ऐसी बातें, जो सब के सामने न की जा सकें। जैसे, सेक्स को लेकर हमारी सोच। अक्सर लोग सेक्स के बारे में इशारों में बातें करते हैं।
 
 
स्लैंग यानी अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करने से बचते हैं। ऐसे मौक़ों के लिए द्विअर्थी जुमले काम में लाए जाते हैं। पर, आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि ऐसे द्विअर्थी संवाद को एक देश अपनी सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर देखता है।
 
 
इस देश का नाम है मेक्सिको। लैटिन अमेरिका देश मेक्सिको में स्पेनिश भाषा बोली जाती है। ये देश सैकड़ों साल तक स्पेन का ग़ुलाम रहा था। मेक्सिको की कई ख़ूबियां हैं। मगर दोहरे मतलब वाली बातों के लिए ये देश ख़ास तौर से मशहूर है। यूं तो मेक्सिको चिली यानी मिर्च के लिए भी मशहूर है। एक से एक तीखी, तेज़ मिर्चें यहां उगाई जाती हैं।
 
 
पर, मिर्चों को लेकर यहां तमाम जुमलेबाज़ियां चलती हैं। इस लेख को लिखने वाली सुज़ाना रिग ब्रिटेन की रहने वाली हैं। वो मेक्सिको में रहते-रहते स्पेनिश ज़बान अच्छे से सीख गई हैं। मगर उन्हें दोहरे मायनों वाली जुमलेबाज़ी नहीं आती। सो, एक रोज़ जब वो रेस्टोरेंट में गईं, तो वेटर ने सुज़ाना से पूछा कि क्या आप मसालेदार खाना पसंद करती हैं?
 
 
मगर इस बात को पूछने के लिए उस वेटर ने सुज़ाना से घुमा-फिरा कर कई सवाल कर डाले। वो किस देश की रहने वाली हैं। कौन सी भाषा बोलती हैं। इंग्लैंड में वो कहां की रहने वाली हैं। फिर आख़िर में वेटर ने सुज़ाना से पूछा कि क्या आप मसालेदार खाना खाती हैं?
 
 
इसका जवाब हां में मिलने पर वेटर मुस्कुराता हुआ उनके पास से चला गया। सुज़ाना को समझ न आया कि आख़िर क्या बात है? इसके बाद एक वाक़िया और हुआ। सुज़ाना अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने गईं। बात मेक्सिको के ओक्साका शहर की है। दोस्तों ने सुज़ाना से मुस्कुराते हुए पूछा कि क्या उन्हें मिर्चें पसंद हैं?
 
 
सुज़ना का डर
वेटर के साथ हुई बातचीत के तजुर्बे के बाद सुज़ाना फ़ौरन बोल पड़ीं। कहा कि 'हां मुझे मिर्चें पसंद हैं'। इसके बाद उन्होंने मिर्चों की तारीफ़ में और भी बहुत कुछ कहा। और जब वो मिर्चों को लेकर अपने लगाव का बखान कर रही थीं, तो सुज़ाना के दोस्त हंस-हंसकर लोट-पोट हुए जा रहे थे।
 
 
सुज़ाना को समझ में नहीं आया कि इसमें इतना हंसने वाली बात क्या है। लेकिन उनके दोस्त तो हंस-हंसकर रोने की हालत में पहुंच गए थे। सुज़ाना ने मुस्कुराते हुए अपनी कही बातों पर ग़ौर किया। समझना चाहा कि कहीं ग़लती से उन्होंने स्पेनिश में कुछ ऊटपटांग तो नहीं कह दिया। उन्हें अपनी बातों में ऐसा कुछ नज़र नहीं आया।
 
 
इस बीच, उनके एक मेक्सिकन दोस्त ने हंसी रोकते हुए पूछा कि, 'क्या तुम्हें वाक़ई मेक्सिकन मिर्च बहुत पसंद है?' इसके बाद सभी लोग फिर से ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे। अचानक सुज़ाना को ख़याल आया कि उन्होंने मिर्च शब्द का इस्तेमाल किया था, और इसका दूसरा मतलब भी हो सकता है। वो शर्म से लाल हो गईं। जबकि दोस्त हंसते-हंसते पागल हो रहे थे।
 
 
शब्दों की बाज़ीगरी
असल में सुज़ाना मेक्सिको की संस्कृति के एक ख़ास चलन 'एल्बर' का शिकार हो गई थीं। एल्बर मेक्सिको में बात करने का वो ढंग है, जिसमें किसी भी वाक्य के दोहरे या कई मायने होते हैं। शब्दों की ये बाज़ीगरी मेक्सिको में ख़ूब चलती है। हिंदुस्तान की तरह ही मेक्सिको में सेक्स को लेकर लोग खुलकर बात करने से कतराते हैं। ऐसे में वो एल्बर यानी दोहरे मतलब वाले वाक्यों का सहारा लेते हैं।
 
 
ये बात सुज़ाना को समझाई मोरेलोस यूनिवर्सिटी की भाषा की प्रोफ़ेसर डॉक्टर लुसिल हेरास्ती ने। डॉक्टर हेरास्ती ने कहा कि सेक्स से जुड़ी बात के लिए दोहरे मतलब वाले जुमले मेक्सिको में ख़ूब इस्तेमाल होते हैं। उन्होंने समझाया कि मिर्च का मतलब लिंग भी होता है।
 
 
तब जाकर सुज़ाना को अपने दोस्तों के साथ हुई बातचीत और उनकी हंसी का राज़ समझ में आया। अब जो कोई मेक्सिको में एल्बर के चलन से वाक़िफ़ न हो, तो, वो मिर्चों से सालसा बनाने से लेकर मिर्चों से अपने लगाव की बातें नासमझी में कहेगा। वहीं दोहरे मतलब निकालने वाले मिर्चों के प्रति किसी के लगाव का दूसरा ही मतलब निकाल कर हंसेंगे।
 
 
मेक्सिकन कला
यूं तो हर देश में ऐसे द्विअर्थी जुमले ख़ूब चलते हैं। किसी चीज़ के दोहरे मायने निकाले जाते हैं। सेक्स की बातें ऐसे ही शब्दों के खेल करते हुए की जाती हैं। मगर मेक्सिको ने तो इसे बाक़ायदा अपनी संस्कृति की पहचान और अटूट हिस्सा बना लिया है। लोग इनकी मदद से इशारों में गालियां भी दे लेते हैं और मज़े से बातें भी कर लेते हैं।
 
 
डॉक्टर लुसिल हेरास्ती इसे मेक्सिकन कला कहती हैं। वो कहती हैं कि ज़बान पर अच्छी पकड़ रखने वाले ही ऐसा कर सकते हैं। ऐसे में जब कोई बाहरी मेक्सिको आता है, तो उसे ये कला समझने में वक़्त लगता है। इस दौरान वो कई बार दोस्तों के मज़ाक़ का निशाना बन जाता है।
 
 
ओक्साका में मेक्सिको की गाली-गलौज वाली भाषा की ट्रेनिंग देने वाले ग्रेगोरियो डेस्गारेनेस कहते हैं कि किसी के लिए भी अपनी मातृ भाषा के सिवा दूसरी भाषा के स्लैंग सीखने में दिक़्क़त होती है। ऐसे में मेक्सिकन एल्बर्स को समझना और भी मुश्किल हो जाता है। कई बार तो ये इतने गहरे मायने वाली बातें लिए होते हैं कि ख़ुद मेक्सिको के लोग उनका मतलब नहीं समझ पाते।
 
 
कैसे शुरू हुई द्विअर्थी बातों का चलन
एल्बर की शुरुआत कब हुई। ये चलन मेक्सिको में कहां से आया, कहना मुश्किल है। डॉक्टर हेरास्ती कहती हैं कि ये दोहरे जुमले मध्य मेक्सिको की खदानों में काम करने वालों ने सबसे पहले बोलने शुरू किए थे।घंटों खदान में काम करते करते बोर हो चुके लोगों ने अपने मनोरंजन के लिए ये बोल-चाल शुरू की थी।
 
 
वहीं, मेक्सिको के कुछ भाषाविदों का मानना है कि इसकी शुरुआत मेक्सिको के मूल निवासियों ने स्पेन के क़ब्ज़े के दौरान की थी। इस तरह दोहरे मतलब वाले जुमलों से वो स्पेनिश साम्राज्य के निज़ाम को धोखा देते थे। क्योंकि मेक्सिको के मूल निवासियों पर भी स्पेनिश ज़बान थोपी गई थी। सो उन्होंने आपस में राज़दाराना बातें करने के लिए ये तरीक़ा निकाल लिया।
 
 
ग्रेगोरियो डेस्गारेन्स कहते हैं कि असल में एल्बर, समाज के निचले तबक़े के लोगों की ऊंचे दर्जे वाले लोगों को चुनौती है। वो बताते हैं कि हम समाज के निचले तबक़े से हैं। लेकिन हमारा भी उतना ही हक़ बनता है। वहीं, अगर दो एल्बर बोलने वाले लोग मिलते हैं, तो बहुत जल्द उनमें अपनापन हो जाता है। क्योंकि वो समाज के एक ही तबक़े से ताल्लुक़ रखने वाले होते हैं।
 
 
द्विअर्थी जुमलों का मुक़ाबला
आज मेक्सिको में दोहरे मतलब वाले जुमलों का इतना चलन हो गया है कि इसका बाक़ायदा मुक़ाबला होता है। इसमें हर साल 'एल्ब्यूरेरोस' यानी द्विअर्थी जुमलों का उस्ताद चुना जाता है। बरसों तक इस पर मर्दों का ही कब्ज़ा रहा था। मगर 20 साल पहले लॉर्ड्स रुइज़ नाम की महिला ने पहली बार इस ख़िताब को जीता। उसके बाद से आज तक उनसे ये ताज कोई नहीं छीन सका है।
 
 
आज तो लॉर्ड्स रुइज़ मेक्सिको की राजधानी मेक्सिको सिटी में एल्बर सीखने की कोचिंग देती हैं। उन्हें क्वीन ऑफ़ एल्बर का ख़िताब मिला हुआ है। मेक्सिको में एल्बर बोलने वालों को डिप्लोमा भी दिया जाता है। आज रुइज़ के साथ और भी लड़कियां, दूसरे लोगों को एल्बर बोलना सिखा रही हैं। उनकी नज़र में ये दिमाग़ी शतरंज का खेल है। जानकार कहते हैं कि मेक्सिको के कामकाजी तबक़े के लिए आज एल्बर सशक्तिकरण का ज़रिया बन गए हैं।
 
 
देश की पहचान
मेक्सिको के कुछ लोग एल्बर को कविता के तौर पर देखते हैं। वहीं कुछ के लिए ये अश्लील और बदज़ुबानी है। 2014 से 2016 के बीच मेक्सिको में ये अफ़वाह फैल गई कि यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया है। हालांकि ये अफ़वाह ग़लत साबित हुई। लेकिन इससे मेक्सिको में एल्बर को लेकर नई बहस छिड़ गई। एक सर्वे के मुताबिक़ केवल 21 फ़ीसद मेक्सिकन ये मानते हैं कि एल्बर उनके देश की पहचान है।
 
 
अब मेक्सिको के लोग इस पर बहस करते रहें कि आख़िर एल्बर को वो कौन सा दर्जा देना चाहते हैं। मगर आम विदेशी नागरिक के लिए मेक्सिको का ये चलन चौंकाने वाला भी है और परेशान करने वाला। और जो कहीं आप एल्बर बोलना सीख गए, तो आप मज़े भी ले सकते हैं।
 
 
तो कभी जाइए मेक्सिको, 'द्विअर्थी जुमलों' के मज़े चखने के लिए!
 

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