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दलबदल और क्रॉस वोटिंग: विपक्षी सरकारों के लिए कितनी बड़ी चुनौती, बीजेपी को फायदा या नुकसान

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BBC Hindi

, रविवार, 3 मार्च 2024 (08:02 IST)
ज़ुबैर अहमद, बीबीसी संवाददाता
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में कथित तौर पर दो बार 'ऑपरेशन लोटस' किया। इससे मुख्यधारा की दो क्षेत्रीय पार्टियों, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में विभाजन हो गया। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की विदाई हुई और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में एक नई सरकार बनी।
 
साल 2017 में गुजरात में राज्यसभा की दो सीटों के चुनाव के दौरान, कई कांग्रेस विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की।
 
कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल जीत तो गए लेकिन उस क्रॉस वोटिंग की वजह से बेहद आसान समझी जा रही सीट को जीतने के लिए अहमद पटेल जैसे क़द्दावर नेता को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
 
बीते मंगलवार (27 फ़रवरी) को मानो इतिहास ने ख़ुद को दोहराया हो। हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की।
 
यह एक चौंकाने वाला परिणाम था, क्योंकि 2022 में 68 सदस्यीय विधानसभा में 40 विधायकों के साथ कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था। इसे देखते हुए कांग्रेस उम्मीदवार की जीत को महज़ औपचारिकता समझा जा रहा था।
 
क्या कांग्रेस का आत्मविश्वास उसे ले डूबा
कांग्रेस की इस हार के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी ने पिछले अनुभवों से कोई सबक़ नहीं सीखा।
 
साल 2017 में अहमद पटेल की तरह, पार्टी को विश्वास था कि इस बार भी उसके उम्मीदवार, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी आसानी से जीत जाएंगे। अहमद पटेल तो किसी तरह से जीत गए लेकिन सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा।
 
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पंकज वोहरा के अनुसार कांग्रेस पार्टी को दूसरों पर आरोप लगाने के बजाय अपनी रणनीति को ठीक करने की ज़रुरत है।
 
कांग्रेस के छह बाग़ी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया गया है। राज्य सरकार ने बजट पारित कराने के लिए व्हिप जारी किया था। इन छह बाग़ी विधायकों को व्हिप का उल्लंघन करने पर स्पीकर ने अयोग्य घोषित कर दिया। अब उन्होंने स्पीकर के फ़ैसले को हिमाचल हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
 
कांग्रेस पार्टी और दूसरी पार्टियों की राज्य सरकारें हाल के वर्षों में कई राज्यों में दलबदल और क्रॉस वोटिंग के कारण सत्ता गंवा चुकी हैं। बीजेपी ने कथित रूप से इन राज्यों में 'ऑपरेशन लोटस' का इस्तेमाल किया।
 
हाल के वर्षों में बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कांग्रेस सरकारों और दूसरी पार्टियों की सरकारों को गिराकर बीजेपी और इसकी भागीदार पार्टियों के सत्ता में आने से पार्टी की रणनीति और नैतिक मानकों पर सवाल खड़े किए गए हैं।
 
बीजेपी के नेताओं का तर्क है, "प्यार, युद्ध और राजनीति में सब कुछ जायज़ है।"
 
कांग्रेस ने भाजपा पर 'जनमत की चोरी' का आरोप लगाया है। लेकिन यह भी सच है कि कई ग़ैर बीजेपी पार्टियां गुटबाज़ी की शिकार हैं। सत्ता से बाहर उनके कुछ 'विधायकों में पद और मंत्रालय के कथित लालच' ने भी राज्य सरकारों को अस्थिर करने में अहम रोल निभाया है।
 
पंकज वोहरा कहते हैं कि बीजेपी अपने विस्तार और सत्ता में वापसी के लिए प्रतिद्वंद्वी पार्टियों में चल रही समस्याओं का भरपूर फ़ायदा उठाती रही है।
 
वो कहते हैं, "जब भी बीजेपी को नज़र आता है कि ऑपरेशन लोटस काम कर सकता है, वहां वो अपना काम शुरू कर देती है। हिमाचल में बीजेपी के उम्मीदवार हर्ष महाजन 2022 तक कांग्रेस में थे। उनका पार्टी ने सही अवसर देखकर भरपूर इस्तेमाल किया।''
 
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ऑपरेशन लोटस क्या है?
चुनावी और राजनीतिक सुधारों के लिए काम करने वाले एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स के संस्थापक सदस्य प्रोफ़ेसर जगदीप छोकर कहते हैं, "मेरे विचार में कांग्रेस को कुछ कहने का फ़ायदा नहीं है। जहां जहां विपक्ष या ग़ैर-बीजेपी सरकारें हैं, वहां वहां ऐसी कोशिशें होती रहती हैं। उनकी (बीजेपी की) कोशिश डबल इंजन सरकार बनाने की होती है और वो एक देश एक चुनाव के हामी हैं। अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए ऐसा करते रहते हैं।"
 
पंकज वोहरा कहते हैं कि पिछले हफ़्ते उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी को राज्यसभा चुनाव में उम्मीद से अधिक कामयाबी मिलने के पीछे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की ग़लतियां हैं। उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों में से, बीजेपी ने आठ पर जीत हासिल की, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) को दो सीटों पर जीत मिली। सपा को तीन सीटों पर जीत की उम्मीद थी।
 
पंकज वोहरा कहते हैं, "सिंघवी राजस्थान के हैं लेकिन उन्हें हिमाचल से लड़ाया गया। हिमाचल में पहली बार राज्य से बाहर का कोई व्यक्ति चुनाव लड़ रहा था। ये कांग्रेस की बेवक़ूफ़ी है, किसी बाहर के व्यक्ति को लड़ाना ही नहीं चाहिए था। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की ग़लती है। उन्होंने नौकरशाह को खड़ा किया जिसे केवल 19 वोट मिले।''
 
वो आगे कहते हैं, ''जया बच्चन को पांचवीं या छठी बार टिकट देने की क्या ज़रूरत थी? एक सियासी आदमी को लाना चाहिए था। टिकटों का बंटवारा सही नहीं था। पार्टी के अंदर बहुत सारे उम्मीदवार होते हैं जो सालों तक इंतज़ार करते हैं, इस मौक़े का। तो कांग्रेस और सपा को अपने अंदर झांककर देखना चाहिए।"
 
हिमाचल में बीजेपी की सियासी रणनीति पर बात करते हुए पंकज वोहरा कहते हैं, "बीजेपी का मक़सद कांग्रेस को हराना नहीं था बल्कि उसको सरकार के अंदर अनिश्चितता का एक माहौल बनाना था। जो नाख़ुश विधायक थे उन्हें पांच साल छोड़ दिया जाता तो वो बीजेपी के पास नहीं जाते। और इसमें बीजेपी कामयाब रही"
 
'ऑपरेशन लोटस' के विरोधी दावा करते हैं कि यह एक 'अवैध राजनीतिक रणनीति' है जो बीजेपी के प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करती है।
 
उनके अनुसार यह प्रजातंत्र के मूल सिद्धांतों को कमज़ोर करती है और लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता और निष्पक्षता को ख़तरे में डालती है।
 
क्या कहता है क़ानून?
भारत में दलबदल विरोधी क़ानून 1985 से लागू है। इसके तहत 'एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने वाले किसी भी विधायक या सांसद को दंडित किया जा सकता है।'
 
यह क़ानून दलबदल को हतोत्साहित करके सरकार को स्थिरता प्रदान करता है। लेकिन देश के अंदर पिछले कई सालों का इतिहास देखें तो ऐसा लगता है कि दलबदल को रोका नहीं जा सका है। दरअसल यह दलबदल विरोधी क़ानून को प्रभावी ढंग से लागू करने में ख़ामियों और चुनौतियों को रेखांकित करता है।
 
प्रोफ़ेसर जगदीप छोकर के मुताबिक़ दलबदल विरोधी क़ानून बेअसर हो चुका है, इसका अब कोई मतलब नहीं रहा।
हाल के वर्षों में क्रॉस वोटिंग ने भी कांग्रेस और दूसरी सरकारों के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
 
हाल के सालों के दलबदल और क्रॉस वोटिंग के कुछ प्रमुख मामलों पर एक नज़र:
 
महाराष्ट्र में बीजेपी की वापसी
2022 राज्य में सियासी उठापटक का साल माना जाएगा। उद्धव ठाकरे की शिवसेना में विभाजन के बाद, बीजेपी को शिवसेना (शिंदे गुट) के रूप में एक नया गठबंधन साथी मिला। इस तरह महाराष्ट्र में बीजेपी की सत्ता में वापसी हो पाई।
 
कुछ समय बाद इसमें एक और गठबंधन सहयोगी, अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल हो गई।
 
साल 2019 में, कर्नाटक में कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन की सरकार बनी। कांग्रेस और जद (एस) के कई विधायकों ने अपनी सीटों से इस्तीफ़ा दे दिया, जिसके कारण सरकार ने बहुमत खो दिया।
 
2020 में मध्य प्रदेश में, कांग्रेस विधायकों के इस्तीफ़े की वजह से कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई। तब बीजेपी पर विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त और ज़बरदस्ती के आरोप लगे। लेकिन बीजेपी ने ऐसे किसी भी आरोप को ख़ारिज कर दिया।
 
‘ऑपरेशन लोटस से नुक़सान भी हुआ’
सियासी विश्लेषक कहते हैं कि 'ऑपरेशन लोटस' एक कामयाब रणनीति रही है। हालांकि कभी-कभी इससे बीजेपी को नुक़सान भी हुआ है।
 
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इसका एक उदाहरण कर्नाटक में देखने को मिला। पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विजयी हुई थी।
 
पत्रकार रवि प्रकाश के अनुसार 'ऑपरेशन लोटस' ने भाजपा की सीटों की संख्या कम करने में प्रत्यक्ष भूमिका निभाई है।
 
2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 103 सीटें मिली थीं लेकिन ये संख्या 2023 में घटकर सिर्फ़ 66 रह गई।
 
साल 2023 का चुनाव हारने के बाद बीजेपी के एक नेता ने इस रिपोर्टर से कहा था कि 'ऑपरेशन लोटस' का नतीजों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
 
उनका कहना था, ''पार्टी ने अपनी विचारधारा और कैडर से समझौता किया। पार्टी ने विधायकों को पैसे का प्रलोभन देने या उन्हें मंत्री बनाने में भारी निवेश किया। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिला और पार्टी लोगों के बीच बेहद अलोकप्रिय हो गई, जिसके नतीजे में राज्य में सत्ता चली गई।''
Edited by : Nrapendra Gupta

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