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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: आवाज से कैसे होता है फ्रॉड, कैसे बचें

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BBC Hindi

इमरान कुरैशी, बीबीसी हिंदी के लिए, बेंगलुरु से
तकनीक की दुनिया में तेजी से होते बदलावों के बीच लोगों को "हर बात और हर शख़्स पर भरोसा न करने" की सलाह दी जा रही है। सायबर सुरक्षा के क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए युवाओं और वरिष्ठ नागरिकों के साथ फ्रॉड होने की ख़बरों के बीच ये एडवायज़री जारी की है।
 
एआई के ज़रिए किसी शख़्स की आवाज़ बनाकर उसके साथ बड़े आर्थिक फ्रॉड किए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में किसी तरह के सबूत नहीं पीछे छूटते हैं।
 
ऐसे में जांच होना भी मुश्किल होता है, लूटी रकम वापस लाना तो दूर की बात है। बात यहां तक पहुंच गयी है कि लोगों को अनजान नंबरों या अनजान लोगों की कॉल न उठाने की सलाह दी जा रही है।
 
सोच बदलने की जरूरत
सायबर सुरक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सोच में बदलाव लाना ज़रूरी है।
 
क्लाउडएसईके के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राहुल शशि बीबीसी हिंदी से कहते हैं, "नयी दुनिया में आप हर शख़्स या हर चीज पर भरोसा नहीं कर सकते। आपको खुद को एक ऐसे शख़्स के रूप में ढालना होगा जो कि हर चीज पर शक करे। और सभी चीजों और सभी लोगों पर भरोसा न करे। असल में आपको सोच में बदलाव लाने की ज़रूरत है।"
 
मध्य प्रदेश में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसमें एक शख़्स को कॉल करके उसके साथ आर्थिक फ्रॉड किया गया। फोन करने वाले शख़्स ने फोन उठाने वाले शख़्स से कहा कि उसके किशोर बेटे ने बलात्कार किया है जिसे रफ़ा-दफा करने के लिए पचास हज़ार रुपये देने होंगे।
 
सायबर सुरक्षा
फोन करने वाले शख़्स ने इस पिता को उसके बेटे की रोती हुई आवाज़ भी सुनाई। इस पर पिता ने तुरंत पचास हज़ार रुपये ट्रांसफर कर दिए। बाद में पता चला कि उसका बेटा बिलकुल ठीक था और ये एक फर्ज़ी कॉल थी।
 
ये मामला फ्रॉड के उन मामलों से मेल खाता है जिनमें फ्रॉड करने वाला किसी शख़्स की आवाज़ बनाकर उसके दोस्त को फोन करके कहता है कि वह एक अनजान देश में फंसा हैं और तुरंत पैसों की ज़रूरत है।
 
सिक्योरआईटी कंसल्टेंसी सर्विसेज़ में सायबर सुरक्षा विशेषज्ञ शशिधर सीएन कहते हैं, "मेरे एक दोस्त के साथ ऐसा हुआ। उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने दोस्त की आवाज़ में मदद की गुहार लगाने वाला संदेश मिला जिसमें कहा गया कि उसने अपना सारा सामान खो दिया है और उसे तत्काल रूप से आर्थिक मदद की ज़रूरत है।"
 
शशिधर सीएन कहते हैं, "भारत में मौजूद इस दोस्त ने जब फोन करके अपने दोस्त का हाल पूछा तो वो ये जानकर आश्चर्यचकित हुआ कि उसका दोस्त बिलकुल ठीक है। जब उसने अपने दोस्त को इस बारे में बताया कि उसके सोशल मीडिया अकाउंट पर ऐसा कहा जा रहा तो उसका दोस्त अपनी फर्जी आवाज़ सुनकर दंग रह गया। ये आवाज़ उसके जैसी ही थी।”
 
इस तरह के फ्रॉड अशिक्षित लोगों के साथ-साथ शिक्षित लोगों के साथ भी हो रहे हैं।
 
शशिधर इसका उदाहरण देते हए कहते हैं, "कुछ दिन पहले मुझे एक फोन आया। मुझे कहा गया कि ये कॉल टेलीकॉम विभाग से था। कहा गया कि अगर मैं रात तक केवाईसी डीटेल नहीं देता हूं तो मेरे नाम पर जारी किए गए सभी नंबर बंद कर दिए जाएंगे। फिर कहा गया कि आगे बढ़ने के लिए एक नंबर दबाएं…कोई भी मूर्ख बन सकता है।"
 
"मुझे पता था कि ये फिशिंग का मामला है जिसमें वे आपकी केवाईसी डिटेल ले लेते हैं। इसके बाद फ्रॉड करते हैं। मैंने इस नंबर को एक ऐप पर चेक किया जो नंबरों की पहचान करता है। इससे मुझे पता चला कि ये नंबर मध्य प्रदेश से था। मैंने नंबर ब्लॉक करके ऐप पर उसे फ्रॉड के रूप में परिभाषित किया जिससे अगर इस नंबर से किसी को कॉल जाए तो उसे पता हो कि ये एक फ्रॉड कॉल है।"
 
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कितना आसान है एआई के ज़रिए आवाज़ बनाना
वे कहते हैं, "ऐसे मामलों में फोन उठाने या मैसेज़ पाने वाले शख़्स को ऐसे मैसेज़ या फोन पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए।"
 
शशिधर कहते हैं कि इंटरनेट पर ऐसे कई टूल उपलब्ध हैं जो किसी की आवाज़ का नमूना लेकर उसकी "आवाज़ और बोलने के ढंग के साथ डीप-फेक वीडियो बना सकते हैं जिन्हें ट्रेस नहीं किया जा सकता। आप इन टूल्स को इस्तेमाल करके दंग रह जाएंगे।"
 
वहीं, राहुल शशि कहते हैं, "मैं आपको कॉल करके कॉल रिकॉर्ड कर सकता हूं जिससे मुझे एक फ़र्ज़ी कॉल बनाने के लिए पर्याप्त डेटा मिल जाएगा। कुछ एल्गोरिद्म को सीड डेटा की ज़रूरत होती है। मैं आपको वीडियो या नॉर्मल कॉल करके सीड डेटा हासिल कर सकता हूं। ये काफ़ी आसान है। कोई भी एक अनजान शख़्स से आई कॉल पर बातचीत कर सकता है। इस बातचीत के दौरान फ्रॉड करने के लिए उसकी आवाज़ रिकॉर्ड की जा सकती है।"
 
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वहीं, सायबर लॉ शिक्षाविद नावी विजयशंकर कहते हैं, "ऐसे ज़्यादातर धोखेबाजों के लिए सोशल मीडिया एक खजाने जैसा है जहां से वे आवाज़ों के साथ-साथ वीडियो और फोटोग्राफ़ कॉपी कर सकते हैं। ऐसा लगता है कि उनका ध्यान बच्चों के सोशल मीडिया अकाउंट पर है जहां से वे ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी हासिल कर सकते हैं।"
 
इस समय डीप फेक बनाने के लिए तकनीक उपलब्ध है। लेकिन उसका सामना करने के लिए तकनीक नहीं है।
 
विजयशंकर कहते हैं, "ये एक तरह से जागरूकता का मुद्दा है। घबराहट में लोग प्रतिक्रियाएं देते हैं। लेकिन बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाकर इसका समाधान किया जा सकता है। दूसरा कोई समाधान नहीं है।"
 
विजयशंकर एक कदम आगे बढ़कर सुझाव देते हैं कि बैंकिंग सेक्टर को तकनीक की मदद से पीड़ितों की जानकारी महफूज़ करनी चाहिए।
 
वह कहते हैं, "कोई शख़्स ऐसे फ्रॉड का शिकार होने पर ऑनलाइन पेमेंट करता है। चूंकि ये एक आधिकारिक पेमेंट होता है तो बैंक इस पर ध्यान नहीं देता है, जब तक ये कि राशि खाताधारक की ओर से सामान्य रूप से किए जाने वाले ट्रांजैक्शन से बड़ी न हो। जब वे बैंक में इस बारे में शिकायत करते हैं तो वे उस बैंक से संपर्क कर सकते हैं जिसमें पैसा जमा किया गया हो। हमारे बैंकिंग सिस्टम में एक कमी ये है कि पीड़ित का बैंक उस बैंक से संपर्क नहीं करता है जहां अपराधी का खाता है। ये सिस्टम ऑटोमेटिक हो जाना चाहिए।"


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