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अमृतसर रेल हादसा: 'डेढ़ साल की नूर मेरी गोद में थी, भीड़ ने उसे कुचल दिया'

हमें फॉलो करें अमृतसर रेल हादसा: 'डेढ़ साल की नूर मेरी गोद में थी, भीड़ ने उसे कुचल दिया'
, शनिवार, 20 अक्टूबर 2018 (11:42 IST)
- रविंदर सिंह रॉबिन (अमृतसर से बीबीसी हिंदी के लिए)
 
'मेरी बेटी अनु अपनी ससुराल फगवाड़ा से दशहरे के लिए ही अमृतसर आई थी।' 'अनु की डेढ़ साल की बेटी नूर...मेरी प्यारी सी धेवती, मेरी गोद में थी।'
 
 
'हम रेलवे ट्रैक पर नहीं थे। उससे अलग खड़े थे। पटाखे चले तो नूर खुशी में झूम रही थी। पता ही नहीं था कि ये खुशी मातम में बदल जाएगी।' अमृतसर के गुरुनानक अस्पताल में भर्ती कीमती लाल जब मुझे दशहरा मेले के दौरान हुए हादसे का हाल बयान कर रहे थे तो उनकी आंखों में आंसू थे।
 
 
15 मिनट पहले ही उन्हें जानकारी मिली थी कि हादसे में उनकी बेटी अनु और धेवती नूर दोनों की मौत हो गई। कीमती लाल को भी चोटें आई हैं और वो इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती हैं।
 
 
दशहरा मेले के दौरान जोड़ा फाटक के करीब शुक्रवार को एक ट्रेन की चपेट में आने से 62 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। इस हादसे में 150 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं।
 
 
कीमती लाल कहते हैं कि वो और उनकी बेटी ट्रेन की चपेट में नहीं आए। वो बताते हैं, "हम ट्रैक पर नहीं थे। अलग खड़े थे। भगदड़ हुई तो लोगों ने हमें कुचल दिया।"
 
 
बरसों से इस मेले में आते रहे कीमती लाल कहते हैं कि उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि इस बार मेले में आने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी होगी। इसी हादसे में घायल हुईं सपना भी गुरुनानक अस्पताल में भर्ती हैं। वो अपनी बहन के साथ मेला देखने पहुंचीं थीं। उनकी बहन की मौत की पुष्टि हो चुकी है। सपना के सिर पर चोट लगी है और वो अभी सदमे में हैं।
 
ट्रेन आने का पता नहीं लगा
घटना को याद करते हुए उन्होंने बताया, "जहां रावण दहन हो रहा था, हम वहां से दूर थे। रेलवे ट्रैक के पास एक एलईडी लगा था। हम उस पर रावण दहन देख रहे थे। रेलवे ट्रैक से तीन ट्रेन गुजर चुकी थीं। लेकिन जब ये ट्रेन आई तो पता ही नहीं चला।"
 
 
गुरुनानक अस्पताल में करीब 70 को लोगों को इलाज के लिए भर्ती कराया गया है। हादसे के बाद अस्पताल में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ था। लोग अपने रिश्तेदारों को खोजने के लिए अस्पताल का रुख कर रहे थे। अस्पताल के मुर्दाघर के पास भारी भीड़ बनी हुई थी । हादसे में करीबियों को गंवाने वाले लोगों की वहां कतारें देर रात तक लगी रहीं। अपनों को खोजने आए लोग रो रहे थे। अब भी मुर्दाघर में करीब 25 शव हैं।
 
 
आगे आए मददगार
इस बीच मदद के लिए भी लोग आगे आते दिखे। आम लोग घायलों को खून देने के लिए पहुंचने वालों का तांता लगा रहा। कई लोग घायलों और उनके परिजन के लिए खाना भी लेकर आए। गंभीर हालत वाले मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजा गया है। मरीजों को सिविल अस्पताल और दूसरे निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है।
 
 
गुरुनानक अस्पताल में हमें हृदयेश भी मिले। ट्रेन की चपेट में आकर उनके भाई घायल हो गए हैं। हृदयेश के मुताबिक उनके भाई कई साल से यहां मेला देखने आते थे।
 
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किस्मत ने बचा लिया
अपनी घायल पत्नी की देखभाल कर रहे पवन भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे हैं। वो भी रेलवे ट्रैक पर मौजूद थे। पवन बताते हैं, "मेरी बेटी मेरे कंधे पर बैठी थी। पत्नी ने मेरा एक हाथ थामा हुआ था। हम रेलवे ट्रैक पर ही खड़े थे।"
 
 
वो बताते हैं कि हादसे के कुछ वक्त पहले एक ट्रेन गुजरी और ट्रैक पर खड़े लोगों ने उसे रास्ता दे दिया। थोड़ी ही देर में दूसरी ट्रेन भी आ गई। पवन बताते हैं, "मेरी पत्नी भी ट्रेन की चपेट में आ जाती लेकिन मैंने हाथ पकड़कर उसे खींच लिया। उसे गिरने से चोट आई हैं। मैं भी गिर गया और आंखों के आगे अंधेरा छा गया।"
 
 
हालांकि, पवन ख़ुद को खुशकिस्मत मानते हैं कि वो और उनका परिवार जीवत बच गया। वो कहते हैं कि उनकी पत्नी के जख़्म भी भर जाएंगे लेकिन कई लोगों को इस हादसे ने ऐसी चोट दी है, जो ताउम्र बनी रहेगी।

 

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