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अद्भुत है राम वृक्ष, हनुमानजी से जुड़ी है इसके अस्तित्व की कहानी

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संदीप श्रीवास्तव

  • अनूठा है तकपुरा गांव का रामवृक्ष
  • अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर है यह गांव
  • हनुमान जी से माना जाता है इस वृक्ष का संबंध 
Ram Mandir Ayodhya: अयोध्या के रोम-रोम में राम बसते हैं। इसका प्रमाण एक वृक्ष भी है। इस पेड़ के जड़, तना, पत्ती व डाली सभी राम नाम स्वत: ही उत्कीर्ण हो जाता है। इस बात का दावा तकपुरा गांव के लोग भी करते हैं। यह वृक्ष कौतुक का विषय तो है ही आस्था का केन्द्र भी है। 
 
रामनगरी अयोध्या से 15 किलोमीटर दूर तकपुरा गांव में मौजूद है यह वृक्ष। लोग इसे राम वृक्ष के रूप में जानते हैं। ग्रामवासियों का दावा है कि इस वृक्ष के तनों से लेकर पत्तों तक राम नाम स्वत: ही लिख जाता है। लोगों का कहना है कि वृक्ष को यह नाम किसी संन्यासी ने दिया था। वर्तमान में जहां यह पेड़ स्थित है, वहां उसी तरह का पेड़ था। कालांतर में वह पेड़ गिर गया और उसी जगह पर दूसरा पेड़ उग आया। 
 
स्थानीय ‍निवासी इसे भगवान राम का आशीर्वाद मान रहे हैं। इस वृक्ष के को लेकर रामायणकालीन कहानी भी है। हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे तो वहां बूटी का कुछ अंश गिर गया। उसी स्थान पर यह वृक्ष निकल आया। इसे राम वृक्ष कहा जाता है। 
 
इस वृक्ष के हर हिस्से पर प्राकृतिक रूप से राम नाम लिखा रहता है। दूर-दूर से लोग इस पेड़ के दर्शन करने आते हैं। अयोध्या में प्रभु श्रीराम की भक्ति में यह का वृक्ष भी पूर्ण रूप से राममय बन गया है।
 
क्या है संजीवनी बूटी की कहानी : राम-रावण युद्ध के दौरान ज मेघनाद के शक्ति प्रहार से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तब वैद्य सुषैण के कहने पर हनुमान जी को द्रोणागिरि पर्वत पर संजीवनी बूटी लाने के लिए भेजा गया था। सूर्योदय से पहले बूटी लाई जाए, तभी लक्ष्मण जी के प्राण बचाए जा सकते थे।
 
हनुमान जी तेज गति से मार्ग की सभा बाधाओं को पार करते हुए द्रोण पर्वत पर पहुंच गए। लेकिन, वैद्य सुषैण द्वारा बूटी की जो पहचान बताई गई थी, वहां सभी पेड़-पौधे एक जैसे ही दिखाई पड़ रहे थे। यह देखकर हनुमान जी असमंजस में पड़ गए। उन्होंने उस समय बुद्धि के साथ बल का प्रयोग किया। उन्होंने तत्काल पूरे पर्वत को ही उठा लिया और आकाश मार्ग से युद्ध स्थल की ओर चल पड़े।
 
जब हनुमान जी पर्वत उठाकर लंका की ओर जा रहे थे तो वे अयोध्या के आसमान से भी गुजरे। नंदीग्राम में मौजूद भरत ने जब किसी विशाल व्यक्ति को हाथ में पर्वत उठाकर आते हुए देखा तो वे चिंता में पड़ गए। उन्हें लगा कि यह व्यक्ति पर्वत गिराकर अयोध्या को नष्ट कर सकता है। 
 
उन्होंने हनुमान जी पर बाण चला दिया। तीर लगने के बाद हनुमान जी पर्वत समेत नीचे आ गए। जब भरत जी को असलियत का पता लगा तो वे बहुत दुखी हुए और उन्होंने हनुमान जी को ससम्मान लंका की ओर रवाना किया। ऐसा कहा जाता है कि जब भरत जी ने हनुमान को बाण मारा था, उसी समय संजीवनी बूटी का कुछ हिस्सा उस स्थान पर गिर गया था। उस स्थान पर जो पेड़ लगा है, उसे 'रामवृक्ष' कहा जाता है। 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala   


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