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क्या है विक्रम संवत, जानिए हिंदी में 12 महीनों के नाम और उनका महत्व

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WD Feature Desk

Hindu New Year 2081: विक्रम संवत जब प्रारंभ नहीं हुआ था तब युधिष्ठिर संवत, कलियुग संवत और सप्तर्षि संवत प्रचलित थे। आज जिसे हम हिन्दू या भारतीय कैलेंडर कहते हैं, उसका प्रारंभ 57-58 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने किया था। विक्रमादित्य से पहले भी चैत्र मास की प्रतिपदा को नववर्ष मनाया जाता रहा है, लेकिन तब संपूर्ण भारत में कोई एक मान्य कैलेंडर नहीं था। इसके लिए सम्राट विक्रमादित्य ने खगोलविदों की मदद से एक स्पष्ट कैलेंडर बनाया और उस पर आधारित ही संपूर्ण वर्ष के व्रत, त्योहार, ग्रहण आदि का उल्लेख किया जाने लगा।
 
कब प्रारंभ हुआ विक्रम संवत किसने शुरु किया?
राजा विक्रमादित्य ने संपूर्ण भारत को शकों के अत्याचारों वाले शासन से मुक्त करके अपना शासन स्थापित किया और जनता को भय मुक्त जीवन दिया। इसी विजय की स्मृति के रूप में राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत पंचांग का निर्माण करवाया था। विक्रम संवत् का आरंभ 57 ईस्वी पूर्व में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ था। वैसे तो फाल्गुन माह के समाप्त होते ही नववर्ष प्रारंभ हो जाता है परंतु कृष्ण पक्ष बितने के बाद चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में जिस दिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा होती है उसी दिन से नवसंवत्सर प्रारंभ होना माना जाता है। इसी दिन को भारत के अन्य हिस्सा में गुड़ी पड़वा सहित अन्य कई नामों से जाना जाता है। 
 
देश में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं, जो विक्रम संवत को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य द्वारा ही प्रवर्तित मानते हैं। इस संवत के प्रवर्तन की पुष्टि ज्योतिर्विदाभरण ग्रंथ से होती है, जो कि 3068 कलि अर्थात 34 ईसा पूर्व में लिखा गया था। इसके अनुसार विक्रमादित्य ने 3044 कलि अर्थात 57 ईसा पूर्व विक्रम संवत चलाया। इसके अलावा 3री सदी के बरनाला के स्तम्भ जिस पर अंकित लेख से भी यह स्पष्ट होता है कि विक्रम संवत कब से प्रचलित है।
 
कब हुए थे राजा विक्रमादित्य?
विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज (2024) से 2296 वर्ष पूर्व हुए थे। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य भी चक्रवर्ती सम्राट थे। विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। विक्रम वेताल और सिंहासन बत्तीसी की कहानियां महान सम्राट विक्रमादित्य से ही जुड़ी हुई है। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया।- (गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)।
 
सात दिन और 12 माह का प्रचलन : इसी कैलेंडर से 12 माह और 7 दिवस बने हैं। 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए।
 
12 महीनों के नाम : चैत्र, बैसाखी, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।
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चैत्र माह है प्रथम माह : प्राचीनकाल से ही यह परंपरा है कि इसी माह से देश दुनिया में पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती रही है, क्योंकि यह माह वसंत के आगम का माह और इस माह से ही प्रकृति फिर से नई होने लगती है। आज भी भारत में चैत्र माह में बहिखाते नए किए जाते हैं। दुनिया के अन्य देशों में भी इसी माह में यह कार्य होता आ रहा है। यानी की मार्च माह में बदलाव होता है। दुनियाभर के समाज, धर्म और देशों में अलग-अलग समय में नववर्ष मनाया जाता है। अधिकतर कैलेंडर में नववर्ष मार्च से अप्रैल के बीच आता है और दूसरे दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है। मार्च में बदलने वाले कैलेंडर को ही प्रकृति और विज्ञान सम्मत माना जाता है जिसके कई कारण है। 
 
सूर्योदय से शुरु होता है नववर्ष प्रारंभ : रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार रात 12 बजे ही नववर्ष प्रारंभ मान लिया जाता है जो कि वैज्ञानिक नहीं है। दिन और रात को मिलाकर ही एक दिवस पूर्ण होता है। दिवस का प्रारंभ सूर्योदय से होता है और अगले सूर्योदय तक यह चलता है। सूर्यास्त को दिन और रात का संधिकाल मना जाता है।
 
पांचांग : उक्त सभी कैलेंडर पंचांग पर आधारित है। पंचांग के पांच अंग हैं- 1. तिथि, 2. नक्षत्र, 3. योग, 4. करण, 5. वार (सप्ताह के सात दिनों के नाम)। भारत में प्राचलित श्रीकृष्ण संवत, विक्रम संवत और शक संवत सभी उक्त काल गणना और पंचांग पर ही आधारित है।


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