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क्या है शुभ या अशुभ मुहूर्त, कैसे बनता है शुभ मुहूर्त?

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आचार्य राजेश कुमार

-आचार्य राजेश कुमार
 
किसी भी कार्य को संपादित करने के लिए सही दिन, सही समय अर्थात शुभ मुहूर्त का चुनाव ही उस कार्य में त्वरित सफलता दिलाता है। वैदिक काल से लेकर आज तक किसी भी कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा रही है। शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य निर्विघ्न रूप से संपन्न होता है, ऐसा ऋषि-मुनियों का वचन है तथा यह अनुभवजन्य भी है। 
 
अपनी संपूर्ण जीवन यात्रा में जिसने समय को पहचान लिया अर्थात समय के अनुसार कार्य करने लगा, वैसा व्यक्ति अवश्य ही सफल होता है। उसकी सफलता में संदेह नहीं होता। सामान्यत: लोगों के मुंह से यह शब्द निकलता है कि आज का दिन बहुत अच्छा था, सब काम अपने निर्धारित समय से पूरा हो गया परंतु क्यों? क्योंकि आज हम सही समय पर घर से निकले थे और एकदम सही समय पर कार्यस्थल पर पहुंच गए थे। 
 
वस्तुत: किसी कार्य का तुरंत हो जाना या अल्प प्रयास में ही हो जाना यह सब जाने अनजाने में शुभ मुहूर्त/समय का ही परिणाम है। यह इसलिए जरूरी है कि हम व्यवहार में सुख-दु:ख, अच्छा-खराब, सफलता-असफलता का स्वाद दिन-प्रतिदिन लेते रहते हैं तथा दिनचार्य में शुभ-अशुभ भी अनुभूति करते रहते हैं।
 
यह स्वाभाविक-सी बात है कि इस अशुभ समय में किया गया कार्य या तो पूर्ण नहीं होगा या विलंब से होगा या व्यवधान के साथ होगा या नहीं भी हो सकता है। परंतु नकारात्मक विचार रखने वाले यह भी कह सकते हैं कि क्या गारंटी है कि शुभ समय में किया गया कार्य पूरा हो ही जाए या उसमें कोई व्यवधान न हो। लेकिन यह सच है कि अशुभ समय के चयन से तो शुभ समय का चयन अच्छा ही होगा, क्योंकि यदि अच्छा मुहूर्त हमारा भाग्य नहीं बदल सकता तो कार्य की सफलता के पथ को सुगम तो बना सकता है। 
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शुभ मुहूर्त आपके भविष्य को बदले या न बदले, परंतु जीवन के प्रमुख कार्य शुभ मुहूर्त में करते हैं तो आपका जीवन निश्चित ही आनंददायक बन जाएगा। अत: हमें अवश्य ही शुभ समय का चयन करना चाहिए।
 
कैसे बनता है शुभ मुहूर्त?
 
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुभ मुहूर्त निकालने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखा जाता है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, नवग्रहों की स्थिति, मलमास, अधिकमास, शुक्र और गुरु अस्त, अशुभ योग, भद्रा, शुभ लग्न, शुभ योग तथा राहूकाल आदि इन्हीं के योग से शुभ मुहूर्त निकाला जाता है यथा सर्वार्थसिद्धि योग। यदि सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा तथा श्रवण नक्षत्र हो तो सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण होता है। 
 
शुभ मुहूर्तों में सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है- गुरु-पुष्य योग। यदि गुरुवार को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में हो तो इससे पूर्ण सिद्धिदायक योग बन जाता है। जब चतुर्दशी सोमवार को और पूर्णिमा या अमावस्या मंगलवार को हो तो सिद्धिदायक मुहूर्त होता है। इस योग में किया गया कार्य शीघ्र ही पूरा हो जाता है। अर्थात शुभ योगों की गणना कर उनका उचित समय पर जीवन में इस्तेमाल करना ही शुभ मुहूर्त पर किया गया कार्य कहलाता है। अशुभ मुहूर्त में योगों में किया गया कार्य पूर्णत: सिद्ध नहीं होता।
 
स्कूल-कॉलेज में बच्चों के प्रवेश का शुभ मुहूर्त 
 
बच्चों का प्रथम बार विद्यालय में नाम लिखवाना बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि दांपत्य जीवन में बच्चों के आगमन के बाद सभी कार्य बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखकर ही किए जाते हैं। माता-पिता तो यही कहते हैं कि अगर बच्चे ने अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर लिया तो मेरा जीवन सफल हो गया। 
 
जब भी किसी विद्यालय में प्रवेश कराते हैं तो प्रवेश/ दाखिले के लिए निर्धारित शुभ मुहूर्त/ समय के अनुसार ही प्रवेश कराएं, क्योंकि प्रवेश काल ही बच्चों की पढ़ाई के शुभ और अशुभ परिणाम का निर्धारण करता है।
 
नोट : कोई भी शुभ कार्य करने के लिए उस दिन आपका चन्द्रमा मजबूत होना चाहिए एवं आपको अपने कार्य स्थिर लग्न में करने चाहिए।

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