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गुप्त नवरात्रि आरंभ, जानिए इस नवरात्रि में कैसे की जाती है देवी पूजा

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पं. हेमन्त रिछारिया

नवरात्रि में कैसे करें देवी आराधना
हमारे सनातन धर्म में नवरात्रि का पर्व बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। हिन्दू वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मासों में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है जिसमें दो नवरात्रि को प्रगट एवं शेष दो नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। चैत्र और आश्विन मास के नवरात्रि में देवी प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा-आराधना की जाती हैं वहीं आषाढ़ और माघ मास में की जाने वाली देवी पूजा 'गुप्त नवरात्रि' के अंतर्गत आती है। जिसमें केवल मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित कर या जवारे की स्थापना कर देवी की आराधना की जाती है। आषाढ़ मास की 'गुप्त-नवरात्रि' प्रारंभ होने जा रही है। आइए, जानते हैं कि इस गुप्त  नवरात्रि में किस प्रकार देवी आराधना करना श्रेयस्कर रहेगा।

मुख्य रूप से देवी आराधना को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-
 
1. घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित करना व जवारे स्थापित करना-श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव नहीं तो केवल घट स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है।
 
2. सप्तशती पाठ व जप-
देवी पूजन में दुर्गा सप्तशती के पाठ का बहुत महत्व है। यथासंभव नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक श्रद्धालु को दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए किंतु किसी कारणवश यह संभव नहीं हो तो देवी के नवार्ण मंत्र का  जप यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए। 
 
नवार्ण मंत्र - "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै" 
 
3. पूर्णाहुति हवन व कन्याभोज- 
नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए।  पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के  'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता  है।
 
किन लग्नों में करें घट स्थापना-
 
देवी पूजा में शुद्ध मुहूर्त एवं सही व शास्त्रोक्त पूजन विधि का बहुत महत्व है। शास्त्रों में विभिन्न लग्नानुसार  घट स्थापना का फल बताया गया है-
 
1. मेष- धन लाभ
2. वृष- कष्ट
3. मिथुन- संतान को कष्ट
4. कर्क- सिद्धि
5. सिंह- बुद्धि नाश
6. कन्या- लक्ष्मी प्राप्ति
7. तुला- ऐश्वर्य प्राप्ति
8. वृश्चिक- धन लाभ
9. धनु- मान भंग
10. मकर- पुण्यप्रद
11. कुंभ- धन-समृद्धि की प्राप्ति
12. मीन- हानि एवं दुःख की प्राप्ति होती है।


ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
 

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