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चाणक्य के इस श्लोक को पढ़ लिया, तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता, चाहें तो आजमा लीजिए

हमें फॉलो करें चाणक्य के इस श्लोक को पढ़ लिया, तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता, चाहें तो आजमा लीजिए
किसी कार्य की सफलता या असफलता, तय किए गए लक्ष्य और हमारे द्वारा किए गए या किए जा रहे प्रयास के आधार पर तय होती है। प्रयास अच्छा होगा और पूरी जी जान से किया गया हो तो सफलता निश्चित है। अन्यथा हमें और प्रयास करने की जरूरत है। सफलता को लेकर यूं तो कई बातें कही जाती है, लेकिन कुछ विशेष आदर्श व्यक्तियों द्वारा कही गई बातों पर अनुसरण कर निश्चित ही सफलता पाई जा सकती है। 
 
सफलता हेतु चाणक्य द्वारा कही गई बातें वर्तमान में भी उतनी ही सटीक बैठती हैं। चाणक्य नीति ग्रंथ के छठे अध्याय के 16वें श्लोक में एक श्लोक कहा गया है, जो सफलता के लिए एक मूलमंत्र है। इस मंत्र को अगर आत्मसात किया जाए, तो सफलता अवश्य मिलती है :
 
प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति।
सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥
 
श्लोक का अर्थ है - 
जिस प्रकार कोई शेर एकाग्रता के साथ झपट्टा मारकर पूरी ताकत के साथ अपना शिकार करता है और उसकी सफलता निश्चित होती है। ठीक उसी प्रकार हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए भी लक्ष्य पर ध्यान केंद्र‍ित कर पूरी मेहनत के साथ प्रयत्न करना चाहिए। काम चाहे छोटा हो या बड़ा हो, हमें पूरी ताकत लगाकर ही करना चाहिए, तभी कामयाबी पक्की हो जाती है। 
 
हमें पहले से ही निराशावादी नहीं होना चाहिए। कार्य की शुरुआत में ही अगर हम किसी प्रकार का ढीलापन करते हैं तो कामयाबी बहुत दूर चली जाती है और हमें उसके लिए दो गुना प्रयत्न करना पड़ता है। जो लोग स्वभाव से ढीले होते हैं वे कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकते।

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